Thursday, August 11, 2022

बीकानेर : स्थापना से आजादी तक-14

 दाऊदयाल आचार्य अपनी जीवनी में लिखते हैं कि अपने त्रिभुज के दो भुज बाबू रघुवरदयाल गोईल और गंगादास कौशिक के नजरबंदी और कालेपानी में डटे रहने के मूलचन्द पारीक से समाचार सुन-सुन कर मेरी आत्मग्लानि कम होती गयी।

मूलचन्द पारीक, शिवदयाल दवे द्वारा भेजी खबरें जोधपुर के 'प्रजा सेवक' में छपतीं, जिन्हें पढ़कर दिल्ली के 'दैनिक विश्वामित्र' के संपादक सत्यदेव विद्यालंकार ने अपनी प्रतिक्रिया अग्रलेख में इस तरह दी।

'जब तक बीकानेर के अधिकारी खुली अदालत में मुकदमा चलाकर यह बतावें कि बीकानेर के इन कार्यकर्ताओं ने ऐसा क्या किया था जिसके कारण उन्हें अचानक गिरफ्तार करके नजरबंद कर दिया गया, तब तक बीकानेर की जनता को ही नहीं, अन्य देशवासियों की दृष्टि में भी बीकानेर के ये कार्यकर्ता रियासत की अंधेरगर्दी के शिकार समझे जावेंगे। हमें दुख है कि बीकानेर के महाराजा ने कुछ ऐसे व्यक्तियों को उत्तरदायित्व के स्थान पर रख छोड़ा है जो अपने पद के सर्वथा अयोग्य हैं और जो अपने कार्य से बीकानेर के शासन को कलंकित कर रहे हैं और जिनके स्वेच्छाचार से नागरिक स्वतंत्रता त्राहि-त्राहि कर रही है।'

दिल्ली के अखबार में ऐसी फटकार के बाद बीकानेर रियासत के प्रशासन में बेचैनी होनी ही थी, जिसके चलते हड़बड़ाहट में वे केवल खंडन की लीपापोती ही कर पाए।

दैनिक विश्वामित्र (26 नवम्बर, 1944) में एक ऐसी ही खबर तभी और छपी। बीकानेर के सेठ शिवदास डागा के वक्तव्य के हवाले से छपी ये खबर बीकानेर के जनसेवी डॉक्टर धनपतराय के संबंध में थी, डॉ. धनपतराय को बीकानेर के पुराने लोग आज भी इसलिए याद करते हैं कि वह बिना लोभ के अमीर-गरीब सभी का इलाज करते थे। डॉ. धनपतराय म्युनिसिपलिटी के सदस्य भी थे, इसी के नाते एक सरकारी प्रस्ताव का विरोध करते हुए बैठक से वाकआउट कर गये। राज ने नाराज होकर उनकी प्रेक्टिस को ही प्रतिबन्धित कर दिया। जनता त्राहि-त्राहि करने लगीमगर उनकी सुनता कौन था। 

इन्हीं सब परिस्थितियों में मूलचन्द पारीक के सतत प्रयत्न रंग लाएं और वैद्य मघाराम ने परिषद् का नेतृत्व संभाल लिया। 26 जनवरी, 1945 को जस्सूसर गेट के बाहर स्थित गोबोलाई तलाई के पास वैद्य मघाराम की अगुवाई में प्रजा परिषद् के सदस्यों ने बैठक की और तिरंगा फहरा कर स्वतंत्रता दिवस की रस्म अदा की। इस के बाद परिषद् के सदस्यों में उत्साह का संचार पुन: हुआ।

1945 . में बीकानेर में एक ऊर्जावान युवा नेता दामोदर सिंघल प्रकाश में आया। डूंगर कॉलेज (तब वर्तमान फोर्ट स्कूल के भवन में चलता था) छात्र संघ के अध्यक्ष रह चुके दामोदर सिंघल को राज के आदेश पर कॉलेज प्रशासन ने निष्कासित कर दिया। चतुर्थ वर्ष के इस विद्यार्थी को विश्वविद्यालयी परीक्षा से ठीक पहले निष्कासित किये जाने पर प्रिंसिपल खुद दुखी थे। इस कार्रवाई पर 18 मार्च 1945 . को बी डी शर्मा ने 'बिना किसी आरोप के विद्यार्थी दंडित' नाम से एक पुस्तिका भी प्रकाशित की जिसमें बताया गया कि दामोदर सिंघल के निष्कासन पर कॉलेज में हड़ताल भी हुई। दामादेर सिंघल के निष्कासन की जो वजह राज द्वारा बताई गयी, उनमें रघुवर दयाल आदि की नजरबंदी आदेश के विरोध में छात्र संघ अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना, 26 जनवरी, 1945 . में हॉस्टल में स्वतंत्रता दिवस मनाना और दिल्ली हिन्दुस्तान टाइम्स के सम्पादक देवदास गांधी से मुलाकात करना आदि थी। जबकि दामोदर ने देवदास गांधी से मुलाकात तो कॉलेज के निष्कासन के बाद दिल्ली प्रवास के समय की थी। इससे यह जाहिर होता है कि बीकानेर शासन हर स्वतंत्रता सेनानी की रियासत के बाहर भी पुख्ता जासूसी करवाता था। इसके बाद दामोदर सिंघल को रियासत से निर्वासित भी कर दिया। दामोदर ने अपने निर्वासन के समय को देश को सौंप दिया और जयपुर-जोधपुर में केवल लगातार सक्रिय रहा, बल्कि इस कोशिश में भी लगा रहा कि बीकानेर वापस कैसे जाऊं।

इसी काल में रावतमल पारीक के भाई मेघराज पारीक भी आजादी के आन्दोलन में सक्रिय हुए। राजकीय न्यायालय में अपनी पेशकारी की नौकरी छोड़कर आये मेघराज का यह निर्णय साहसी था। मेघराज ने खादी मन्दिर में व्यवस्थापक के तौर पर काम शुरू किया। तभी 6 अप्रेल से 13 अप्रेल 1945 . को 45वां राष्ट्रीय सप्ताह खादी मन्दिर को आयोजित करना था। शासन का गृह विभाग उक्त दोनों (मेघराज को राज की नौकरी छोडऩा और खादी मन्दिर का काम संभालना) कारणों से ज्यादा चौकस हुआ और आयोजन पर अंकुश लगाने शुरू कर दिये। आयोजन की रूपरेखा पर गोईल से दिशानिर्देश लेने मेघराज लूनकरणसर भी गये लेकिन उन्हें मिलने नहीं दिया गया। और रेलवे स्टेशन पर रोक कर बाद की गाड़ी से जबरदस्ती बीकानेर लाया गया और हनुमानगढ़ का डबल किराया वसूल कर छोड़ दिया। पुलिस की इस ज्यादती के विरोध में मेघराज पारीक ने 25 मार्च से तीन दिन का अनशन किया।

राष्ट्रीय सप्ताह के अन्तर्गत 8, 9 10 अप्रैल को नागौर में बड़ा राजनीतिक सम्मेलन रखा गया जिसमें सभी रियासतों के प्रतिनिधि बड़े उत्साह से शामिल हुए। नागौर जाने वाले बीकानेर प्रजा परिषद् के लोगों में भैंरोलाल सुराणा, गोपीकिशन सुथार, श्रीराम आचार्य, कमलादेवी आचार्य, घेवरचंद तंबोली, चंपालाल उपाध्याय, काशीराम स्वामी, भीक्षालाल शर्मा, जीवनराम डागा, किशनगोपाल गुट्टड़, मुल्तानचन्द दर्जी, शेराराम शर्मा, रामनारायण शर्मा आदि थे। सम्मेलन के बाद वैद्य मघाराम 29 मार्च को जोधपुर चले गये, वहां उनकी विद्यार्थी नेता दामोदर सिंघल से मुलाकात तय थी। वैद्य मघाराम के साथ ही दामोदर सिंघल के कॉलेज के साथी कैलाशनारायण, बुद्धदेव शंकरलाल भी साथ हो लिए। बुद्धदेव बीकानेर की न्याय पालिका में सेशन जज थे। जासूसों द्वारा इसकी सूचना मिलने पर गृहमंत्री प्रतापसिंह ने जज साहब को इस बाबत संदेश भेजा तो जज साहब ने जवाब दिया वह विशेष उल्लेखनीय है।

क्रमश...

दीपचंद सांखला

10 अगस्त, 2022

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