Tuesday, January 13, 2015

आसाराम और नारायण साईं पर फैसले जल्द आने चाहिए

धर्मगुरु बने आसाराम पिछले लगभग डेढ़ वर्ष से जेल में हैं, पुत्र नारायण साईं भी ऐसी ही स्थिति में है। बाप-बेटे दोनों पर बलात्कार, दुष्कर्म और यौन शोषण जैसी धाराएं लगी हैं। मामले संगीन हैं तभी ये लोग लम्बे समय से अन्दर हैं अन्यथा इन्होंने बाहर आने की कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। जिस दल को आसाराम पोखते रहे हैं, देश और प्रदेशों में अब तो सरकारें भी इसी दल की हैं। धन-बाहुबल की भी कोई कमी नहीं।
पुलिस और जांच से सम्बन्धित उसके महकमे अन्यथा कितने भी बदनाम रहे हों लेकिन ऐसे मामले ही अपने पर भरोसा बचाए हुए हैं। यह मानने में कोई किन्तु परन्तु नहीं इस महकमे और उनके वे कार्मिक जो सीधे इन बाप-बेटों के मामलों से जुड़े हैं, उन पर वे सभी प्रकार के दबाव-प्रलोभन, बनाए गये होंगे जो हो सकते हैं।
वह किशोरी भी शाबासी की हकदार है जिसने आसाराम पर यौन उत्पीडऩ के आरोप लगाए और हाल तक डटी हुई है। उसके माता-पिता, संबंधी भी जो सभी तरह के दबावों और धमकियों के आगे नहीं झुके।
आसाराम और नारायण साईं पर लगे इन आरोपों से सम्बन्धित जितने भी गवाह अब तक डटे हुए हैं उन्हें लगातार केवल प्रलोभन दिए जा रहे हैं बल्कि धमकाया भी जाता रहा है। प्राणघातक हमले में कल ही एक ऐसा गवाह अखिल गुप्ता मुजफ्फनगर में मार दिया गया। एक गवाह की पहले ही हत्या हो चुकी है। पुलिस भी ऐसे मामलों में असहाय नजर आती है या वह ऐसे गवाहों को पूरी सुरक्षा दे नहीं पा रही। इन परिस्थितियों में न्यायालय से ही उम्मीदें बची हैं कि इन बाप-बेटों से सम्बन्धित प्रकरणों को त्वरित गति से निबटाया जाए। अन्यथा ऐसे सैकड़ों गवाह जो सभी तरह के दबावों में जीवन जीने को मजबूर हैं, उनमें से जो नहीं झेल पायेंगे वे पलटने को मजबूर हो सकते हैं। ऐसे में वह कहावत चरितार्थ होगी जिसमें कहा गया है कि 'देरी से मिला न्याय न्याय नहीं होता'
तरस आसाराम के उन अनुयायियों पर भी आता है जो इन मामलों से इतनी भी सीख नहीं ले रहे हैं कि जब तक मामला न्यायालय के विचाराधीन है तब तक धैर्य से इन्तजार करें। वैसे जांच के जिस तरह के परिणाम सामने रहे हैं उनके हिसाब से यह नहीं माना जा सकता कि ये लोग निर्दोष हैं। हालांकि बहुत से समझदार या तो इनसे दूर हो लिए हैं या फिर मौन होकर परिस्थितियों को देखने-समझने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन जिन्हें लगता है कि उनका गुरु और गुरु पुत्र, दोनों ही निर्दोष हैं उन्हें गवाहों को बिना किसी तरह प्रभावित किए न्यायिक फैसलों का इन्तजार करना चाहिए।
विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल का जोधपुर जेल जाना और आसाराम की उनसे बीस मिनट की मुलाकात को जायज इसलिए नहीं ठहराया जा सकता कि सिंघल केवल सार्वजनिक जीवन के व्यक्ति हैं बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की धार्मिक इकाई विश्व हिन्दू परिषद के मुखिया भी हैं। केन्द्र और गुजरात, राजस्थान जैसे दोनों प्रदेशों में उनके संगठन की सहोदर राजनीतिक इकाई भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं और इन बाप-बेटों के अधिकांश मामले इन्हीं दो प्रदेशों में हैं। सिंघल का आसाराम के साथ तो पारिवारिक रिश्ता है और ही ऐसी व्यक्तिगत घनिष्ठता दोनों के बीच कभी जाहिर हुई, औपचारिक सम्बन्ध जरूर रहे हों।
ऐसे में जांच में लगी एजेन्सियों और न्यायालय को कोई सन्देश देने के मकसद से तो सिंघल नहीं गये। यदि ऐसा है तो यह गंभीर मामला है? और इसे उन जैसों को हतोत्साहित करने की करतूत माना जायेगा जो जैसी-तैसी भी परिस्थितियों में इन बाप-बेटों के खिलाफ अपनी बात पर कायम हैं।

13 जनवरी, 2015

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