Saturday, November 8, 2014

कल का मंत्रिमंडलीय विस्तार

केन्द्र में सरकार बने छह माह हो रहे हैं, रक्षा जैसे कई महत्त्वपूर्ण महकमों में जिम्मेदारी को चलताऊ बना दिया गया है। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अलावा अरुण जेटली, नितिन गडकरी और रविशंकर प्रसाद ऐसे मंत्री हैं जिन्हें एकाधिक महत्त्वपूर्ण महकमों को एक साथ साधना पड़ रहा है। हालांकि भाजपा की राजस्थान में भी सरकार बनने से लेकर पिछले विस्तार तक स्थितियां ऐसी ही रही, वह तो इसलिए कि वसुंधरा राजे के हाथ बांध दिए गए थे। लेकिन पूरी तरह छुट्टा होकर राज करने वाले मोदी की मजबूरियां समझ से परे हैं। हाल का केन्द्रीय मंत्रिमंडल जातीय और क्षेत्रीय आधार पर संतुलित नहीं कहा सकता। बावजूद इसके विस्तार की फुसफुसाहट चर्चा में तबदील होकर जो बातें सामने रही हैं उसमें बताया जा रहा है कि बजाय ऐसे संतुलनों के मोदी मेरिट को महत्त्व दे रहे हैं। मोदी की कार्यशैली के मद्देनजर यह समझ से परे की बात इसलिए लग रही है कि जब सरकार सीधे मोदी को ही हांकनी है तो क्यों दिखाऊ ही सही लोकतांत्रिक तरीकों के अनुसार मंत्रिमंडल में समाज और विभिन्न क्षेत्रों को समान प्रतिनिधित्व दे दिया जाय।
भाजपा में शीर्ष नेतृत्व की बात जब पहले की जाती थी तब कई चेहरे एक साथ खड़े होते थे लेकिन अब तो दो नम्बर पर अमित शाह का चेहरा भी मोदी के पीछे ही नजर आता है। ऐसे में मोदी अब तक किस कवायद में लगे थे कि मंत्रिमंडलीय विस्तार जैसा जरूरी काम नहीं कर पाए। नये मंत्रियों में जिन नामों की चर्चा है उनमें सर्वाधिक चौंकाने वाला नाम गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का है। रक्षा मंत्रालय के लिए ही उन्हें केन्द्र में लाया जा रहा है। ऐसे में उनका संसद के किसी एक सदन का सदस्य होना जरूरी है सो उन्हें उत्तरप्रदेश से चुन कर लाने की बात भी हो रही है। मंत्रिमंडल में विस्तार में देरी का कारण यह तो क्या रहा होगा कि पार्टी के 283 लोकसभा और 64 राज्यसभा सदस्यों में योग्यता का अकाल है। यदि ऐसा ही है तो मामला ज्यादा इसलिए शोचनीय है कि पार्टियां चाहे अयोग्यों को उम्मीदवार बनाती हों, लेकिन ऐसों को चुनने की मतदाताओं की मजबूरी क्या है, जबकि अब अयोग्यों को चुनने का विकल्प 'नोटा' उनके पास है।
पूरी तसवीर तो कल के सम्भावित विस्तार के बाद ही सामने आयेगी। उत्सुकता यह भी है कि केन्द्र में सरकार बनने के समय वसुन्धरा को आईना दिखाने के चक्कर में राजस्थान को अपने मंत्रिमंडल में लगभग बैरंग कर दिए जाने की भरपाई मोदी किस तरह करेंगे। लगभग इसलिए कि निहालचन्द मेघवाल का नाम राज्यमंत्री के रूप में बिलकुल अन्तिम क्षणों में जोड़ा गया था—'रात भर रोया, मरयो एक कोनी, एक मरयो जिको सुबह उठ' भाग ग्यो।' लोक में प्रचलित इस कैबत के अनुसार जैसे-तैसे मंत्रिमंडल में शामिल हुए मेघवाल लगातार विवादों में ही रहे हैं। बीच में तो बीकानेर के सांसद अर्जुनराम मेघवाल के भाग का छींका टुटवाने की उम्मीद जगाने के लिए चर्चा यह भी थी कि ऐसे निहालचन्द को बाहर करके अर्जुनराम को मंत्रिमंडल में लिया जायेगा। लेकिन इस बात के फिस्स होने में देर नहीं लगी। इस विस्तार में शामिल राजस्थान के नामों से पता चल जायेगा कि वसुंधरा राजे की पावली पांच आने में चलने लगी है या प्रदेश का हाल ही का मंत्रिमंडल विस्तार उनका दुस्साहस भर था।
जो भी हो केन्द्र सरकार का काम-काज यह तो नहीं बता रहा है कि केन्द्र की सरकार मोदी उसी जलवे से चला रहे हैं जिस जलवे से वे गुजरात की सरकार चलाते रहे थे जबकि बंधन उन पर राई-रत्ती का भी नहीं। यदि यह सच है तो मोदी को अपनी सीमाओं को समझ लेना चाहिए अन्यथा उनका फुलाया गुब्बारा यदि 2019 के चुनावों से पहले फूटता है तो भुगतना पार्टी को होगा...चमक तो गुब्बारे की लगातार कम हो ही रही है!

8 अक्टूबर, 2014

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