Friday, November 21, 2014

सिन्हा और रामपाल के सबक

कथित संत रामपाल ने कल हवालात में न्यायालय के सामने पेश होने पर कुरेदते पुलिसकर्मी को यह कह कर लाजवाब करने की कोशिश की कि भगतों ने मुझ पर मायाजाल कर रखा था। यह गत अकेले रामपाल की ही नहीं है, मोहमाया से मुक्ति का ज्ञान देने में लगे लगभग सभी धर्मगुरुओं की स्थिति यही है। पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने रामपाल के मामले की सुनवाई करते हुए पंजाब, हरियाणा और चण्डीगढ़ प्रशासनों को निर्देश दिए हैं कि इन प्रदेशों में स्थित ऐसे सभी धार्मिक आश्रमों की पड़ताल करे जहां कोई पंख भी नहीं मार सकता। हो सकता है जब तक प्रशासन हरकत में आए तब तक इन धार्मिक किलों को साफ-सुथरा कर लिया जाए, 'प्रमाण-पत्र' मिलने के बाद फिर से जो मर्जी आए करो।
पानी कल केवल रामपाल का ही नहीं उतरा, देश के महत्त्वपूर्ण केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) के निदेशक का पानी भी न्यायपालिका ने धो दिया। 1.76 लाख करोड़ के 2जी घाटाले की जांच करते सीबीआइ निदेशक रंजीत सिन्हा आरोपी कम्पनियों के नुमाइन्दों से व्यक्तिगत मुलाकतें करते रहे हैं। पिछली संप्रग सरकार की साख बट्टे खाते करने वाले इन घोटालों में 2जी घोटाले की बड़ी भूमिका रही है, एकाधिक मंत्रियों को केवल पद छोडऩा पड़ा बल्कि महीनों तक जेल की हवा भी खानी पड़ी थी। वैसे तो सीबीआइ की साख बेदाग कभी नहीं रही लेकिन वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने उक्त मुलाकातों का मामला सप्रमाण न्यायालय में पेश किया तो दाग पुष्ट होते भी दिखने लगे। वैसे भी पिछले कुछ समय  से सिन्हा की भद्द कोई कम नहीं हो रही थी। कल उच्चतम न्यायालय के उस आदेश के बाद तो उनकी इसी महती जिम्मेदारी के बचे तेरह दिन जैसे निलम्बन के ही रह गये हैं, सिन्हा 2 दिसम्बर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उच्चतम न्यायालय ने कल स्पष्ट रूप से कहा कि 'सीबीआइ निदेशक पर जो आरोप लगाए जा रहे हैं, पहली नजर में उनमें दम दिख रहा है। बेहतर होगा कि रंजीत सिन्हा 2जी जांच में दखल देना बन्द करें और खुद ही इस जांच से हट जाएं '
रंजीत सिन्हा जैसे जिम्मेदार पदों पर बैठकर नौकरी करने वाले और रामपाल जैसे स्वयंभू जिम्मेदारी ओढऩे वाले दोनों ही तरह के लोगों में ढिठाई लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसों को लगातार लगता रहता है कि वे सही हैं, ऐसा जिन्हें नहीं भी लगता उन्हें यह भ्रम होता है कोई उनका क्या बिगाड़ लेगा। सामान्यत: ऐसी धारणाएं पुष्ट इसलिए भी होती लगती है क्योंकि समाज या तो 'लफड़े ' में पडऩे से बचता रहता है, या लफड़े में पडऩे की अपनी हैसियत भी नहीं देख पाता, तीसरे तरह के लोग ऐसे होते हैं जो या तो ढीठों की इस जमात के ही होते हैं या नहीं भी होते हैं तो उनके सुखों में अपना साझा कर लेते हैं।
लफड़े में पडऩे की इस मंशा की कीमत समाज लगातार चुका रहा है। आए दिन बाबाओं के पोत चौड़े रहे हैं, इनके चक्कर में कइयों के घर बर्बाद हो रहे हैं। इसी तरह सिन्हा जैसे जिम्मेदार पदों पर बैठे अधिकारी 1.76 लाख करोड़ के घोटालों की आरोपी कम्पनियों के नुमाइन्दों से अनौपचारिक तौर पर मिलने की हिम्मत जुटा लेते हैं। यह राशि कितनी बड़ी है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस देश के निन्यानवे प्रतिशत लोग इसे अंकों में शायद ही लिख पायें।
इस राशि पर देश के प्रत्येक नागरिक का बराबर का हक था जिसे चन्द लोगों ने अपने लिए हड़प लिया। इसे इस तरह समझना कब शुरू करेंगे कि प्रत्येक सरकारी सम्पत्ति और सरकारी आना-पायी तक की निगरानी की जिम्मेदारी प्रत्येक नागरिक की है और प्रत्येक वह जो इस अमानत में खयानत की कोशिश करता है वह भारतीय नागरिकों का गुनहगार है, फिर वह चाहे कोई राजनेता हो या सरकारी कारकुन या फिर कोई धर्मगुरु।

21 नवम्बर, 2014

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