Tuesday, May 27, 2014

प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी

नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेता के रूप में कल शाम देश के पन्द्रहवें प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और आज सुबह साउथ ब्लॉक स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचकर विधिवत कार्यभार संभाल लिया। मोदी आज पूरी तरह विदेशी मेहमानों में व्यस्त रहेंगे।
नई सरकार के कल के गठन को राजस्थान और बीकानेर के सन्दर्भ में समझें तो कहा जा सकता है कि मंत्रिमंडल में प्रदेश की उपेक्षा से मोदी और पार्टी-शीर्ष ने इन चुनावों में लगभग क्षत्रप की तरह व्यवहार करने लगी वसुंधरा राजे को 'बिहेव योरसेल्फ' जैसा सन्देश देने की कोशिश की है। ऐसा सन्देश केवल मोदी की ओर से ही है तो यह मान लेना भूल होगी कि मोदी ने अपनी तासीर बदल ली है। रही बात बीकानेर की तो कल दोपहर बाद तत्समय या कहें भागते चोर की लंगोटी की तर्ज पर मात्र एक राज्यमंत्री के रूप में मंत्रिमंडल में हासिल स्थान से बीकानेर लोकसभा क्षेत्र की उम्मीदों पर पानी फिर गया। क्षेत्रीय और जातीय दोनों ही प्रतिनिधित्वों के आधार पर बीकानेर सांसद का दावा इसलिए समाप्त हो गया क्योंकि राज्यमंत्री निहालचन्द मेघवाल केवल बीकानेर संभाग से हैं बल्कि अनुसूचित के उसी जाति समूह से भी हैं जिससे यहां के सांसद अर्जुनराम आते हैं। बिल्ली के भाग का छींका तभी टूट सकता है जब निहालचन्द को अकर्मण्यता या करतूतों के चलते बीच पांच साल में हटाना पड़े।
प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के प्रदर्शन के कयासों की बात करें तो मनमोहनसिंह ने पिछले पांच साल में जिस तरह से सरकार चलाई उसे देखते हुए यदि एचडी देवगौड़ा भी अभी प्रधानमंत्री बनते तो 'भले' कहलाते। इसलिए कह सकते हैं कि मोदी के लिए इस जिम्मेदारी का निर्वहन करना कोई चुनौतीपूर्ण नहीं है। लेकिन मोदी के पिछले आठ महीने के 'प्रधानमंत्री बनो' अभियान का अवलोकन करें तो स्पष्ट है कि उन्होंने संभव-असंभव, नैतिक-अनैतिक, भ्रम-असल जैसे सभी हथकंडे अपनाए थे। इन आठ माह में अपनी लगभग साढ़े चार सौ रैलियों और सैकड़ों थ्रीडी सम्बोधनों में उन्होंने जो कुछ कहा उनमें से अपने को एक बार फिर गुजारें तो संभव है वह खुद सिहर उठेंगे। क्योंकि मोदी ने अपने सम्बोधनों से आम-आवाम की आकांक्षाओं का जखीरा खड़ा कर लिया है, जो उनके बिना अलौकिक हुए असंभव है। चुनाव अभियान के अन्त तक आते-आते मोदी को इसका एहसास होने लगा था। तभी प्रायोजित सभी साक्षात्कारों में अपरोक्ष रूप से वे कहने लगे थे कि रैलियों में कहे को अधिकृत मानने की बजाय यहां कहे को मानें। चुनाव अभियान के अंत में दिए साक्षात्कारों के सुर रैलियों में कहे सुरों से भिन्न थे। इसलिए मान सकते हैं कि वोट चाहे उन्होंने भ्रमित करके लिए पर राज वह इस देश की असल तासीर से ही चलाएंगे।
कल के मंत्रिमंडल को देखें तो स्पष्ट है कि पार्टी के भीतर जो स्वतंत्रता उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर हड़प रखी थी, वैसा दुस्साहस या तो यहां वे कर नहीं पाए या किया नहीं। कल के मंत्रिमंडल के आधार पर यह कहना कि संतुलित नहीं या जैसा मोदी चाहते वैसा करने की छूट वे हासिल नहीं कर पाए, जल्दबाजी होगी। अगले विस्तार में ही मंत्रिमंडल का मोटा-मोट रूप खुलेगा।
फिर भी स्वयं राजनाथसिंह से लेकर सुषमा स्वराज, उमा भारती, मेनका गांधी ऐसे नाम हैं जो पार्टी के भीतर मोदी की शत-प्रतिशत स्वतंत्रता में संभव नहीं थे। इन्हीं की एवज में मोदी अरुण जेटली और स्मृति ईरानी को हारने के बाद भी सरकार में हासिल कर पाएं हैं। स्मृति ईरानी का कद फटाक से इतना ऊंचा करने का शातिराना मानी यह भी हो सकता है कि 2019 के चुनावों में राहुल गांधी कम से कम अमेठी का रुख करें। यदि ऐसा ही है और लुंज-पुंज कांग्रेस 2019 में राहुल के नेतृत्व में चुनावों में उतरती है तो कम से कम स्मृति के बूते ये व्यवस्था मोदी जरूर करवा देंगे कि राहुल हतोत्साहित होकर अमेठी की ओर मुंह ही करें। लालकृष्ण आडवाणी और मुरलीमनोहर जोशी जैसे इस समय 'सिचले' भी इसलिए हैं कि उन्हें किसी बड़ी भूमिका के लिए आश्वस्त कर दिया गया होगा?
रैलियों में मोदी के सब-कुछ कहे और चुनाव अभियान में किए को एकबार हाशिए पर रखकर उम्मीद की जानी चाहिए कि बहुमत हासिल करने के बाद से कथनी और करनी से अपने में जिन बदलावों का प्रदर्शन किया वह उनका अभिनय होकर सच्ची-मुच्ची का है। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने एक से अधिक बार समदर्शी होकर सचमुच के पिछड़ों और दलितों के लिए कुछ करने की जो मंशाएं जाहिर की, वैसा वे कर गुजरते हैं तो देश के लिए सुकून की बात होगी। यदि ऐसा होता है तो यह विकास गुजरात के विकास-सा नहीं होगा क्योंकि इन बारह सालों में गुजरात में मोदी के राज में गरीब और पिछड़े, और बुरी गत को प्राप्त हुए हैं और अल्पसंख्यक सहजता से जीवन यापन नहीं कर पा रहे हैं।

27 मई, 2014

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