Thursday, October 17, 2013

सीके मैथ्यू का यह कदम

सीके मैथ्यू राजस्थान शासन के मुख्य सचिव हैं, कल उन्होंने घोषणा की कि वे आज से दो माह के अवकाश पर चले जाएंगे। कारण जो बताया वह बड़ा विचित्र है, भाजपा नेता कैलाशनाथ भट्ट ने कल दोपहर बाद ही आरोप लगाया था कि मुख्य सचिव और नगरीय विकास विभाग के सचिव ने कांग्रेस पार्टी को चंदाई लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से चार हजार करोड़ के वर्कआर्डर आनन-फानन में जारी कर दिए। सीके मैथ्यू सामान्यत: साफ सुथरे, कामकाजी अधिकारी माने जाते हैं। सरकारें कैसे चलती हैं और राजनीतिक पार्टियां कैसे दौड़ती हैं, उन्हें स्प्रिट कहां से और कैसे हासिल होती है, यह सब मैथ्यू अपनी छत्तीस साल की नौकरी में अच्छी तरह जाने-समझे हैं। देश की राजनीति का जो अराजनीतिकरण हो गया है उसमें कमोबेश सभी पार्टियां अपने राजनीतिक कॉर्पोरेट को किस तरह से चलाती हैं, इसे वे सब जानते-समझते हैं जो देश-दुनिया और समाज में थोड़ी बहुत रुचि रखते हैं या जागरूक हैं। करोड़ों-अरबों के राजनीति के इस व्यापार में क्या क्या किस तरह होता है और िकस तरह नहीं होता ये सब मैथ्यू जैसे अफसर से छुपा नहीं है। फिर कल ऐसा अचानक क्या हो गया कि वे नयी सरकार के आने के बाद तक की छुट्टी पर चले गए। यह ऐसा दौर होता है जब मंत्रिमंडल अपने सबसे निष्क्रिय काल में होता है और प्रशासन एक तरह से पुलिस के आला अधिकारियों सहित ऐसे ही अधिकारियों के जिम्मे पूरी तरह जाता है।
भाजपा नेताओं ने जो आरोप लगाए हैं उनमें प्रथम लक्ष्य ही अफसरशाही है, ऐसी स्थिति में उनके आरोपों को खारिज करने और सफाई देने जैसी दोनों जिम्मेदारियां आरोपी अधिकारी की बनती है। ऐसे अवकाश पर चले जाना जिम्मेदारी से भागना ही माना जाएगा। हो सकता है मैथ्यू व्यक्तिगत रूप से ईमानदार हों पर जिस तरह से आजकल की सरकारें चलाई जाती हैं उस तरह से काम के प्रति ईमानदार रहने की गुंजाइश क्या अब भी बची है? इस मामले में सभी राजनीतिक पार्टियां एक माजने की हैं तो फिर यह नाटक नहीं तो क्या है। अगर मैथ्यू काम के प्रति ईमानदार होते तो नौकरी कभी की छोड़ चुके होते! उनकी ड्यूटी या धर्म में क्या यह नहीं आता कि सार्वजनिक सम्पत्ति और सार्वजनिक धन में इंच, आनापायी को भी व्यर्थ नहीं जाने दें। क्या उन्होंने व्यक्तिगत ईमानदारी के साथ ड्यूटी के प्रति भी इस तरह की ईमानदारी का निर्वहन किया है। यदि ऐसा नहीं किया है तो ऐसे समय जब उन्हें सार्वजनिक और प्रशासनिक दोनों रूपों से सर्वाधिक जिम्मेदारी का निर्वहन करना था तब मोरचा छोड़ जाना कितना उचित है? सरकारें यूं ही चलती रहेंगी। मैथ्यू की जगह कोई और थे तब भी चल रही थी और अब कोई और कार्यभार सम्हालेगा, तब भी चलेगी। लेकिन मैथ्यू ने जो किया उसके प्रति लोक में एक बहुत भद्दी कहावत है जिसेविनायकअपनी ओढ़ी हुई शालीनता के चलते साझा करके अनावृत नहीं होना चाहता।

17 अक्टूबर, 2013

1 comment:

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

और तमाम बातों के साथ ही मुझे यह भी लगता है कि सरकारी खर्च पर प्रतिरोध का यह तरीका ग़लत है. अगर वे वाकई आहत हैं तो अपनी नाराज़गी किसी ऐसे तरीके से व्यक्त करें जिससे लगे कि वे इसकी कीमत भी चुका रहे है! यह क्या बात हुई कि तमाम तनख्वाहें वगैरह लेते हुए, छुट्टी पर जाकर आप विरोध करें?