Thursday, June 27, 2013

जोशी--गहलोत बरअक्स कल्ला--गहलोत की बात

शहर कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल गहलोत को अपनी हैसियत बनाने और उसे जताने को पर्याप्त समय मिल चुका है। यशपाल के पद ग्रहण के कुछ समय बाद ही विनायक ने उनकी हैसियत को लेकर बात की थी। साथ ही यह भी कहा था कि पूर्व अध्यक्ष जनार्दन कल्ला की भी यह जिम्मेदारी है कि यशपाल की हैसियत बनाने में सहयोग करें लेकिन पर्याप्त अरसे बाद भी वह स्थितियां नहीं बन पा रही है जिसमें यशपाल आमजन में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा पाएं। जबकि उनका स्वयं का जातीय आधार भी बीकानेर की दोनों सीटों पर कम नहीं है। फिर भी पता नहीं क्यों वे सहज आत्मविश्वास नहीं जुटा पा रहे हैं।
हाल ही की जयपुर कार्यसमिति बैठक के सन्दर्भ से प्रभारी महासचिव गुरुदास कामत से मुलाकात के फोटो जरूर अखबारों में छपे हैं। लेकिन इससे हासिल क्या होना है। कल्ला बन्धुओं से अलग अपनी खुद मुख्त्यारी घोषित करना जरूर अति आत्मविश्वास में आएगा। जबकि लोगों में अपनी हैसियत स्थापित करना आत्मविश्वास में ही आएगा। आत्मविश्वास हमेशा सकारात्मक ही होता है।
इसे हम प्रदेश फलक पर अशोक गहलोत और सीपी जोशी के सन्दर्भ से देख सकते हैं। गहलोत की पिछली सरकार के समय एक लम्बी अनौपचारिक बैठक में जोशी ने गहलोत का जिक्र बॉस के रूप में कई बार किया और उस बातचीत में कही नहीं लगा था कि वे गहलोत के लिए कभी चुनौती बन जाएंगे। लेकिन बिना सत्ता के बीच के पांच सालों में दोनों के बीच कहां फांक आई कह नहीं सकते। जबकि प्रदेश स्तर पर आमजन में और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच जोशी की लोकप्रियता गहलोत से आधी भी नहीं है। मेवाड़ में गिरिजा व्यास जोशी के बराबर की हैसियत वाली नेता हैं। इसलिए भी जोशी का गहलोत के लिए चुनौती बनना अति आत्मविश्वास की श्रेणी में ही आएगा। जोशी खुदमुख्त्यारी की घोषणा गाहे-बगाहे करते ही रहते हैं। हाल ही की जयपुर कार्यसमिति की बैठक में भी जोशी ने कहा कि गहलोत उन्हें अनुगामी नहीं, सहयोगी मानें, उनके मुंह से अनायास यह भी निकल गया कि नेहरू-गांधी परिवार को गहलोत पर पूरा भरोसा है। हालांकि जोशी में काम करवा लेने की क्षमता बोलचाल की अंग्रेजी जानने के चलते उन्होंने राहुल पर जरूर असर बना रखा है। यह बात सोनिया को भी शायद मालूम है कि राहुल जमीनी हकीकत के मामले में अभी तक बालिग नहीं हुए हैं। शायद इसीलिए राहुल की सभी बातों को सोनिया भी भाव नहीं देती हैं गहलोत के सन्दर्भ में विनायक ने पहले भी एक बार जिक्र किया था कि वे अब उस हैसियत में गये हैं कि इस तरह की बातों की परवाह ना करें। अशोक गहलोत ने इसे सार्वजनिक तौर पर कुछ अरसा पहले तब जाहिर भी कर दिया था जब प्रदेश अध्यक्ष बदलने की चर्चा जोरों पर थी। तब गहलोत चन्द्रभान को बनाए रखने में सफल हुए थे।
यह सब बताने का कुल जमा आशय इतना ही है कि यशपाल गहलोत को आम लोगों में अपनी हैसियत बनाने के प्रयास करने चाहिए और कल्ला बन्धुओं को इसके लिए छूट भी देनी चाहिए और सहयोग भी करना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो इसका राजनीतिक लाभ कम से कम आगामी चुनावों में तो कल्ला बंधुओं को ही होगा, और वे इस आरोप से भी मुक्त होंगे कि यह भाई भाई बरगद का पेड़ हैं जो अपने नीचे किसी को पनपने नहीं देते। डॉ तनवीर, डॉ जयशंकर, बाबू जयशंकर, गुलाम मुस्तफा बाबूभाई, श्याम तंवर, जैसों की फेहरिस्त इसकी पुष्टि भी करती है। अन्यथा यशपाल भी भाजपा के शहर अध्यक्ष शशि शर्मा जैसे अध्यक्ष ही बने रहेंगे, जिनकी छिटपुट महत्त्वाकांक्षाएं ही हैं और एक दिन यशपाल भी दोनों ही पार्टियों के अधिकांश पिछले अध्यक्षों की तरह अध्यक्षीय सूची में दर्ज भर होकर रह जाएंगे।

27 जून, 2013

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