Thursday, June 20, 2013

सुराज यात्रा का बीकानेरी पड़ाव

राजस्थान भाजपा की सुराज संकल्प यात्रा के इस चरण का आज अन्तिम दिन है, कल की शहरी सभा में वसुन्धरा राजे ने श्रोताओं को बहुत ज्यादा इन्तजार नहीं करवाया, बावजूद इसके कि देशनोक से लौटते काफिले ने पलाना में भी पड़ाव डाल लिया था अन्यथा इस तरह की यात्राएं घंटों देर से चलती हैं। सुराज यात्रा शुरू हुई तब से ही 2003 वाला उत्साह आमजन में नहीं देखा जा रहा है, ऐसी मीडिया रिपोर्टें लगातार रही हैं। उम्मीदें बनाए नेता, छुटभइए और इनसे जुड़े कार्यकर्ता जरूर दुगुने जोश में देखे गये। उम्मीदें ना पूरी होने पर इस तरह के जोश जिस तरह ठण्डे होते हैं, वह पार्टी के लिए ज्यादा नुकसानदायक साबित होते हैं। उम्मीदी नेताओं और उनके समर्थकों के इस तरह के जोश को पार्टियों को परोटने की जरूरत होती है, जिन पार्टियों के इलाकाई खेवनहार ऐसी कूव्वत नहीं रखते हैं वह पार्टियां उन-उन इलाकों में नुकसान उठाती हैं।
वसुन्धरा की कल की सभा का आकलन भाजपा के लिए कोई प्रसन्नता की बात नहीं है। विभिन्न नेताओं के लाखों खर्च होने के बावजूद आमजन की भागीदारी निराशाजनक रही। तीस से पचास हजार तक लोगों को जुटा लेने की उम्मीदें फिस्स होती देखी गईं। इतनी बड़ी सड़क पर सभा के दौरान कार्यकर्ताओं, आए-गयों और तमाशबीनों को मिला कर भी आठ से दस हजार से ज्यादा श्रोता नहीं थे। जिनमें कुछ तो ऐसे थे मानो उन्हें केवल वसुन्धरा के दर्शन भर करने थे वसुन्धरा के अभिवादन के साथ ही कई लोग रवाना भी हो लिए।
2003 की परिवर्तन यात्रा में आमजन में व्याप्त निराशा, कर्मचारी वर्ग का रोष और कुछ जातीय समूहों के गुस्से को भुनाने में वसुन्धरा को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी थी। वैसा माहौल वसुन्धरा को इस सुराज संकल्प यात्रा में लगभग नहीं मिल रहा है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इन साढ़े चार सालों में अपनी कार्यशैली ही ऐसी रखी जिसमें 2003 वाली गुंजाइश नहीं छोड़ी।
उक्त आकलन के यह मानी कतई नहीं है कि बीकानेर जिले में कांग्रेस का रास्ता आसान है। कांग्रेस के लिए बीकानेर सबसे प्रतिकूल जिलों में से एक है। 2008 के चुनावों में मिली सात में दो सीटों से सबक लिया जाता और रणनीति बना कर कांग्रेस कुछ करती तो स्थिति कुछ सुधर सकती थी। दुर्भाग्य से इस जिले में कांग्रेस के पास एक भी ऐसा नेता नहीं है जो समन्वयक की भूमिका अदा कर सके या अपने निजी हितों से ऊपर उठ पार्टी हित की सोचे। जोधपुर संभाग में अशोक गहलोत, उदयपुर में सीपी जोशी और कुछ हद तक कोटा में शान्ति धारीवाल ऐसी भूमिका में देखे जा सकते हैं। बीकानेर के कांग्रेस के तुर्रम खां तक केवल अपनी तपेली के नीचे ही खीरे देते देखे जा सकते हैं। उनकी घोर आत्मविश्वासहीनता का ही परिणाम है कि कांग्रेस इस जिले में बदतर स्थिति में है।
कल वसुन्धरा की सभा में आमजन की उत्साही भागीदारी के अभाव के बावजूद भाजपा जिले में अच्छी स्थिति में है तो इसके लिए कांग्रेसी ही ज्यादा जिम्मेदार है। उन्हें इन साढ़े चार वर्षों में ऐसा कोई जतन करते नहीं देखा गया जिससे पार्टी की स्थिति सुधर सके। शहर की दो सीटों की ही बात करें तो पूर्व की सीट पर आज भी कांग्रेस के पास ऐसा कोई उम्मीदवार नहीं है जो सिद्धीकुमारी को हराना तो दूर उनके लिए चुनौती भी बन सके। पश्चिम की सीट पर बीडी कल्ला खुद भी आश्वस्त नहीं हैं कि इस बार यह सीट निकाल ले जाएंगे, उनकी उम्मीदें संभावित भाजपाई उम्मीदवार और भाजपा में उसके प्रति हो सकने वाले विद्रोह पर टिकी हैं। भाजपा ढंग का उम्मीदवार दे देती है और उस पर पार्टी के भीतर कोई बड़ा असंतोष नहीं होता है तो  फिर कल्ला का जयपुर का रास्ता आसान नहीं होगा! हालांकि पिछले एक अरसे से वे इसे लगातार नाप रहे हैं।

20 जून, 2013

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