Monday, July 30, 2018

जोधपुर मूल के दिल्लियन डॉ. राजू व्यास

एक है डॉ. राजू व्यास, अपनी फेसबुक आइडी अपडेट के हिसाब से डॉ. व्यास दिल्लियन यानी दिल्ली के हैं, फोर्टीज एस्कोर्ट हार्ट इन्स्टीट्यूट में वरिष्ठ परामर्शक हैं। इसी आईडी के हिसाब से वे अपने को मूलत: जोधपुर का बताते हैं। डॉ. व्यास अपने बीकानेरी सन्दर्भ में कुल जमा इतना ही मानते हैं कि उनकी स्कूली और महाविद्यालयी शिक्षा यहां हुई है। इस सबके बावजूद डॉ. व्यास प्रदेश कांग्रेस कमेटी में बीकानेर शहर की नुमाइन्दगी कर रहे हैं। राजनीति से उनका वास्ता इतना ही है कि यूपीए सुप्रीमो सोनिया के विश्वासी और कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल बोरा की बेटी के वे पति हैं। केवल इसी बिना पर और बीकानेर शहर में बिना किसी सार्वजनिक योगदान के भी वे प्रदेश कांग्रेस में प्रतिष्ठित नुमाइन्दगी हासिल किए बैठे हैं।

पद मिल गया औरऊपरतक पहुंच है तो कुछ ऐसे लोग जो या तो आत्म विश्वासहीन हैं या जो किसी अन्य की हैसियत के बूते कुछ हासिल करना चाहते हैं, वे डॉ. व्यास जैसों के लिएकहारकी भूमिका में गए हैं। अपने शहर में भी इस तरह की गुलाम मानसिकता से ग्रसित कम नहीं हैं। कम तो पूरे देश में भी नहीं है। क्योंकि सदियों की सामन्ती और उपनिवेशिक व्यवस्था के चलते हम गुलामी के आदि हो गये हैं। राष्ट्रीय स्तर पर राहुल गांधी से लेकर स्थानीय स्तर पर सिद्धिकुमारी तक ऐसी ही मानसिकता से लाभान्वित हैं। राहुल गांधी और शहर में सिद्धिकुमारी दोनों का सार्वजनिक जीवन में कभी कोई योगदान नहीं रहा लेकिन राहुल बिना जमीनी अनुभव के पच्चीस-पचास सालों से जमीनी राजनीति करने वालों की क्लास लेते हैं। जबकि सभी जानते हैं कि लोकतंत्र में जमीनी या व्यावहारिक राजनीति का कितना महत्व है। ठीक इसी तरह आजादी पूर्व के शासक परिवार की सिद्धिकुमारी जीरो जमीनी अनुभव के साथ चुनावी मैदान में उतरती हैं और वोटरों कीखम्माघणीमानसिकता के चलते भारी-भरकम वोटों से जीत भी जाती हैं।

बिना किसी जमीनी जुड़ाव के डॉ. राजू व्यास का सन्दर्भ भी लगभग राहुल-सिद्धि जैसा ही है। मोतीलाल बोरा का किसी भी तरह वास बीकानेर शहर के लोकचित्त में नहीं रहा। शायद इसीलिए व्यास शहर की सीटों से पार्टी टिकट मांगने का साहस तो नहीं करते हैं लेकिन अपने राजनीतिक अहम् की तुष्टि वे शहर केकहारोंके कन्धों पर बैठ कर ही रहे हैं।
डॉ. कल्ला से डॉ. व्यास का अहम् कब, कैसे और क्यों टकराया बता नहीं सकते। लेकिन हाल-फिलहाल की व्यावहारिक राजनीति में कल्ला की राह में और चुनाव पूर्व की औपचारिकताओं में एक बड़ा रोड़ा डॉ. व्यास बने हुए हैं। 1998 के चुनावों से पहले डॉ. कल्ला जब पार्टी-बदर और भारी संकट में थे, कहा जाता है तब उनके पुनर्वास में मोतीलाल बोरा का भी योगदान था। राज-रुचि का यह अलग विषय हो सकता है कि डॉ. कल्ला मोतीलाल वोरा की अनुकम्पा को सहेज कर क्यों नहीं रख सके, पर नतीजा सामने है कि पार्टी संगठन में वोरा के दामाद डॉ. राजू व्यास बिना किसी जमीनी हैसियत के ना केवल उनके मुखर विरोधी हैं बल्कि खेल बिगाड़ने की हैसियत में दिखाई दे रहे हैं।
डॉ. व्यास को शायद बीकानेर शहर की जमीनी राजनीति करनी नहीं है या इसे यूं भी कह सकते हैं कि उन्हें अपनी जमीनी हैसियत की असलियत पता है। इसीलिए वे कल्ला से अपनी खुन्दक दूसरों के माध्यम से निकालने की फिराक में हैं। लेकिन उन्हें यह जरूर पता होगा कि डॉ. कल्ला ने पिछले तैंतीस सालों में पार्टी टिकट लाने जितनी हैसियत तो बना ही ली है। यह अलग बात है कि डॉ. कल्ला नेसाहबबनकर आम अवाम से अपने को लगातार दूर रखा, जिसके नतीजे वे दो बार तो भुगत चुके हैं, और इसी के चलते अपने अगले चुनाव परिणामों को लेकर भी वे आशंकित ही हैं।

3 अगस्त, 2013

Thursday, July 26, 2018

मुख्यमंत्रीजी! 2013 की सुराज संकल्प यात्रा में बीकानेर से किये ये पांच वादे आज भी अधूरे हैं


सूबे की मुखिया वसुन्धरा राजे 27 जुलाई को बीकानेर में होंगी। बाद इसके 'गौरव यात्रा' के लिए अगस्त में उन्हें फिर बीकानेर आना है।
राजस्थान की सभी शासन व्यवस्थाओं में बीकानेर को हाशिए पर रखा गया है, हाल के वर्षों की बात करें तो अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकारों ने जयपुर, जोधपुर, कोटा, अजमेर जैसे शहरों पर खूब मेहरबानी दिखाई, बीकानेर उनके लिए शायद अंत्योदय की श्रेणी में नहीं था। बात वसुन्धरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा सरकारों की करें और 2008 की बात छोड़ दें जब राज्य स्तरीय स्वतंत्रता समारोह बीकानेर में मनाया गया और उस बहाने ना केवल सूरसागर की सफाई हुई बल्कि जिन रास्तों से वसुन्धरा का गुजरना था और जहां पड़ाव डालना था, वहां रात-दिन एककर काम करवाए गये। शेष शहर का हिस्सा तो तब इनके लिए भी हाशिए वाली ही बात थी।
2013 के चुनावों से पूर्व सुराज संकल्प यात्रा के बीकानेर पड़ाव पर वसुन्धरा राजे ने जो चुनावी वादे किए, वे सभी आज भी जुमलों की गति को हासिल हैं। हालांकि जून, 2014 में 'सरकार आपके द्वार' अभियान के अन्तर्गत वसुंधरा राजे जब लगभग पखवाड़ा बीकानेर रहीं तो लगा कि कुछ होगा। लेकिन 'ढाक के पात वही तीन'
2008 में कांग्रेस की जाती हुई सरकार ने बिना मन से तकनीकी विश्वविद्यालय की घोषणा जरूर की लेकिन उसकी वैधानिक औपचारिकताएं अशोक गहलोत सरकार ने पूरी नहीं की, नतीजा यह हुआ कि बीकानेर को दिया गया तकनीकी विश्वविद्यालय वसुंधरा राजे की सरकार में 4 वर्ष तक लटकता रहा। चार वर्ष बाद मिले इस तकनीकी विश्वविद्यालय को वसुंधरा दिया भले ही मान लो, वसुंधरा राजे के किए शेष सब वादे तो जुमले ही लग रहे हैं। शीर्षक में उल्लेखित पांच वादों में से कोलायत के कपिल सरोवर में कमल बेलों की देवीसिंह भाटी के प्रयासों से एक बार सफाई जरूर हुई लेकिन तालाब में पानी आने के बाद कमल उसमें फिर पसरने लगा है।
2008 की अपनी सुराज संकल्प यात्रा के दौरान वसुन्धरा राजे ने जो वादे किये थे, जून 2014 के अपने आलेख में 'सरकार आपके द्वार' अभियान के समय भी याद दिलाए, फिर जब दिसम्बर, 2016 में मुख्यमंत्री फिर बीकानेर आयीं, तब भी एक आलेख के माध्यम से दोहराया।
अब फिर राजे बीकानेर आ रही हैं और सुराज संकल्प यात्रा के दौरान किये वादों को पांच वर्ष हो रहे हैं तो
8 दिसम्बर, 2016 के अपने आलेख के अंशों को उसी शीर्षक से साझा करने की जरूरत लगी है, पाठक उसे ज्यों-का-त्यों पढ़ लें-समय व परिस्थितियों के अनुसार इनमें कोई आंशिक बदलावों की जरूरत है, उनका उल्लेख हमने इसी शृंखला के आलेख में किया है। पाठक भी तद्नुसार मान कर पढ़ें।
     बीच शहर से गुजरती रेललाइन और जिसके चलते चौबीसों घंटे कष्ट भुगतते यहां के बाशिन्दे आज भी त्रस्त हैं। राजे ने इसके समाधान का वादा न केवल 2013 की सुराज संकल्प यात्रा में किया बल्कि 2014 में 'सरकार आपके द्वार' में भी उम्मीदें बढ़ाईं। इतना ही नहीं, बीकानेर में आयोजित पिछली मंत्रिमंडलीय बैठक में यह तय ही हो गया कि कोटगेट और सांखला रेल फाटकों से उपजी यातायात समस्या के समाधान के तौर पर वसुंधरा राजे के ही राज में 2006-07 में स्वीकृत एलिवेटेड रोड का निर्माण तुरन्त शुरू करवा दिया जाएगा। इतना ही नहीं, इसके लिए धन भी जब केन्द्र सरकार ने देना तय कर लिया, बावजूद इसके यह योजना....कहां धूड़ फांक रही है। पहले सुना कि सितम्बर, 2016 में राजे इसके शिलान्यास के लिए बीकानेर आ रही हैं। वह बात तो जाने कहां आई-गई हो गयी। तकलीफ तो यह है कि राजे की आगामी यात्रा में भी एलिवेटेड रोड के शिलान्यास की कोई सुगबुगाहट नहीं है।
     शहर के आधे से भी कम हिस्से में सीवर लाइन है और जो है उनमें भी अधिकांश जर्जर हो चुकी है। पूरे शहर के लिए सीवर लाइन की इकजाही योजना बनाकर काम करवाने की जरूरत है। यह वादा भी सुराज संकल्प यात्रा का ही है। इस पर कभी कुछ आश्वासन सुनते हैं और फिर उन आश्वस्तियों का विलोपन हो जाता है। क्या इस पर कोई ठोस घोषणा की उम्मीद आपकी आगामी यात्रा से रखें या इस ओर से भी निराशा ओढ़ कर दुबक जाएं?
     बीकानेर का कृषि विश्वविद्यालय केन्द्रीय विश्वविद्यालय होने की तकनीकी और भौगोलिक दोनों तरह की अर्हताएं पूरी करता है और इसी बिना पर इसके स्वरूप को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिए जाने की जरूरत समझी जाती रही। इस हेतु बार-बार आश्वासन भी मिलते रहे। स्वयं राजे ने सुराज-संकल्प यात्रा में इसके लिए वादा किया था। केन्द्र में भाजपा की सरकार को भी ढाई वर्ष हो लिए हैं। विपक्ष की सरकार होती तो फिर भी एक राजनीतिक बहाना था। केन्द्र और राज्य की जुगलबंदी के इस राज में ही बीकानेर को एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय राजे दिलवा दें तो अपने वादे को ही वे पूरा करेंगी।
     भारतीय संस्कृति की धरोहर मानी जाने वाली कपिल मुनि की तप-स्थली का सरोवर अपनी दुरवस्था को हासिल हो समाप्त होने को है। कमल की एक नस्ल ने तो उसका स्वरूप बहुत कुछ नष्ट कर दिया है। राजे ने सुराज संकल्प में इस तालाब की आगोर को संरक्षण देने की बात की थी। पता नहीं मुख्यमंत्रीजी को यह वादा अब याद है कि नहीं।
     सुराज संकल्प के दौरान किए गए जो पांच वादे पूरे नहीं हुए उनमें से आखिरी सूरसागर को लेकर किए वादे को कुछ संशोधन के साथ वसुंधराजी को याद दिलाना जरूरी है। 'सरकार आपके द्वार' के बीकानेरी पड़ाव के दौरान राजे ने गजनेर पैलेस में बीकानेर से संबंधित सुझावों के लिए कुछ संपादकों-पत्रकारों को आमंत्रित किया था। उस दौरान हुई अन्य बातों में सूरसागर को लेकर मेरे द्वारा दिए इस प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री सहमत हुईं कि सूरसागर को कृत्रिम साधनों से भरे रखना बेहद मुश्किल है और पिछले आठ वर्षों में नहरी और नलकूपों से इसे भरे रखने का प्रयास सफल नहीं हुआ है। तब जो सुझाव दिया गया था वह यह कि सूरसागर के तले को मरुउद्यान (डेजर्ट पार्क) के रूप में विकसित करने का था जिसमें थार रेगिस्तान के पेड़-पौधे और अन्य स्थानीय वनस्पतियों के साथ इस क्षेत्र के उन जीव-जन्तुओं को भी रखा जाए जिनकी इजाजत वन विभाग दे सकता है। उस समय मुख्यमंत्री इस सुझाव पर ना केवल सकारात्मक हुईं बल्कि जाते-जाते जो उन्होंने घोषणाएं की उनमें डेजर्ट पार्क की घोषणा भी थी। लेकिन लगता है इसमें गड़बड़ यह हुई कि मुख्यमंत्रीजी से अधिकारियों तक पहुंचते-पहुंचते इस सुझाव में से इसका स्थान सूरसागर ही छिटक गया और केवल घोषणा भर रह गई। वह घोषणा आज भी कहीं धूड़ फांक रही है। मुख्यमंत्रीजी! सूरसागर को यदि मरुउद्यान के तौर पर विकसित कर प्रवेश शुल्क रखा जाए तो जूनागढ़ के सामने होने से ना केवल इसे पर्यटक मिलेंगे बल्कि पानी भरने के खर्चे से बने इस सफेद हाथी से नगर विकास न्यास को छुटकारा भी मिलेगा। डार्क जोन में जा रहे इस क्षेत्र में पानी की बर्बादी रुकेगी, वह अलग।
अन्त में मुख्यमंत्रीजी से यही उम्मीद की जाती है कि सुराज संकल्प के उक्त पांच वादों के पूरे होने का हक यहां के बाशिंदे रखते हैं और यह भी उम्मीद करते हैं कि मुख्यमंत्री इस अवसर पर इन वादों को समयबद्ध सीमा में पूरा करने का आदेश देकर अपने बीकानेरी मोह को अनावृत करेंगी।
दीपचन्द सांखला
26 जुलाई, 2018

Thursday, July 19, 2018

बीकानेर में बरसाती पानी की समस्या : महापौर, न्यास अध्यक्ष और मण्डल रेल प्रबंधक मिल बैठें तो समाधान बहुत कुछ संभव


चिर-परिचित आंधियों और उमस के बाद शहर में पानी कुछ बरसा तो हम उंगलियां ऊपर करके कोसने लगे। बडेरों के चलवे गांव-शहर को ऊपरी जगह या पहाड़ों की आड़ देखकर इसलिए बसवाते कि बाशिन्दे प्राकृतिक आपदाओं से बच सकें। बीकानेर शहर भी जहां से बसना शुरू हुआ वह हिस्सा इस जांगल भू-भाग का सबसे ऊंचा स्थान है। कुछ तो शहर की आबादी बढ़ने से, कुछ विकास के शहरी मॉडल के चलते, तो बहुत कुछ स्वास्थ्य सेवाओं की बदौलत शिशु मृत्युदर पर नियन्त्रण से यहां की आबादी ना केवल बढ़ती गईबल्कि यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि विकराल होती गई। पसरते शहर को लखाव ही नहीं पड़ा कि कहां बसना है और कहां नहीं? बरसाती पानी के एक मुख्य पड़ाव गिन्नानी में बसावट हुए सदियां बीत रही हैं, बरसात से सबसे ज्यादा त्रस्त यही इलाका होता है।

दैनिक भास्कर ने बुधवार को अच्छे से जिम्मेदारी निभाई और समस्या को समझने-समझाने की कोशिश की। जो भी कारण भास्कर ने गिनाए वे अपनी जगह हैं और समाधान भी अपनी। मसाणिया बैराग के हवाले से कहें तो इन सब पर ध्यान दिया ही जाना चाहिए।

इस बैराग-उवाच में कुछ योगदान करने की सूझी तो आहुति दे ही लेते हैं
गिन्नानी, सूरसागर, जूनागढ़ और नगर निगम कार्यालय का क्षेत्र बरसाती पानी का विशेष डूब क्षेत्र है। बरसात का पानी यहां दो तरफ से आता है। नई व पुरानी, दोनों गजनेर रोड तथा उन दोनों के बीच के क्षेत्र से आने वाला बरसाती जल और परकोटाई शहर का अधिकांश बरसाती पानी जो कोटगेट, महात्मा गांधी रोड होते हुए अपना गन्तव्य गिन्नानी और सूरसागर क्षेत्र को ही बनाता है। यहां इकट्ठे हुए इस पानी को जैसे-तैसे ढकेल कर राजविलास, पीबीएम, रानी बाजार ओवरब्रिज होते हुए वल्लभ गार्डन तक पहुंचाया जाता है।

दोनों गजनेर रोड वाले पानी को तो सूरसागर के आसपास बने नालों-पाइपों को साफ रखकर गुजारा जा सकता है इसलिए कोटगेट क्षेत्र से आने वाले पानी का दबाव कम किया जाए तभी सूरसागर पास के डाइवर्जन पाइप सुचारु काम कर सकेंगे।

इसके लिए निम्न उपाय किये जा सकते है :
जेल रोड, सिक्कों की मस्जिद से आने वाले बरसाती पानी को सादुल स्कूल के सामने मल्होत्रा बुक डिपो के पीछे बना चेम्बर, जो कोटगेट सब्जीमंडी, लाभूजी कटले के नीचे से बने रियासती नाले से सट्टा बाजार, मटका गली होते हुए रेलवे क्षेत्र के खुले नाले से जोड़ा हुआ था, शहर से आने वाले गंदे और बरसाती पानी की अधिकांश निकासी इसी नाले से होती थी। आजादी बाद ढंग से सफाई नहीं रहने के चलते बीते तीस-चालीस वर्षों से यह नाला लाभूजी कटले के नीचे डटा पड़ा है, सुना यह भी कि लाभूजी कटले के कुछ दुकानदारों ने अपनी दुकानों के नीचे वाले नाले के हिस्से के इर्द-गिर्द दीवारें बनाकर उसे अण्डरग्राउण्ड गोदाम के तौर पर काम लेने लगे हैं। राज चाहे तो क्या नहीं हो सकता है? आरयूआईडीपी ने इस भूमिगत नाले को साफ करवाने की 2003 में एक कोशिश की थी, राज की मंशा साथ नहीं थी सो मल्होत्रा बुक डिपो के पीछे के चेम्बर से डाइवर्जन देकर कोटगेट, सट्टा बाजार लाकर उसे पुराने नाले में मिला दिया गया। सट्टा बाजार के जाली लगे चेम्बर इसके गवाह हैं। लेकिन 'चेपेके ऐसे उपाय निहाल कितना'क करते। लाभूजी के कटले के नीचे का नाला पर्याप्त लम्बाई-चौड़ाई का है। कटला बनने से पहले के इस पक्के नाले का उल्लेख ना केवल रियासती पट्टे में होगा बल्कि इजाजत तामीर में भी इस नाले का उल्लेख सशर्त रहा होगा।

यह उपाय तो हुआ उस बरसाती पानी का जो बड़ा बाजार क्षेत्र से जेल रोड और सिक्कों के मुहल्ले से होता हुआ कोटगेट होकर गुजरता है लेकिन मोहता चौक, तेलीवाड़ा और दाउजी रोड के इर्द-गिर्द का जो बरसाती पानी अभी कोटगेट से महात्मा गांधी रोड होकर गिन्नानी, सूरसागर के क्षेत्रों में त्राहिमाम मचाता है उसका एक हद उपाय यह भी हो सकता है
कोटगेट रेलवे फाटक पर कोटगेट की तरफ और सांखला फाटक पर नागरी भण्डार की तरफ सड़क पर 3 फीट चौड़ा और चार फीट गहरा नाला बनाकर काऊकेचर जैसी गर्डर चैनल की मजबूत जाली से ढक दिया जाए और शेष रहे खुले नाले को रेलवे की दीवार के साथ होते-होते रेलवे स्टेशन के पहले के खुले नाले में मिला दिया जाए तो इन दोनों तरफ से सूरसागर की ओर जाने वाले पानी को काफी हद तक यहीं से डाइवर्ट किया जा सकता है।

इस में काम यूं बांटा जाय कि लाभूजी के कटले के नीचे का नाला नगर निगम साफ करवायेगा और दोनों फाटकों वाले नाले का निर्माण न्यास करवादे और रेलवे इसकी इजाजत तुरंत इस शर्त पर दे दे कि इन नालों की सफाई रखने का जिम्मा एमओयू करके नगर निगम ले ले। 

रही बात धन की तो भास्कर में दिये बयान के आधार पर पश्चिम के विधायक गोपाल जोशी तैयार हैं और पूर्व की विधायक सिद्धिकुमारी भी अपने विवेक कोटे से धनराशि दे ही देंगी, क्योंकि उनके क्षेत्र को ही इस काम से सबसे ज्यादा राहत मिलेगी। धन की फिर भी कमी रहे तो सांसद अर्जुनराम मेघवाल पांव खींचेंगे नहीं। सामंजस्य बिठाकर कार्य में तत्परता बरती जाये तो यह काम इतना बड़ा नहीं है कि चुनावी आचार संहिता लगने से पहले हो ना सके। यदि ऐसा हो जाता है तो गिन्नानी-सूरसागर क्षेत्र के बाशिन्दों को भले ही तत्काल राहत नहीं मिले, अगले मानसून में काफी कुछ निश्चिंत हो लेंगे।

अगर यह हो जाता है तो शहर के भीतरी हिस्से का वह बरसाती पानी जो गिन्नानी-सूरसागर पहुंच त्राहिमाम मचा कर माजीसा का बास, राजविलास कॉलोनी, पीबीएम होते हुए रानी बाजारओवरब्रिज पहुंचाया जाता है, वह कोटगेट से ही डाइवर्ट होकर रेलवे क्षेत्र के नाले से सीधे रानी बाजार रेलवे ओवरब्रिज होता हुआ गंतव्य वल्लभ गार्डन पहुंच जायेगा।

महापौर नारायण चौपड़ा, न्यास अध्यक्ष महावीर रांका अपने इस शहर को इस तरह बड़ी राहत दे सकते हैं। सदाशयी मण्डल रेल प्रबंधक अनिल दुबेजो आते ही यहां के हो लिए थे, उन्हें भी ये सब होते देखना अच्छा ही लगेगा। जब रेलवे डीआरएम की बात हो ही रही है तो क्यूं नहीं दुबेजी बीकानेर रेलवे स्टेशन के मुख्य द्वार के आगे जमा होने वाले बरसाती पानी से राहत दिलाने की सोचें। रेलवे लाइनों के नीचे से एक खुला बरसाती नाला बनाने की योजना बनाएं जिससे स्टेशन के मुख्य द्वार के आगे जमा होने वाला बरसाती पानी तुरंत बहकर रेलवे क्षेत्र से गुजरने वाले बड़े नाले तक पहुंच जाए। इस नाले का निर्माण और रखरखाव रेलवे अपने जिम्मे ले तो उसके अपने यात्रियों को रेलवे स्टेशन पहुंचने में बड़ी सुविधा मिल सकेगी। 
दीपचन्द सांखला
19 जुलाई, 2018

Thursday, July 12, 2018

बीकानेर व्यापार उद्योग मण्डल : असल कौनसा है, तय हो गया


जिले के उद्यमियों की प्रतिनिधि संस्था बीकानेर व्यापार उद्योग मंडल के चिर-प्रतीक्षित चुनाव आखिर 8 जुलाई 2018 को हो ही गये। कुल 325 मतदाताओं में से 278 ने मतदान में भाग लेकर इन चुनावों को ना केवल असल बल्कि आधिकारिक निर्वाचन भी साबित कर दिया। वैसे किसी संस्था का चुनाव 85.54 प्रतिशत मतदान के  साथ हो तो उसे असल साबित करने को किसी अन्य सबूत की जरूरत नहीं होती।

इससे पूर्व इस संगठन के आधिकारिक चुनाव 27 जनवरी, 2009 को हुए थे। शहर के उद्यमियों ने तब बड़े भरोसे के साथ शहर में सर्वाधिक प्रतिष्ठ माने जाने वाले व्यवसायी शिवरतन अग्रवाल को यह मानकर अध्यक्ष चुना था कि वे व्यक्तिगत एषणाओं से उठकर संगठन को व्यवस्थित करने का काम करेंगे। लेकिन इस संगठन के इतिहास में वे संभवतः सर्वाधिक नकारात्मक अध्यक्ष साबित हुए। संस्था संविधान के  हिसाब से प्रति दो वर्ष में नई कार्यकारिणी चुनी जानी चाहिए।  हलांकि जनवरी 2009 से पूर्व भी निर्वाचन समय पर नहीं होते थे। लेकिन उम्मीद थी कि शिवरतन अग्रवाल 26 जनवरी, 2011 से पूर्व चुनाव करवा देंगे, लेकिन इस जिम्मेदारी में वे अपने पूर्ववर्तियों से भी ज्यादा गैर-जिम्मेदार निकले।

हां, 3 दिसम्बर, 2011 को उन्होंने इस्तीफा देने का ढोंग जरूर किया, ढोंग कहना अनर्गल इसलिए नहीं है कि उसके  बाद से वे हाल तक पद से चिपके रहे। पद पर चिपके  नौ वर्ष बीतते ना बीतते कुछ ग्लानि होने लगी होगी, शायद इसीलिए 19 जून, 2018 को पुलिस की मदद से माहेश्वरी भवन में चुनाव के नाम पर कोथली में गुड़ फोड़ा गया। कई तरह से संदिग्ध इस चुनाव को स्थान भी संदिग्ध बनाता है। मण्डल के  अपने कार्यालय में सभा-गोष्ठी जैसे कार्यों के लिए ठीक-ठाक आकार का हॉल बना है, जो चुनाव करने-कराने वालों के ही कब्जे में है तो दूसरे भवन में चुनाव करवाने की जरूरत समझ से परे है। अलावा इसके 19 जून के उस चुनाव में मण्डल के उन्हीं मतदाताओं को अन्दर जाने दिया जो कोथली में गुड़ फोड़ने वालों के भरोसे के थे, शेष को पुलिस की मदद से रोका गया। हो सकता है जहां मण्डल का भवन है, उस क्षेत्र के थाने विशेष ने सेवाएं उपलब्ध करवाने से इनकार कर दिया हो तो जहां सुविधा मिली वहां चुनाव करवा लिए।

मण्डल के निवर्तमान पूर्व अध्यक्ष शिवरतन अग्रवाल ने 9 वर्षों से ज्यादा समय तक अपनी इच्छाएं और अपने 'सरकिटों' के लालच अच्छे से पूरे कर लिए होंगे तभी उन्हें बैटन दूसरों को पकड़वाने की सूझी होगी। 

बावजूद इस सब के  शहर में शिवरतन अग्रवाल की प्रतिष्ठा अभी भी है, उसी का खयाल रखते हुए सज्जनता से उन्हें ना केवल तत्संबंधी सभी मुकदमें वापस ले लेने चाहिए बल्कि भवन तथा अन्य जरूरी दस्तावेज 8 जुलाई के  चुनावों में चुने गये अध्यक्ष तथा उनके द्वारा कार्यकारिणी घोषित करने के बाद बनी नई टीम के सुपुर्द कर देने चाहिए। प्रतिष्ठा ऐसी तुच्छताओं से बहुत बड़ी होती है।

संरक्षक मण्डल और नई कार्यकारिणी के दायित्व
अब तक जो हो लिया उसे छोड़ें लेकिन अब इसकी पुख्ता व्यवस्था करें कि संस्था में इस तरह की परिस्थितियों की पुनरावृत्ति ना हो। जिन 85 से ज्यादा प्रतिशत सदस्यों ने संरक्षक परिषद् के माध्यम से 8 जुलाई के चुनाव में नये अध्यक्ष में विश्वास जताया है, वे इस भरोसे को मान देवें।

संरक्षक परिषद और नई कारिकारणी का दायित्व है कि सबसे पहले मण्डल के विधान की विसंगतियों को दूर करने के लिए गहन विचार-विमर्श के बाद उसमें व्यापक संशोधन कर संविधान को पुन: पारित करवाएं। फिर उसके अनुरूप ना केवल संरक्षक परिषद् बल्कि कार्यकारिणी के आगामी चुनाव भी समयावधि में करवाना सुनिश्चित करें। यह देखना मण्डल का ही दायित्व है कि मण्डल से संबद्ध विभिन्न व्यापार संघों के चुनाव भी उनके  अपने विधान के अनुसार तय समयावधि में हो रहे हैं या नहीं। इसके  लिए मण्डल ऐसे सभी संबद्ध संघों के विधान अपने यहां फाइल करवाएंं बल्कि एक ऐसा दीवार चार्ट बना कर अपने कार्यालय में लगवाएंं, जिसमें प्रत्येक संघ की चुनावी तारीखें और प्रक्रिया की सूचना हर आगन्तुक देख सके। मण्डल अपनी यह जिम्मेदारी भी तय करे कि संबद्ध व्यापारिक संघों को उनके चुनाव की तारीख से तीन माह पूर्व ही चुनाव करवाने का ना केवल स्मरण करवाएंं बल्कि यह भी सुनिश्चित करेंं कि विभिन्न संघों के चुनाव तय समय पर हो रहे हैं कि नहीं। इतना ही नहीं, संबद्ध संघ के चुनाव के दिन मण्डल का एक पर्यवेक्षक उनके  चुनाव स्थल पर उपस्थित भी रहे।

इससे ना केवल सभी संबद्ध संघ अपनी वैधानिक प्रक्रियाओं को पूरा करने को प्रेरित होंगे, बल्कि इससे खुद मंडल भी अपने को वैधानिक तौर पर सक्रिय रख सकेगा। यदि ऐसा होगा तो अवांछित लोग ऐसे संगठनों पर कभी भी काबिज होने का दुस्साहस नहीं कर पाएंगे और अगर हाल की सक्रियता केवल संकटकाल के लिए ही थी और फिर मण्डल के लिए समय नहीं निकालना हो तो ऐसे ही संकट के लिए अपने को बार-बार तैयार रखना होगा।
दीपचन्द सांखला
12 जुलाई, 2018

Thursday, July 5, 2018

नवनियुक्त प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सैनी ने बहुत कुछ खुद ही उगल दिया


राजस्थान प्रदेश भाजपा को लगभग ढाई महीने बाद मिले अध्यक्ष मदनलाल सैनी को फर्स्ट इंडिया के 'न्यू जेसी शो' से वे भी ठीकठाक समझ सकते हैं, जो सैनी को खास जानते-समझते ना हों।

प्रादेशिक भाजपाई राजनीति के संदर्भों से बात करें तो पूर्व अध्यक्ष अशोक परनामी और सैनी में अंतर यही है कि चतुर परनामी की लगाम की दोनों डोरियां सूबे की भाजपाई सुप्रीमो वसुंधरा राजे के हाथ थीं तो वर्तमान अध्यक्ष मदनलाल सैनी की लगाम की एक डोरी वसुंधरा के हाथ तो दूसरी संगठन महासचिव चंद्रशेखर मिश्र के माध्यम से अमित शाह के हाथ रहेगी। ऐसे में पार्टी को सरपट दौड़ाये रखने का दारमदार सैनी से ज्यादा उन पे रहेगा, जिनके हाथों में उनकी लगाम है। उक्त उल्लेखित साक्षात्कार सुनने के बाद इतना कह सकते हैं कि सैनी में वह कूवत तो है जिसमें लगाम की दोनों डोरियों के खिंचाव और छूट को समझ-बूझकर संतुलन रख सकें।

उक्त बातचीत को सुन-समझ कर लगता है कि फर्स्ट इंडिया टीवी के जगदीशचंद्र भी सैनी के मिजाज को पहले से भांप गए थे, शायद इसीलिए 'जेसी' बात उगलवाने के अपने चिरपरिचित अंदाज से उलट यहां लो-प्रोफाइल रहे।

1943 में जन्मे मदनलाल सैनी 1952 में 9 वर्ष की उम्र से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए और तब से इसी के होकर रह गए। आजीविका के लिए 1970 से 75 तक वकालत भी आजमाई लेकिन लौटकर 'संघम् शरणम्' आ लिए और भारतीय मजदूर संघ और बाद में किसान मोर्चा को संभालने लगे।

संघ ही क्यों, सभी जगह कुछ भले लोग भी होते हैं। उक्त बातचीत से सहज और निर्मल मन के लगे सैनी ने कभी अपनी महत्त्वाकांक्षाएं जाहिर नहीं होने दी, शायद इसीलिए लम्बे समय तक वे संघ के अनुषंगी संगठनों में ही सेवाएं देते रहे। युग की जैसी सचाई है, दूध के धुले होने के दावे करते संगठनों को भी सत्ता में अपनी पुख्ता हिस्सेदारी चाहिए होती है, ऐसे में संघ से तो दूसरे तरीके की उम्मीदें की ही नहीं जा सकती। सैनी की संघनिष्ठा और कर्मठता दोनों ने आखिर काम किया, देर से ही सही--1990 के राजस्थान विधानसभा चुनावों में भाजपा के माध्यम से सैनी व्यावहारिक राजनीति में आ लिए और उदयपुरवाटी से विधायक चुन लिए गए। बाद उसके 1991 और 1998 में जाट प्रभावी झुंझुनूं लोकसभा सीट से भी भाजपा द्वारा आजमाए गए, लेकिन दोनों बार सैनी वहां से हार गए।

राजनीति में कोई गॉडफादर होने से इनकार करने वाले सैनी सफा नुगरे भी नहीं हैं, उन्होंने स्वीकारा भी कि उन्हें ठीक करने और बनाने में बहुतों का योगदान है, प्रदेश के वरिष्ठों में वे हरिशंकर भाभड़ा और भैरोंसिंह शेखावत का उल्लेख सम्मान से करते हैं। ओम माथुर को तो वे आत्मविश्वास से साथी बताने में भी संकोच नहीं करते। अपने साक्षात्कार में सैनी ने वसुंधरा राजे का उल्लेख जब भी किया उससे लगा, सैनी को मिली इस नई जिम्मेदारी में राजे का योगदान भी कम नहीं है। शेष तो संघ और पार्टी के लिए निष्ठा से उनके द्वारा किया काम ही काम आया।

विचारधारा के मामले में सैनी भी अन्य संघनिष्ठों से कम आत्ममुग्ध नहीं हैं। पार्टी के दोनों दिग्गजोंनरेंद्र मोदी और अमित शाह की बिरुदावली गाने की चतुराई से भी वे नहीं चूकते।

सर पर आई चुनावी चुनौतियों का उन्हें अच्छे से भान है, चुनाव संबंधी प्रश्नों के जवाब उन्होंने ना केवल सावचेती  से दिए बल्कि दिए उत्तरों से लगा कि उन्हें इस बात का अहसास है कि चुनावी डगर आसान नहीं।

कांग्रेस के हवाले से भ्रष्टाचार की बात करते हुए सैनी ने यह जता भी दिया कि यह ऐसी बुराई है जिसके साथ चलना अब सबकी मजबूरी हो गया है। उनका मानना है कि भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने में कांग्रेस ने तो कभी रुचि भी नहीं दिखाई, भाजपा उस पर अंकुश (समाप्त नहीं) लगाने की बात तो करती है।

कांग्रेस और भाजपा में सांगठनिक अंतर दरसाते हुए संघ के 42 अनुषंगी संगठनों के सहयोग की ताकत और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की अच्छी प्लानिंग व मॉनीटरिंग के हवाले से सैनी अपने को आश्वस्त करने की भी कोशिश करते हैं। लेकिन प्रश्न फिर वही आ खड़ा होता है कि उल्लेखित सांगठनिक ताकत व शाह की काबिलीयत के बावजूद भाजपा के लिए इस बार राजस्थान में कुछ भी आश्वस्ति कारक नहीं दीखता।

भाजपा और कांग्रेस में अन्तर का जिक्र करते हुए सैनी बताते हैं कि भाजपा के पास संघ के अनुषंगी संगठनों के निष्ठावान कार्यकर्ताओं की ताकत है उसकी बराबरी कांग्रेस किसी मानी में नहीं कर सकती। ऐसे में कांग्रेस को इस पर विचार करना चाहिए कि उसके पास सांगठनिक ताकतों की नदारदगी और अमित शाह की चतुराई पूर्ण कार्यशैली के अभाव के बावजूद राजस्थान में एन्टी-इनकम्बेंसी की जो अनुकूलताएं फिलहाल बनी हैं, उसमें खुद कांग्रेस का अपना पुरुषार्थ क्या और कितान'क है? भाजपा से लम्बे समय तक मोर्चा लेने के लिए विचारों से उस जैसा होने से ज्यादा जरूरी व्यापक सांगठनिक ढांचेे का होना और शाह जैसी कर्मठता से पार्टी को हांके रखना ज्यादा जरूरी है, जिसकी फिलहाल कोई संभावना कांग्रेस मेंं दीख नहीं रही है।

लब्बोलुआब यह कि जैसा लग रहा हैआगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर रंग-ढंग भाजपाई शिखर में ढलान के लग रहे हैं, ऐसे में ढाई महीनों की बड़ों की इस लड़ाई के बाद अध्यक्ष पद पर प्रतिष्ठ भले दीखने वाले सैनी कहीं चिगदीज नहीं जाएं।
दीपचन्द सांखला
5 जुलाई, 2018