चिर-परिचित आंधियों और उमस के बाद शहर में पानी कुछ बरसा तो हम उंगलियां ऊपर
करके कोसने लगे। बडेरों के चलवे गांव-शहर को ऊपरी जगह या पहाड़ों की आड़ देखकर
इसलिए बसवाते कि बाशिन्दे प्राकृतिक आपदाओं से बच सकें। बीकानेर शहर भी जहां से
बसना शुरू हुआ वह हिस्सा इस जांगल भू-भाग का सबसे ऊंचा स्थान है। कुछ तो शहर की
आबादी बढ़ने से, कुछ विकास के
शहरी मॉडल के चलते, तो बहुत कुछ
स्वास्थ्य सेवाओं की बदौलत शिशु मृत्युदर पर नियन्त्रण से यहां की आबादी ना केवल
बढ़ती गई—बल्कि यह कहना अतिशयोक्ति
नहीं कि विकराल होती गई। पसरते शहर को लखाव ही नहीं पड़ा कि कहां बसना है और कहां
नहीं? बरसाती पानी के एक मुख्य
पड़ाव गिन्नानी में बसावट हुए सदियां बीत रही हैं, बरसात से सबसे ज्यादा त्रस्त यही इलाका होता है।
दैनिक भास्कर ने बुधवार को अच्छे से जिम्मेदारी निभाई और समस्या को
समझने-समझाने की कोशिश की। जो भी कारण भास्कर ने गिनाए वे अपनी जगह हैं और समाधान
भी अपनी। मसाणिया बैराग के हवाले से कहें तो इन सब पर ध्यान दिया ही जाना चाहिए।
इस बैराग-उवाच में कुछ योगदान करने की सूझी तो आहुति दे ही लेते हैं—
गिन्नानी, सूरसागर, जूनागढ़ और नगर निगम कार्यालय का क्षेत्र
बरसाती पानी का विशेष डूब क्षेत्र है। बरसात का पानी यहां दो तरफ से आता है। नई व
पुरानी, दोनों गजनेर रोड तथा उन
दोनों के बीच के क्षेत्र से आने वाला बरसाती जल और परकोटाई शहर का अधिकांश बरसाती
पानी जो कोटगेट, महात्मा गांधी
रोड होते हुए अपना गन्तव्य गिन्नानी और सूरसागर क्षेत्र को ही बनाता है। यहां इकट्ठे हुए इस पानी को जैसे-तैसे ढकेल कर राजविलास,
पीबीएम, रानी बाजार ओवरब्रिज होते हुए वल्लभ गार्डन तक पहुंचाया
जाता है।
दोनों गजनेर रोड वाले पानी को तो सूरसागर के आसपास बने नालों-पाइपों को साफ
रखकर गुजारा जा सकता है इसलिए कोटगेट क्षेत्र से आने वाले पानी का दबाव कम किया
जाए तभी सूरसागर पास के डाइवर्जन पाइप सुचारु काम कर सकेंगे।
इसके लिए निम्न उपाय किये
जा सकते है :
जेल रोड, सिक्कों की
मस्जिद से आने वाले बरसाती पानी को सादुल स्कूल के सामने मल्होत्रा बुक डिपो के
पीछे बना चेम्बर, जो कोटगेट सब्जीमंडी, लाभूजी कटले के नीचे से बने रियासती नाले से सट्टा बाजार, मटका गली होते हुए रेलवे क्षेत्र के खुले नाले
से जोड़ा हुआ था, शहर से आने वाले
गंदे और बरसाती पानी की अधिकांश निकासी इसी नाले से होती थी। आजादी बाद ढंग से सफाई
नहीं रहने के चलते बीते तीस-चालीस वर्षों से यह नाला लाभूजी कटले के नीचे डटा पड़ा
है, सुना यह भी कि लाभूजी
कटले के कुछ दुकानदारों ने अपनी दुकानों के नीचे वाले नाले के हिस्से के
इर्द-गिर्द दीवारें बनाकर उसे अण्डरग्राउण्ड गोदाम के तौर पर काम लेने लगे हैं।
राज चाहे तो क्या नहीं हो सकता है? आरयूआईडीपी ने इस
भूमिगत नाले को साफ करवाने की 2003 में एक कोशिश की
थी, राज की मंशा साथ नहीं थी
सो मल्होत्रा बुक डिपो के पीछे के चेम्बर से डाइवर्जन देकर कोटगेट, सट्टा बाजार लाकर उसे पुराने नाले में मिला
दिया गया। सट्टा बाजार के जाली लगे चेम्बर इसके गवाह हैं। लेकिन 'चेपे' के ऐसे उपाय निहाल कितना'क करते। लाभूजी
के कटले के नीचे का नाला पर्याप्त लम्बाई-चौड़ाई का है। कटला बनने से पहले के इस
पक्के नाले का उल्लेख ना केवल रियासती पट्टे में होगा बल्कि इजाजत तामीर में भी इस
नाले का उल्लेख सशर्त रहा होगा।
यह उपाय तो हुआ उस बरसाती पानी का जो बड़ा बाजार क्षेत्र से
जेल रोड और सिक्कों के मुहल्ले से होता हुआ कोटगेट होकर गुजरता है लेकिन मोहता चौक,
तेलीवाड़ा और दाउजी रोड
के इर्द-गिर्द का जो बरसाती पानी अभी कोटगेट से महात्मा गांधी रोड होकर गिन्नानी,
सूरसागर के क्षेत्रों में
त्राहिमाम मचाता है उसका एक हद उपाय यह भी हो सकता है—
कोटगेट रेलवे फाटक पर कोटगेट की तरफ और सांखला फाटक पर नागरी भण्डार की तरफ
सड़क पर 3 फीट चौड़ा और चार फीट
गहरा नाला बनाकर काऊकेचर जैसी गर्डर चैनल की मजबूत जाली से ढक दिया जाए और शेष रहे
खुले नाले को रेलवे की दीवार के साथ होते-होते रेलवे स्टेशन के पहले के खुले नाले
में मिला दिया जाए तो इन दोनों तरफ से सूरसागर की ओर जाने वाले पानी को काफी हद तक
यहीं से डाइवर्ट किया जा सकता है।
इस में काम यूं बांटा जाय कि लाभूजी के कटले के नीचे का
नाला नगर निगम साफ करवायेगा और दोनों फाटकों वाले नाले का निर्माण न्यास करवादे और
रेलवे इसकी इजाजत तुरंत इस शर्त पर दे दे कि इन नालों की सफाई रखने का जिम्मा एमओयू
करके नगर निगम ले ले।
रही बात धन की तो भास्कर में दिये बयान के आधार पर पश्चिम के विधायक गोपाल जोशी तैयार हैं और पूर्व की विधायक सिद्धिकुमारी भी अपने विवेक कोटे से धनराशि दे ही देंगी, क्योंकि उनके क्षेत्र को ही इस काम से सबसे ज्यादा राहत मिलेगी। धन की फिर भी कमी रहे तो सांसद अर्जुनराम मेघवाल पांव खींचेंगे नहीं। सामंजस्य बिठाकर कार्य में तत्परता बरती जाये तो यह काम इतना बड़ा नहीं है कि चुनावी आचार संहिता लगने से पहले हो ना सके। यदि ऐसा हो जाता है तो गिन्नानी-सूरसागर क्षेत्र के बाशिन्दों को भले ही तत्काल राहत नहीं मिले, अगले मानसून में काफी कुछ निश्चिंत हो लेंगे।
रही बात धन की तो भास्कर में दिये बयान के आधार पर पश्चिम के विधायक गोपाल जोशी तैयार हैं और पूर्व की विधायक सिद्धिकुमारी भी अपने विवेक कोटे से धनराशि दे ही देंगी, क्योंकि उनके क्षेत्र को ही इस काम से सबसे ज्यादा राहत मिलेगी। धन की फिर भी कमी रहे तो सांसद अर्जुनराम मेघवाल पांव खींचेंगे नहीं। सामंजस्य बिठाकर कार्य में तत्परता बरती जाये तो यह काम इतना बड़ा नहीं है कि चुनावी आचार संहिता लगने से पहले हो ना सके। यदि ऐसा हो जाता है तो गिन्नानी-सूरसागर क्षेत्र के बाशिन्दों को भले ही तत्काल राहत नहीं मिले, अगले मानसून में काफी कुछ निश्चिंत हो लेंगे।
अगर यह हो जाता है तो शहर के भीतरी हिस्से का वह बरसाती पानी जो
गिन्नानी-सूरसागर पहुंच त्राहिमाम मचा कर माजीसा का बास, राजविलास कॉलोनी, पीबीएम होते हुए रानी बाजार—ओवरब्रिज
पहुंचाया जाता है, वह कोटगेट से ही डाइवर्ट होकर रेलवे क्षेत्र के नाले से
सीधे रानी बाजार रेलवे ओवरब्रिज होता हुआ गंतव्य वल्लभ गार्डन पहुंच जायेगा।
महापौर नारायण चौपड़ा, न्यास अध्यक्ष महावीर रांका अपने इस शहर को इस तरह बड़ी
राहत दे सकते हैं। सदाशयी मण्डल रेल प्रबंधक अनिल दुबे—जो आते ही यहां के हो लिए थे, उन्हें भी ये सब होते देखना अच्छा ही लगेगा। जब
रेलवे डीआरएम की बात हो ही रही है तो क्यूं नहीं दुबेजी बीकानेर रेलवे स्टेशन के
मुख्य द्वार के आगे जमा होने वाले बरसाती पानी से राहत दिलाने की सोचें। रेलवे
लाइनों के नीचे से एक खुला बरसाती नाला बनाने की योजना बनाएं जिससे स्टेशन के
मुख्य द्वार के आगे जमा होने वाला बरसाती पानी तुरंत बहकर रेलवे क्षेत्र से गुजरने
वाले बड़े नाले तक पहुंच जाए। इस नाले का निर्माण और रखरखाव रेलवे अपने जिम्मे ले
तो उसके अपने यात्रियों को रेलवे स्टेशन पहुंचने में बड़ी सुविधा मिल सकेगी।
—दीपचन्द सांखला
19 जुलाई, 2018
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