Monday, July 30, 2018

जोधपुर मूल के दिल्लियन डॉ. राजू व्यास

एक है डॉ. राजू व्यास, अपनी फेसबुक आइडी अपडेट के हिसाब से डॉ. व्यास दिल्लियन यानी दिल्ली के हैं, फोर्टीज एस्कोर्ट हार्ट इन्स्टीट्यूट में वरिष्ठ परामर्शक हैं। इसी आईडी के हिसाब से वे अपने को मूलत: जोधपुर का बताते हैं। डॉ. व्यास अपने बीकानेरी सन्दर्भ में कुल जमा इतना ही मानते हैं कि उनकी स्कूली और महाविद्यालयी शिक्षा यहां हुई है। इस सबके बावजूद डॉ. व्यास प्रदेश कांग्रेस कमेटी में बीकानेर शहर की नुमाइन्दगी कर रहे हैं। राजनीति से उनका वास्ता इतना ही है कि यूपीए सुप्रीमो सोनिया के विश्वासी और कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल बोरा की बेटी के वे पति हैं। केवल इसी बिना पर और बीकानेर शहर में बिना किसी सार्वजनिक योगदान के भी वे प्रदेश कांग्रेस में प्रतिष्ठित नुमाइन्दगी हासिल किए बैठे हैं।

पद मिल गया औरऊपरतक पहुंच है तो कुछ ऐसे लोग जो या तो आत्म विश्वासहीन हैं या जो किसी अन्य की हैसियत के बूते कुछ हासिल करना चाहते हैं, वे डॉ. व्यास जैसों के लिएकहारकी भूमिका में गए हैं। अपने शहर में भी इस तरह की गुलाम मानसिकता से ग्रसित कम नहीं हैं। कम तो पूरे देश में भी नहीं है। क्योंकि सदियों की सामन्ती और उपनिवेशिक व्यवस्था के चलते हम गुलामी के आदि हो गये हैं। राष्ट्रीय स्तर पर राहुल गांधी से लेकर स्थानीय स्तर पर सिद्धिकुमारी तक ऐसी ही मानसिकता से लाभान्वित हैं। राहुल गांधी और शहर में सिद्धिकुमारी दोनों का सार्वजनिक जीवन में कभी कोई योगदान नहीं रहा लेकिन राहुल बिना जमीनी अनुभव के पच्चीस-पचास सालों से जमीनी राजनीति करने वालों की क्लास लेते हैं। जबकि सभी जानते हैं कि लोकतंत्र में जमीनी या व्यावहारिक राजनीति का कितना महत्व है। ठीक इसी तरह आजादी पूर्व के शासक परिवार की सिद्धिकुमारी जीरो जमीनी अनुभव के साथ चुनावी मैदान में उतरती हैं और वोटरों कीखम्माघणीमानसिकता के चलते भारी-भरकम वोटों से जीत भी जाती हैं।

बिना किसी जमीनी जुड़ाव के डॉ. राजू व्यास का सन्दर्भ भी लगभग राहुल-सिद्धि जैसा ही है। मोतीलाल बोरा का किसी भी तरह वास बीकानेर शहर के लोकचित्त में नहीं रहा। शायद इसीलिए व्यास शहर की सीटों से पार्टी टिकट मांगने का साहस तो नहीं करते हैं लेकिन अपने राजनीतिक अहम् की तुष्टि वे शहर केकहारोंके कन्धों पर बैठ कर ही रहे हैं।
डॉ. कल्ला से डॉ. व्यास का अहम् कब, कैसे और क्यों टकराया बता नहीं सकते। लेकिन हाल-फिलहाल की व्यावहारिक राजनीति में कल्ला की राह में और चुनाव पूर्व की औपचारिकताओं में एक बड़ा रोड़ा डॉ. व्यास बने हुए हैं। 1998 के चुनावों से पहले डॉ. कल्ला जब पार्टी-बदर और भारी संकट में थे, कहा जाता है तब उनके पुनर्वास में मोतीलाल बोरा का भी योगदान था। राज-रुचि का यह अलग विषय हो सकता है कि डॉ. कल्ला मोतीलाल वोरा की अनुकम्पा को सहेज कर क्यों नहीं रख सके, पर नतीजा सामने है कि पार्टी संगठन में वोरा के दामाद डॉ. राजू व्यास बिना किसी जमीनी हैसियत के ना केवल उनके मुखर विरोधी हैं बल्कि खेल बिगाड़ने की हैसियत में दिखाई दे रहे हैं।
डॉ. व्यास को शायद बीकानेर शहर की जमीनी राजनीति करनी नहीं है या इसे यूं भी कह सकते हैं कि उन्हें अपनी जमीनी हैसियत की असलियत पता है। इसीलिए वे कल्ला से अपनी खुन्दक दूसरों के माध्यम से निकालने की फिराक में हैं। लेकिन उन्हें यह जरूर पता होगा कि डॉ. कल्ला ने पिछले तैंतीस सालों में पार्टी टिकट लाने जितनी हैसियत तो बना ही ली है। यह अलग बात है कि डॉ. कल्ला नेसाहबबनकर आम अवाम से अपने को लगातार दूर रखा, जिसके नतीजे वे दो बार तो भुगत चुके हैं, और इसी के चलते अपने अगले चुनाव परिणामों को लेकर भी वे आशंकित ही हैं।

3 अगस्त, 2013

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