Thursday, December 12, 2019

नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) का विरोध इसलिए

हिन्दुस्तान में चाहे जिस धर्म के लोग रह सकते हैं; उससे यह राष्ट्र मिटने वाला नहीं है। जो नये लोग उसमें दाखिल होते हैं, वे प्रजा को तोड़ नहीं सकते; वे यहां की प्रजा में घुलमिल जाते हैं। ऐसा हो तभी कोई मुल्क एक राष्ट्र माना जायेगा। ऐसे मुल्क में दूसरे लोगों के समावेश का गुण होना चाहिए। हिन्दुस्तान ऐसा था और आज भी है।
यूं तो जितने आदमी उतने धर्म, ऐसा मान सकते हैं। एक राष्ट्र होकर रहने वाले लोग  एक-दूसरे के धर्म में दखल नहीं देते; अगर देते हैं तो समझना चाहिए कि वे एक राष्ट्र होने लायक नहीं हैं।               महात्मा गांधी-हिन्द स्वराज

केन्द्र में काबिज मोदी-शाह की सरकार दूसरी बार चुन कर आयी तब से वह मान बैठी है कि जनता ने उन्हें कुछ भी करने की छूट दे दी, संविधान विरोधी निर्णय भी। ऐसा मानते हुए नरेन्द्र मोदी और अमित शाह भूल कर रहे हैं कि वे उसी संविधान द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के तहत शासन में आये हैं, जिसकी धज्जियां उड़ाते हुए उन्होंने ना केवल जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 को खुर्द-बुर्द किया बल्कि धारा 35-ए के प्रावधानों को खत्म कर दिया, जबकि ऐसे ही प्रावधान हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम और उत्तर-पश्चिम के सातों राज्यों सहित पहाड़ी राज्यों में तो लागू हैं। अलावा इसके विभिन्न शेष राज्यों के कुछ क्षेत्रों में 35-ए जैसे प्रावधान आज भी लागू हैं। जम्मू कश्मीर के साथ इस सौतेले व्यवहार को धर्म आधारित भेदभाव इसलिए ही कहा जा रहा है।
इसी तरह दूसरे देशों से आए लोगों को भारत की नागरिकता देने के पर्याप्त कानून-कायदे होने के बावजूद नागरिकता संशोधन विधेयक CAB लाना सरकार की धर्म आधारित भेदभाव की मंशा को जाहिर करता है। नागरिकता देने के वर्तमान प्रावधानों में समय जरूर लगता है, जो सावचेती के लिए जरूरी भी है। लेकिन नागरिकता संशोधन विधेयक में जिस तरह मुसलमानों को अलग रखकर केवल अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले लोगों के लिए ही प्रावधान करना सरकार की नीयत पर सन्देह उत्पन्न करता है। लोकसभा में इस संशोधन पर अपना पक्ष रखते समय चालाकी बरतते हुए अमित शाह का यह कहना कि मुसलमानों का तो मैंने नाम ही नहीं लिया, उनकी धूर्तता ही जाहिर करता है।
गांधीजी को ऊपर उद्धृत करते हुए मैंने बात शुरू की है। भारत की तासीर वही है और गांधी की उसी बात के आधार पर संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक समता/समानता के अधिकारों का प्रावधान किया है। इसमें अनुच्छेद 14 के अन्तर्गत विधि के समक्ष समानता की प्रस्तावना की गई है। अनुच्छेद-15 में उसे स्पष्ट करते हुए लिखा गया कि धर्म, वंश, जाति, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जायेगा। इसे इस आधार वाक्य के साथ और स्पष्ट किया गया है कि—'सभी व्यक्तियों से समान बर्ताव किया जाना चाहिए'
यद्यपि उक्त उल्लेखित अनुच्छेद भारतीय नागरिकों के लिए हैइसलिए कहा जा सकता है कि जो नागरिक नहीं हैं उनके साथ भेदभाव कैसा? तर्कसंगत ढंग से विचारने पर यह बात सही लग सकती है। लेकिन नैतिक तौर पर नहीं, क्योंकि अन्तत: जिन्हें भी नागरिकता दी जानी है उन्हें धर्म के आधार पर भेदभाव के साथ दी जायेगी और एक धर्म के लोगों को वंचित करना उसी धर्म के भारत के अल्पसंख्यक नागरिकों के बराबरी के अहसास को कमतर करना है।
इन्हीं सन्दर्भों के साथ इतिहास की ओर चलें तो हाल ही की शताब्दियों में बने नियम कायदों से पहले भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न देशों के ही नहीं, दूर के देशोंयूरोप चीन के नागरिकों का आवागमन हमारे यहां ना केवल निर्बाध होता रहा है, बल्कि इन देशों के नागरिकों की कई पीढिय़ों का यहां बस जाना मनुष्य की इस प्रकृति की पुष्टि भी करता है कि वह अपनी जरूरतों के अनुसार स्थान बदलता रहा है। अपने ही देश में एक राज्य के नागरिकों का अन्य राज्य में जा बसना भी इसी प्रकृति का प्रमाण है।
उक्त उल्लेख के मानी यह कतई नहीं है कि वर्तमान की अन्तरराष्ट्रीय पेचीदगियों में पूर्व की तरह नागरिकता बदलने की निर्बाध छूट दे दी जाय। जैसा ऊपर बताया गया है कि नागरिकता देने के पर्याप्त कानून-कायदे अपने देश में जो भी हैं, उनसे किसी को एतराज नहीं है।
दरअस्ल जिस ऐजेंडे पर सरकार काम कर रही है वह धर्म के नाम पर विशुद्ध राजनीतिक कृत्य है और धर्म की आड़ में राजनीतिक ऐजेंडों को साधना संविधान सम्मत नहीं है।
मुसलिम समुदाय को लेकर जिस कांग्रेस पर वोट बैंक की राजनीति करने के आरोप लगाए जाते है, कुछ वैसी ही मंशा अपनी पार्टी के लिए ऐसे गैर संवैधानिक कानूनों से साधने की मोदी-शाह की भी है। इसे हम उत्तर-पश्चिमी राज्यों यथा असम, त्रिपुरा आदि में नागरिकता संशोधन विधेयक CAB के पुरजोर विरोध में समझ सकते हैं। इन राज्यों के नागरिकों ने जब भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर NRC का स्वागत किया तब उन्हें CAB की आशंका कतई नहीं थी। हालांकि मोदी-शाह जिस ऐजेंडे पर काम कर रहे हैंउनके यहां यह पहले से ही तय था। उत्तर-पश्चिमी राज्यों के विरोध की वजह शेष भारत में हो रहे विरोध से भिन्न इसीलिए है कि उन्हें CAB से अपनी पहचान पर संकट लग रहा है। जैसे ही गैर मुस्लिम घुसपैठियों को नागरिकता दी जायेगी, वहां के मूल निवासियों पर ना केवल अल्पसंख्यक होने का खतरा मंडराने लगेगा बल्कि प्रकारांतर से वहां की संस्कृति भी खतरे में पड़ जायेगी। राजनैतिक वर्चस्व खत्म होगा वह अलग, क्योंकि अच्छी तादाद में होने के बावजूद नागरिक ना होने के चलते जो तथाकथित घुसपैठिये फिलहाल मुखर नहीं हैं, वे CAB से मिली नागरिकता के बाद हावी और मुखर होने लगेंगे। वहीं मोदी-शाह की मंशा यह है कि इन उत्तर-पूर्वी राज्यों में अब तक भाजपा को जो समर्थन नहीं मिला वहां गैर-मुस्लिम घुसपैठियों से नागरिक बने लोग उसके वोट बैंक हो लेंगे। भाजपा ने फिलहाल जिस तरह जोड़-तोड़ से वहां सरकारें बना रखी हैं, उसकी जरूरत फिर नहीं रहेगी।
सदियों से भारत की तासीर जिस तरह उदारता की रही है, भारत की असल प्रतिष्ठा वही है और ताकत भी। मोदी-शाह और उनके विचारक पितृी-संगठन धर्म की आड़ में जिन राजनीतिक मंसूबों को साधना चाहते हैं, NRC और CAB उसी के जतन हैं। ये ना संवैधानिक हैं और ना ही नैतिक, इसलिए इस तरह के प्रयासों को मानवीय भी नहीं कह सकते।
NRC के विरोध की वजह भी वाजिब है। भारतीय नागरिक के तौर पर पंजीकृत होने के लिए जिस तरह के दस्तावेजों की मांग की जा रही है, उन्हें जुटाना अधिकांश भारतीयों के लिए संभव नहीं होगा। अभी इसे जहां असम में लागू किया है वहां बांगलादेशियों के अलावा बिहार, झारखण्ड, ओडिशा और उत्तरप्रदेश के ऐसे लाखों नागरिक हैं जो रोजगार की तलाश में कई पीढिय़ों से वहां जा बसे हैं। अब उनसे अपने मूल गांव के प्रामाणिक दस्तावेज चाहे जा रहे हैं। इसी के चलते इस काम में भ्रष्टाचार के बड़े आरोप तो लगे ही हैं, अलावा इसे अंजाम तक पहुंचाने में वहां के सरकारी कर्मचारियों के जुटने से सरकार के रोजमर्रा काम का भी भारी नुकसान हुआ है। जबकि इस सबकी जरूरत नहीं थी। संघानुगामियों के फैलाये उस झूठ की पोल जरूर खुल गई जिसमें उनका वर्षों से किया जा रहा दुष्प्रचार कि उतर-पश्चिमी राज्यों में 3 करोड़ बांगलादेशी मुसलमानों की घुसपैठ हो चुकी है, जबकि उन सातों राज्यों की आबादी आज भी सवा चार करोड़ ही है। जबकि NRC की कवायद में मात्र 19 लाख घुसपैठिएं निकले हैं जिनमें से मात्र सात लाख मुसलमान तथा शेष सब गैर-मुसलिम यानी अधिकांश हिन्दू धर्मावलम्बी बताये जा रहे हैं। मोदी-शाह की सरकार ने घोषणा कर रखी है कि NRC पूरे देश में लागू की जायेगी जबकि इस बेहद खर्चीली और पेचीदी कवायद की कोई जरूरत नहीं है।
—दीपचन्द सांखला
12 दिसम्बर, 2019

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