Thursday, December 5, 2019

राज्यों में भाजपा से मोहभंग के बावजूद संघ और मोदी का भ्रमजाल कायम

पत्रकार नेताओं की भाषा बोलते हैं
नेता गुंडों की,
धर्म-गुरु धनाढ्यों की भाषा बोलते हैं
और धनाढ्यï......
युवा लेखक दुष्यंत ने अपनी इस फेसबुक पोस्ट का अंत.....के साथ किया, जिसे मैं पूरी किये देता हूं.....सयाने धनाढ्य मौन हैं।
मित्र दुष्यंत की पोस्ट संभवत: उद्योगपति राहुल बजाज के उस वक्तव्य के बाद आयी जिसमें उन्होंने गृहमंत्री अमित शाह, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण और रेलवे मंत्री पीयूष गोयल के सामने देश में माहौल ठीक न होने को कुछ इस तरह जाहिर किया
'यूपीए के टाइम में हम किसी को भी गाली दे सकते थे, मगर आज किसी की हिम्मत नहीं है कि वह सरकार की आलोचना कर सके...मैं जानता हूं कि सारे उद्योगपति चुप लगाये बैठे हैं। कोई नहीं बोलेगा...सब हंस रहे हैं....मतलब कह रहे हैं.....चढ़ जा बेटा सूली पे।'
अवसर था देश के प्रसिद्ध आर्थिक समाचार पत्र 'द इकॉनोमिक टाइम्स' द्वारा आयोजित सम्मिट का। यूट्यूब पर इसका वीडियो उपलब्ध है, चाहे तो देख सकते हैं। देश के बड़े उद्योगपतियों में शुमार 81 वर्षीय राहुल बजाज जैसों की भाव भंगिमा भी उक्त वक्तव्य के दौरान निर्भयता से ओत-प्रोत नहीं रही। लग रहा था कि उन्होंने ऐसा कहना ना केवल जरूरी माना बल्कि अपनी ड्यूटी भी माना और बड़ी हिम्मत जुटाकर कह भी गये। उनके वक्तव्य से लग रहा है कि इस 'दुस्साहस' की जानकारी उन्होंने अपने भरोसे के मित्रों से भी साझा की।
जिन परिस्थितियों का जिक्र राहुल बजाज अपने वक्तव्य में कर रहे हैं उसकी जानकारी क्या सरकार में बैठे लोगों को नहीं? बिल्कुल है, अधिकांश बौद्धिक, जमीर वाले पत्रकार-सम्पादक और अर्थशास्त्रियों सहित हम जैसे हजारों ब्लॉगर, फेसबुकिये, ट्वीटरिस्ट ऐसा लगातार कह ही रहे हैं कि यह सरकार अपने विशेष ऐजेंडे के तहत सत्ता में आई है, देश की अर्थव्यवस्था, देश का माहौल, आमजन की जरूरतें और रोजगार उनकी प्राथमिकता में नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिस ऐजेंडे को लागू करना उनका मकसद है, उसमें ऐसे मानवीय तत्त्वों की जरूरतों की कोई अहमियत नहीं।
इसलिए इस तरह की परिस्थिति से गृहमंत्री अमित शाह ने यह कहकर तत्काल नकार दिया कि भय होता तो आप बोल नहीं पाते औरऔर भी बहुत लोग ऐसा माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इतना ही नहीं, राहुल बजाज ने अपनी बात प्रज्ञा ठाकुर के लोकसभा में गोडसे पर दिये जिस वक्तव्य से शुरू की उसमें अमित शाह साफ-साफ झूठ बोल गये कि 'प्रज्ञा के वक्तव्य को भ्रान्तिपूर्ण लिया गया। वह राष्ट्रभक्त ऊधमसिंह को बता रही थी या गोडसे को? बावजूद इस सबके पार्टी ने उन पर एक्शन लिया है।'प्रज्ञा ठाकुर के बयान को शहीद ऊधमसिंह की आड़ देना ढिठाई ही माना जायेगा।
अमित शाह की यह बात सही है कि जो राहुल बजाज ने कहा, ऐसा बहुत लोग और भी कह रहे हैं। शाह को पता है जो और लोग कह रहे हैं, उनको काउन्टर करने के लिए उनके पास व्यवस्थित ट्रोलपार्टी है जो सब संभाल लेगी लेकिन राहुल बजाज ने जो दुस्साहस किया वह उनके गले कम उतर रहा है। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के पुरोधा रहे जमनालाल बजाज के सुपौत्र राहुल बजाज वही हैं जो उद्योगपतियों में ना केवल साफगोई के लिए जाने जाते हैं बल्कि जरूरत समझने पर जिन्होंने कांग्रेस की सरकारों के समय भी उनकी खुल कर आलोचना की है। यही वजह है कि राहुल बजाज के उक्त वक्तव्य पर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को भी लोकसभा में ना केवल सफाई देनी पड़ी बल्कि यहां तक कहना पड़ा कि राहुल बजाज का ऐसा कुछ बोलना राष्ट्रहित में नहीं है।
क्यों मुहतरमा राष्ट्रहित में क्यों नहीं है? देश की अर्थव्यवस्था लगातार डूबती जा रही हैरोजगार के अवसर लगातार कम होते जा रहे हैं। राहुल बजाज इन स्थितियों की एक वजह देश में वातावरण सही नहीं होना भी मानते हैंभय का वातावरण आर्थिक प्रगति के लिए अनुकूल नहीं माना जाता। अर्थशास्त्रियों का भी अनुभूत सत्य यही है।
लोकसभा में मोदी-शाह को पर्याप्त बहुमत के बावजूद बीते एक वर्ष में लोकसभा के बाद हुए विधानसभा चुनावों में राज्यों में सत्तारुढ़ भाजपा का सत्ताच्युत होना पार्टी के लिए तो चिन्ता की बात हो सकती है लेकिन क्या देश को संभालने का मादा नरेन्द्र मोदी में निहित है ऐसा जो मान लिया गयावह भ्रम भी अब क्या छंट रहा है? पिछले वर्ष हुए राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के चुनावों में भाजपा का सत्ताच्युत होना, इस वर्ष हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिलना और महाराष्ट्र में सत्ता खोने के बाद भी ऐसा लगता है कि जनता केन्द्र में शाह-मोदी को सत्ताच्युत करने का मन नहीं बना पा रही है। विभिन्न राज्यों में भाजपा के सत्ताच्युत होने, केन्द्र की मोदी-शाह सरकार के सभी मोर्चों पर असफल होने और घोर नाकारा शासन देने के बावजूद केन्द्रीय नेतृत्व के तौर पर नरेन्द्र मोदी से भरोसा कम होता नहीं लग रहा है। इसकी वजह यही लगती है कि हिन्दुत्वी प्रलोभन और शाह-मोदी के दुस्साहसपूर्ण लेकिन संविधान विरोधी निर्णय जनता को प्रभावित कर रहे हैं। ऐसा इसलिए भी है कि गत नब्बे वर्षों से संघानुगामियों द्वारा व्यवस्थित तौर पर बिछाया जाता रहा भ्रमजाल अभी भी असरकारी है।
—दीपचन्द सांखला
05 दिसम्बर, 2019

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