Thursday, October 31, 2019

देश दो भाइयों की दुकान नहीं कि एक धमका और दूसरा बेवकूफ बना कर चला ले

सामाजिक, भौगोगिक, सांस्कृतिक और धार्मिक तौर पर विविधताओं वाला अपना देश एक तभी रह सकेगा जब हम इन सभी विविधताओं का न केवल ध्यान रखेंगे बल्कि उन्हें उचित मान भी देंगे। लेकिन ना केवल सत्ता लोलुपता से सनी राजनीतिक लिप्साएं इसमें बाधक हैं, बल्कि दूसरी विविधता से अपनी विविधता को श्रेष्ठ मानना भी बड़ी बाधा है। उत्तर भारतीय या जिसे हिन्दी पट्टी कहा जाता है, आजादी बाद से यहीं के समर्थ सत्ता में प्रभावी रहे हैं। लेकिन शुरुआती समय में ऐसे लोग सत्ता में प्रभावी रहे, जो उक्त समग्र भारतीय तासीर को ना केवल समझते थे बल्कि उसे उचित मान भी देते थे। हालांकि नयी बनी भाषा हिन्दी को लेकर उनके अनुचित आग्रहों ने दक्षिणी राज्यों में आशंकाएं जरूर पैदा कीं, लेकिन धीरे-धीरे यह सब उन्हें भी समझ आ गया। बावजूद इसके ना केवल दक्षिणी राज्यों, बल्कि उत्तर-पूर्व के सभी राज्यों और उत्तर के जम्मू कश्मीर और कुछ समय के लिए पंजाब में भी असंतोष कम या ज्यादा हमेशा रहा है।
इस बीच अपने श्रेष्ठ होने के वहम और पूरे भारत को अपने हिसाब से चलाने की जिद वाले सत्ता पर काबिज हो लिए, जिनमें समग्र भारतीयता की भावना के नाम पर अपनी भावनाएं और अपनी सोच ही हावी है। उनमें भी अमित शाह और नरेन्द्र मोदी जैसे सत्तासीन ऐसे हैं जिन्हें अपनी जंची और अपनी जिद के अलावा कुछ भी उचित नहीं लगता बल्कि सभी तरह के लोकतांत्रिक मूल्यों को वे ताक पर रखे हुए हैं।
जिस विचारधारा के लोग वर्तमान में केन्द्रीय सत्ता पर काबिज हैं, उसका आधार ही मुख्यत: मुस्लिम और कुछ ईसाइयों के प्रति घृणा है। इनसे भलमनसात की उम्मीदें पालना गलत साबित हुआ। सीमाई क्षेत्र का विवाद चीन के साथ ज्यादा गंभीर हमेशा से रहा है, लेकिन प्रचारित पाकिस्तान के साथ ज्यादा है। देश का एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य जम्मू कश्मीर इन्हें हमेशा रड़कता रहा है। उत्तर-पूर्व के सभी राज्यों, पं. बंगाल का दार्जिलिंग, सिक्किम, उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश में भी जम्मू कश्मीर के अनुच्छेद 370 और धारा 35 ए जैसे प्रावधान स्थानीय प्राकृतिक-सांस्कृतिक विशेषताओं को बचाए रखने के लिए लागू है। लेकिन केवल कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 को खुर्दबुर्द किया गया और 35ए को हटाया गया। ऐसा करना भारत जैसे देश के संदर्भ में घटिया सोच की मिसाल है।
नतीजतन जिस कश्मीर के लिए ऐसा माना जाने लगा था कि वहां की 60 प्रतिशत जनता अपनी नियति भारत के साथ तय कर चुकी थीइसमें शेख अब्दुला परिवार की महती भूमिका थीउस आबादी के बड़े हिस्से को अमित शाह की इस कारस्तानी ने पूरी तरह बिदका दिया। इनमें से शेष 30 प्रतिशत उस आबादी के साथ गये हैं, जो कश्मीर की आजादी के पक्षधर हैं या उन 10 फीसदी के साथ जो पाकिस्तान परस्त हैं, कह नहीं सकते। शाह की करतूत को तीन माह हो रहे हैं, पूरी कश्मीर घाटी खुली जेल में तबदील है। कुछ उलट या बिकाऊ मानसिकता वालों को छोड़ पूरी दुनिया में भारत की इस करतूत पर थू-थू हो रही है। यदि ऐसा नहीं होता तो केन्द्र सरकार को यूरोपीयन देशों के समान विचार के 28 सांसदों को भाड़े पर कश्मीर दौरा करवाने की नौबत नहीं आती। इन 28 में से 5 इनकी नीयत जान पहले ही बिदक गये। लेकिन वाट्सएप जैसी सोशल साइट्स के माध्यम से यहां सब उलट पुरसा जा रहा है। 70 वर्षों तक किसी अन्य देश को कश्मीर पर बोलने की छूट भारत ने नहीं दी। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ना केवल खुले आम अपनी चौधर लगाता है, बल्कि वैसी बातें भी करता है जिससे हमारे देश की सम्प्रभुता पर आंच आती है।
नरेन्द्र मोदी और अमित शाह भारत जैसे देश को उस दो भाइयों की दुकान की तरह चला रहे हैं जिनमें एक बिना कुछ डिलिवर किये केवल बेवकूफ बनाकर काम चलाता है, तो दूसरा धमका कर। भ्रष्टाचार जैसी बुराई को छोड़ हमारा देश हर तरह से खूबसूरत है, इसे वैसा ही रहने दें। भ्रष्टाचार से छुटकारे की उम्मीद ऐसों से क्या तो करें जो खुद कांग्रेस के मुकाबले कहीं ज्यादा गुंडई व बेधड़की से भ्रष्टाचार करने में विश्वास रखते हैं।
—दीपचन्द सांखला
31 अक्टूबर, 2019

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