Thursday, September 19, 2019

सफेद हाथी सूरसागर और हमारे जनप्रतिनिधि

बीकानेर शहर से संबंधित दो सूचनाएं हैं। बीकानेर पूर्व की विधायक सिद्धिकुमारी ने सूरसागर तालाब की दुर्दशा पर पैदल मार्च की रस्म अदायगी की और बीकानेर पश्चिम से विधायक और सूबे की सरकार में नम्बर तीन के मंत्री डॉ. कल्ला ने सूरसागर समस्या पर अपनी सक्रियता दिखाई। डॉ. कल्ला को राज में आए 9 माह हो गये हैं लेकिन तीस वर्ष पूर्व संज्ञान में आयी बीकानेर के कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या के समाधान पर उनकी कार्य योजना कहां तक पहुंची, उसकी जानकारी अभी तक नहीं दी। बायपास से समाधान का भूत उनका जब तक नहीं उतरेगा, शहरवासियों को तब तक कोटगेट क्षेत्र की उक्त समस्या को भोगते रहना है। सूरसागर में रुचि उनकी उस छवि को जरूर भंग करती है जो इस आम धारणा से बनी कि डॉ. कल्ला अपने विधानसभा क्षेत्र के बाहर की किसी समस्या के समाधान में कोई रुचि नहीं रखते।
इस शहर की बड़ी प्रतिकूलता यह है कि बीते 60 वर्षों से शहर की राजनीति करने वाले और तीन बार विधायक रहे डॉ. गोपाल जोशी जहां निहित स्वार्थों से ऊपर नहीं उठ पाए तो चालीस वर्षों से यहां की राजनीति करने और शासन में कई बार भागीदारी करने वाले डॉ. बीडी कल्ला ने कभी यह अहसास नहीं करवाया कि उन्हें अपने शहर से खास लगाव है? आमजन के बजाय उन्हें चुनावी चन्दा देने वालों का खयाल ज्यादा रहा है। नाकारा सिद्धिकुमारी के लिए बहुत कुछ कहा जा चुका है। वह जनप्रतिनिधि हैं, इसका दोष उनसे ज्यादा उनके वोटरों का है, जो उन्हें जिता कर भेजते हैं। डॉ. कल्ला और सिद्धिकुमारी का मिलाजुला राजनीतिक व्यक्तित्व उन देवीसिंह भाटी का भी रहा है, जो कल्ला की तरह बीते चालीस वर्षों से शहर और कोलायत की राजनीति में सक्रिय रहे हैं। देवीसिंह भाटी चाहे अब नीमहकीमी में लगे हों, लेकिन उनकी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं अब भी हिलोरें मारती है, आमजन और अपने विधानसभा क्षेत्र के लिए सत्ता में रहते हुए भी उन्होंने कुछ किया हो, ध्यान में नहीं आता।
सूरसागर पर पूर्व में भी कई टिप्पणियां की हैं। सरकारें और प्रशासन वहां जो कर रहा है, वह उसके समाधान नहीं हैं। 2008 से आज तक जनता के धन में से वहां कई सौ करोड़ खर्च किये जा चुके हैं। लीक से हटकर कुछ करना ठस शासन-प्रशासन के लिए हमेशा टेढ़ी खीर रहा है। 2014 में पहली बार जब मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस मुद्दे को समझने का समय दिया तो उन्हें समझ आ गया, यहां से लौटते हुए उन्होंने मरु-उद्यान की घोषणा भी की, लेकिन सूरसागर का उल्लेख उनसे रह गया और सूरसागर में मरु-उद्यान विकसित करने की वह कल्पना प्रशासन की अंधेरी गलियों में खो गई। सूरसागर की दुर्दशा जारी है और जनधन की भी। इन्हीं सब के मद्देनजर वर्तमान के जनप्रतिनिधियों और क्षेत्र से सरकार में नुमाइंदों की जानकारी के लिए सूरसागर और जूनागढ़ क्षेत्र की समस्या पर सुझाये वैकल्पिक समाधान संबंधी दो पुराने आलेखों के सम्पादित अंश साझा कर रहा हूं, हो सकता है इन पर विचार करके अमलीजामा पहनाने की कोशिश पुन: शुरू हो जाए।
सूरसागर और जूनागढ़ क्षेत्र में जलभराव : व्यावहारिक समाधान
सूरसागर को पुराने रूप में लाने की जो कोशिशें पिछले अनेक वर्षों से चल रही हैं, उसे अमलीजामा पहनाना इसलिए संभव नहीं है कि तब इसके उस रूप को प्रकृति सहेजती थीआगोर के माध्यम से आने वाले वर्षा जल से इसे भरा जाता था, आगोर अब रहे नहीं, ऐसे में कभी पांच-पांच ट्यूबवेलों और कभी नहरी पानी से इसे भरने की कवायद की जा रही है। इन कृत्रिम और अव्यावहारिक तरीकों से 15 फीट गहरी इस झील के जलस्तर को 2008 में उसके जीर्णोद्धार के बाद से एक बार भी चार फीट तक नहीं लाया जा सका।  ऐसे में इसे पूरा भरना और यहां पडऩे वाली गर्मी में इसे भरे रखना कितना महंगा सौदा है? यह महंगा केवल धन से ही नहीं बल्कि जिस डार्कजोन को हम जिले में न्योत रहे हैं, उसमें यह विलासिता से कम नहीं है। इस खेचळ को रोककर इसे मरु-उद्यान के रूप में विकसित करवाया जा सकता है, जिसमें मरुक्षेत्र के पेड़ व वनस्पतियां और कुछ सुकून देने वाले प्राकृतिक रूप के फव्वारें हों। इस में थार मरुस्थल के उन जीव-जंतुओं को भी रखा जा सकता है, जिनकी छूट वन विभाग देता हो। इस तरह इसे घूमने-फिरने के एक आदर्श स्थान के रूप में विकसित किया जा सकता है।  (3 जून, 2014)
जलभराव रोकने के उपाय
जेल रोड, सिक्कों की मस्जिद से आने वाले बरसाती पानी के लिए सादुल स्कूल के सामने मल्होत्रा बुक डिपो के पीछे बने चेम्बर से कोटगेट सब्जीमंडी, लाभूजी कटले के नीचे बने रियासती नाले को सट्टा बाजार, मटका गली से रेलवे क्षेत्र के खुले नाले से जोड़ा हुआ था। शहर से आने वाले गंदे और बरसाती पानी की अधिकांश निकासी इसी नाले से होती रही थी। आजादी बाद ढंग से सफाई नहीं रहने के चलते बीते तीस-चालीस वर्षों से यह नाला लाभूजी कटले के नीचे डट गया, सुना यह भी कि लाभूजी कटले के कुछ दुकानदार अपनी दुकानों के नीचे वाले नाले के हिस्से के इर्द-गिर्द दीवारें चिनवा कर उसे अण्डरग्राउण्ड गोदाम के तौर पर काम लेने लगे हैं। 
राज चाहे तो क्या यह नहीं हो सकता
आरयूआईडीपी ने इस भूमिगत नाले को साफ करवाने की 2003 में एक कोशिश की थी, तब पता चला कि नाले के बीच तो दीवारे बन गई हैं। राज की मंशा साथ नहीं थी सो मल्होत्रा बुक डिपो के पीछे के चेम्बर से डाइवर्जन देकर कोटगेट होते हुए सट्टा बाजार लाकर उसे पुराने नाले में मिला दिया। सट्टा बाजार के जाली लगे चेम्बर इसके गवाह हैं। लेकिन 'चेपेÓ के ऐसे उपाय काम कितनाÓक करते, लाभूजी के कटले के नीचे का नाला पर्याप्त लम्बाई-चौड़ाई का है। कटला बनने से पहले के इस पक्के नाले का उल्लेख ना केवल रियासती पट्टे में होगा बल्कि कटले की इजाजत तामीर में भी इस नाले का उल्लेख सशर्त रहा होगा।
यह उपाय तो हुआ उस बरसाती पानी का जो बड़ा बाजार क्षेत्र से जेल रोड और सिक्कों के मुहल्ले से होता हुआ कोटगेट होकर महात्मा गांधी मार्ग से गुजरता है, लेकिन मोहता चौक, तेलीवाड़ा और दाउजी रोड के इर्द-गिर्द का जो बरसाती पानी अभी कोटगेट से महात्मा गांधी रोड होकर पुरानी जेल रोड से आने वाले पानी के साथ मिलकर गिन्नानी, सूरसागर के क्षेत्रों में त्राहिमाम मचाता है, उसका एक हद उपाय यह भी हो सकता है।
कोटगेट रेलवे फाटक पर कोटगेट की तरफ और सांखला फाटक पर नागरी भण्डार की तरफ सड़क पर 2 फीट चौड़ा और चार फीट गहरा नाला बनाकर काऊकेचर जैसी गर्डर चैनल की मजबूत जाली से ढक दिया जाए और शेष रहे खुले नाले को रेलवे की दीवार के साथ होते-होते रेलवे स्टेशन के पहले के खुले नाले में मिला दिया जाए तो इन दोनों तरफ से सूरसागर की ओर जाने वाले पानी को काफी हद तक यहीं से डाइवर्ट किया जा सकता है।
रेलवे, नगर विकास न्यास और नगर निगम में सामंजस्य बिठाकर कार्य को करवाया जाए तो यह काम इतना बड़ा नहीं है कि हो ना सके।
अगर यह हो जाता है तो शहर के भीतरी हिस्से का वह बरसाती पानीजो गिन्नानी-सूरसागर क्षेत्र में पहुंच कर त्राहिमाम मचाता है और फिर आनन-फानन में प्रशासन उस पानी को पुराने नाले के माध्यम से माजीसा का बास, राजविलास कॉलोनी, पीबीएम होते हुए रानी बाजारओवरब्रिज पहुंचाता है, उसे उक्त उपाय से कोटगेट से ही डाइवर्ट कर रेलवे क्षेत्र के नाले से सीधे रानी बाजार रेलवे ओवरब्रिज होते हुए उसके गंतव्य वल्लभ गार्डन तक पहुंचाया जा सकता है। (19 जुलाई, 2018)
—दीपचन्द सांखला
19 सितम्बर, 2019

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