Thursday, August 9, 2018

विधानसभा चुनाव, बीकानेर की सात सीटें और भाजपा : एक पड़ताल


राजस्थान में बने अपने प्रतिकूल माहौल के बीच बीती 28 जुलाई को मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जब करोड़ों खर्च से आयोजित डिजिफेस्ट के बहाने अपने प्रचार के लिए बीकानेर आयीं तो कई सुर्खियां छोड़ गईं। गुरुडम के बहाने अपनी रहनुमाई को साधने वाले धर्मगुरु हों, चाहे राजनेता या फिर कोई दबंग ही क्यों ना हो, दृश-अदृश मोरपंख की झाडू हाथ में रखता ही है। काले झण्डों से बिदकने से बचने के लिए राजे ने नाल हवाई अड्डे से नागणेचीजी मन्दिर तक के मात्र 18 किलोमीटर के रास्ते के लिए हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल किया। जाहिर है हेलीकॉप्टर को उतारने के लिए मेडिकल कॉलेज मैदान पर आनन-फानन में हेलीपैड भी बनाया गया। जनता के पैसे के दुरुपयोग का उदाहरण तो डिजिफेस्ट का पूरा आयोजन ही था लेकिन फिलहाल उसकी बात छोड़ देते हैं क्योंकि ये नेता सत्ता में आते ही पठान हो जाते हैं और 'पठान पैसा खाता है' वाली कहावत को अच्छे से चरितार्थ करने लगते हैं।
लेकिन जनता जब खुद ही भोली प्रजा बने रहने की फितरत आजादी के 70 वर्षों बाद भी पाले रखे तो शासकों को निरंकुश होने से कौन बरजेगा।
बात मोरपंख की झाडू से चली तो वहीं लौट लेते हैं। सूबे में भाजपा की असल खेवनहार वसुंधरा राजे जब मेडिकल कॉलेज के मैदान में उतरीं तो मानों मोरपंख का झाडू लिए ही उतरी हों। पहले पूर्व देहात अध्यक्ष रामगोपाल सुथार पर हाथ रखा तो फिर किसान मोर्चे के धूड़ाराम डेलू परदोनों के लिए ही भाजपा की टिकट केवल इस बिना पर पक्की मान ली गई। बाद में जब ध्यान आया कि ये तो दोनों ही श्रीडंूगरगढ़ विधानसभा सीट से हैं तो फुसकियां छोडऩे वाले बगलें झांकने लगे।
बात इत्ती से ही आई-गई नहीं होगीसो बात श्रीडूंगरगढ़ विधानसभा क्षेत्र से शुरू करते हैं। दसवें दशक को हासिल वर्तमान विधायक किसनाराम नाई के सामने यदि उनका पोता ही अपनी दावेदारी की सोच ले तो किसनाराम श्लोक बोलते देर नहीं लगाते, इसीलिए अन्य कोई उनकी उम्र का लिहाज कर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को कम से कम नाई के सम्मुख तो दबाये ही रखता है। इतना ही नहीं, खुद उनके रिश्तेदार और सांसद अर्जुनराम मेघवाल के प्रवक्ता अशोक भाटी को मिलती सुर्खियों पर ही किसनाराम भौहें तानते देर नहीं लगाते। पार्टी यदि उम्र का बहाना कर किसनाराम को किनारे ही लगाती है तो उनके स्वभाव का शिकार खुद उनका महत्त्वाकांक्षी पोता ही होगा। संभावित उम्मीदवारों के लिए करवाये गये पार्टी के सर्वे में उसका नाम ही नहीं गया। सर्वे से जो तीन नाम गये बताते हैं उनमें खुद किसनाराम नाई का पहला, दूसरा रामगोपाल सुथार का तो तीसरा तोलाराम जाखड़ का गया बताते हैं। कांग्रेस से लगभग तय उम्मीदवार मंगलाराम जाट समुदाय से हैं। ऐसे में भाजपा इस सीट पर गैर जाट को ही उम्मीदवार बनाती लगती है।
बीकानेर पश्चिम के अस्सी पार के विधायक गोपाल जोशी कभी हां तो कभी ना करते-कहते अब खुलकर ना कहने लगे हैं। ऐसे में उनके पुत्र गोकुल जोशी किसनाराम नाई के पोते की गर्त को हासिल होने से बच गये। कहा जा रहा है कि पार्टी के सर्वे में जो तीन नाम उभर कर आये हैं उनमें खुद गोपाल जोशी के अलावा उनके पुत्र गोकुल जोशी का नाम भी गया है। हालांकि करंट जोशी के पौत्र विजयमोहन ज्यादा दिखा रहे हैं लेकिन सर्वे में वे नहीं आए, यह आश्चर्य है। तीसरा नाम अविनाश जोशी का बताया जा रहा है। मक्खन जोशी के पौत्र और केवल बीकानेर पश्चिम से टिकट हासिल करने के लक्ष्य को लेकर गोटियां बिठाते रहने वाले अविनाश खुद की जमीन पर कितने टिके हैं, नहीं पता लेकिन प्रदेश में शीर्ष के सभी नेता उनके नाम और चेहरे से वाकिफीयत रखते हैं।
बीकानेर पूर्व की गति सबसे न्यारी है। जिले की सात सीटों में मात्र एक सीट जहां से भाजपा की जीत पुख्ता मानी जा रही है, वह बीकानेर पूर्व की है और यह निश्चितता भी वर्तमान विधायक सिद्धिकुमारी का रियासती परिवार से होना मात्र है। जबकि सिद्धिकुमारी जिले के सातों विधायकों में ना केवल सबसे नाकारा हैं बल्कि वह अपने क्षेत्र में कभी रहती भी नहीं हैं। सामन्ती मानसिकता से जनता नहीं निकलेगी और प्रजा बनी रहेगी तो उसकी नियति यही है। हालांकि पार्टी सर्वे में जिन दो अन्य नामों की चर्चा है, उनमें नगर विकास न्यास अध्यक्ष महावीर रांका और पार्टी प्रशिक्षण प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय सह संयोजक सुरेन्द्रसिंह शेखावत का भी है, सिद्धिकुमारी खुद ही पीछे हट जाए तो बात अलग है। लगता तो नहीं है कि लगभग पक्की जीत वाली इस उम्मीदवार को पार्टी हटायेगी। ऐसे में उम्मीदवारी हासिल करने के लिए लगभग सभी तरह की कोशिशों में लगे महावीर रांका को बीकानेर पश्चिम से भाजपा उतार दे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
नोखा से जिन तीन नामों पर विचार होना बताया जा रहा है उनमें 2013 में पार्टी उम्मीदवार रहे और जमानत जब्त करवा चुके सहीराम बिश्नोई के अलावा अच्छी खासी सरकारी नौकरी छोड़कर आए और अपने क्षेत्र में लगातार सक्रिय बिहारीलाल बिश्नोई की दावेदारी काफी वजनी मानी जा रही है। तीसरा नाम कन्हैयालाल जाट का भी है। कांग्रेस से नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी की पक्की उम्मीदवारी को देखते हुए भाजपा चाहे तो इसे प्रतिष्ठा की सीट कन्हैयालाल झंवर को पार्टी में लाकर बना सकती है। अस्वस्था के बावजूद झंवर डूडी को जोर कराने का जोम अब भी रखते हैं। पार्टी सूत्र बताते हैं कि भाजपा इस तरह का दावं खेल सकती है।
लूनकरणसर विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो किसनाराम नाई और गोपाल जोशी की उम्र के वर्तमान विधायक मानिकचंद सुराना खुद की उम्मीदवारी की संभावना से अस्वस्थता के बावजूद इनकार नहीं करते, इसीलिए भाजपा में ना होते हुए भी जिन तीन नामों की चर्चा है उनमें एक मानिकचन्द सुराना का भी है। हालांकि कहा यह जा रहा है कि सुराना अपने पोते सिद्धार्थ को टिकट दिलवाना चाह रहे हैं। अन्य जो दो नाम गए बताते हैं उनमें 2013 में पार्टी से उम्मीदवार रहे सुमित गोदारा और देहात अध्यक्ष सहीराम दुसाद के हैं। सुमित अपने क्षेत्र में जहां लगातार दस्तक देते रहे वहीं दुसाद के लिए अभी भी देवीसिंह भाटी दु:साध्य बने हुए हैं। भाटी किसी को टिकट दिलवाने का दबदबा अब भले ही ना रखते हों-कटवाने भर का तो रखते ही हैं।
खाजूवाला से जो तीन नाम चर्चा में हैं, उनमें वर्तमान विधायक और संसदीय सचिव डॉ. विश्वनाथ मेघवाल तो हैं ही, जिसे लगभग तय ही माना जा रहा है। लेकिन संभावितों में जिस एक नाम का होना और एक अन्य नाम का नहीं होना, कम अचरज की बात नहीं है। पार्टी में विश्वनाथ के धुर विरोधी सांसद अर्जुनराम मेघवाल के पुत्र रविशेखर का नाम पार्टी सर्वे में ना होना जहां अचरज की बात है तो वहीं डॉ. विश्वनाथ की पत्नी और होमसाइंस कॉलेज की डीन डॉ. विमला डुकवाल का नाम आना डॉ. विश्वनाथ के नाम पर किस संशय की चुगली कर रहा है, नहीं पता लेकिन इस से यह तय हो गया है कि बीकानेर के आगामी लोकसभा के संभावित उम्मीदवारों में
डॉ. विमला डुकवाल का नाम जरूर होगा। एक तीसरा नाम जो खाजूवाला से गयावह भोजराज मेघवाल का है। सरपंच भोजराज का नाम कहीं अर्जुनराम मेघवाल की ओर से तो नहीं चलाया गया है?
कोलायत से अजेय माने जाने वाले देवीसिंह भाटी की 2013 की पराजय ने इस विधानसभा क्षेत्र में बहुत उलटफेर कर दिया है। सुनते हैं, रही सही कसर सरकार द्वारा पुलिस महकमे के कुछ माह पहले करवाए गए उस सर्वे ने पूरी कर दी जिसमें बताया गया कि 2018 में देवीसिंह भाटी और भंवरसिंह भाटी ही आमने-सामने यदि होते हैं तो दोनों के बीच वोटों का फासला बजाय कम होने के बढ़ेगा। शायद इसीलिए हां-ना, हां-ना करते देवीसिंह भाटी ना के लिए किसी पुख्ता बहाने की तलाश में हैं- यह तय है कि इस चुनाव से देवीसिंह भाटी यदि बाहर हो जाते हैं तो राजनीति में उनकी बची-खुची चौधर भी खत्म हो जानी है, दबंगई की धार भी कम होगी, वह अलग। देवीसिंह भाटी के पौत्र कम उम्र के चलते इस चुनाव में अपनी पात्रता नहीं रखते हैं। ऐसे में जो तीन नाम पार्टी सर्वे में आए हैं उनमें खुद देवीसिंह भाटी के अलावा उनकी पुत्रवधू और पूर्व सांसद महेन्द्रसिंह भाटी की पत्नी पूनमकंवर का नाम भी बताया जा रहा है। वहीं तीसरा नाम कोलायत प्रधान जयवीर सिंह भाटी का दिया गया है। भाजपा को इस सीट से अब किसी गैर राजपूत उम्मीदवार पर विचार करना चाहिए क्योंकि कांग्रेस के लगभग तय उम्मीदवारों में विधायक भंवरसिंह भाटी राजपूत समुदाय से हैं। यदि पार्टी गैर राजपूत युवा उम्मीदवार पर दावं खेलेगी तो 2023 तक वह पार्टी के लिए उपलब्धि कारक हो सकता है।
दीपचन्द सांखला
09 अगस्त, 2018

3 comments:

Unknown said...

सटीक और स्पष्ट

Unknown said...

बिल्कुल सटीक विश्लेषण

Unknown said...

बिल्कुल सटीक विश्लेषण