यह कहने की वैसे तो जरूरत नहीं कि जो बात आज कही जा रही है, वह आज के माहौल और सन्दर्भों के आधार पर ही कही
है। इसलिए इसे आज के सन्दर्भ में ही लेना चाहिए। बीकानेर जिले की सात सीटों पर
भाजपा के सन्दर्भ से चर्चा कर चुके हैं, इस बार कांग्रेस के सन्दर्भ से कर लेते हैं।
बीकानेर पूर्व से बात शुरू इसलिए करना चाह रहे हैं कि जिले की सात सीटों में
यही एक सीट है जो कांग्रेस के लिए इस बार भी ना केवल चुनौतीपूर्ण है बल्कि भाजपा
यहां से सिद्धिकुमारी को ही मैदान में उतारती है तो जिले की एकमात्र यही सीट भाजपा
की पक्कम-पक्का कही जा सकती है। ऐसा क्यों? उसके कारणों की पूर्व में चर्चा कर चुके हैं। बात अलग तब हो
सकती है जब खुद सिद्धिकुमारी टिकट लेने से इनकार कर दे या भाजपा अपने प्रतिकूल ऐसा
निर्णय लेने का दुस्साहस कर ले। बीकानेर पूर्व के लिए फिलहाल कांग्रेस के पास ऐसा
कोई नाम नहीं जो इन अनुकूल चुनावों में भी सीट निकाल सके। हालांकि पिछला चुनाव हार
चुके गोपाल गहलोत क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं लेकिन वे सिद्धिकुमारी के होते
सीट निकाल ले जाएंगे, कहना मुश्किल है।
बात श्रीडूँगरगढ़ की करने से पूर्व इसे खोल लेते हैं कि शेष छहों सीटों पर
कांग्रेस को अपने पूर्व के उम्मीदवारों को बदलने का विचार कम से कम इस बार तो नहीं
करना चाहिए—उसके उम्मीदवार चाहे
पिछला एक चुनाव हारे हों या दो, इसलिए नेता
प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी के न चाहने के बावजूद श्रीडूँगरगढ़ की उम्मीदवारी
मंगलाराम को ही दी जानी चाहिए। चूंकि रामेश्वर डूडी नेता प्रतिपक्ष के तमगे के
बावजूद नोखा में खुद बीड़ में रहेंगे, ऐसे में अपनी को बचाने के अलावा अन्यत्र कुछ करने की गुंजाइश ही उनके पास नहीं
रहेगी, चाहे वो जिले की कांग्रेस
राजनीति में प्रतिद्वंद्वी वीरेन्द्र बेनीवाल की लूनकरणसर की सीट हो या मंगलाराम
की श्रीडँूगरगढ़। यह सब बताना इसलिए जरूरी है कि हार का झफीड़ खाए जिले के पांचों
कांग्रेसी उम्मीदवार अपने-अपने क्षेत्रों में जैसे-तैसे भी लगे रहे हैं।
कांग्रेस के लिए जो दूसरी सीट भारी पड़ सकती है, वह नोखा की है। नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी का जैसा हेकड़
स्वभाव है, उसमें वे आदमी कमाते कम
हैं, बिगाड़ते ज्यादा हैं। ऐसे
में नोखा में कन्हैयालाल झंवर चाहे निर्दलीय फिर से मैदान में आ जाएं तो वे
कांग्रेस-भाजपा दोनों का खेल बिगाडऩे की कूवत तो रखते ही हैं और यदि भाजपा झंवर या
झंवर के पुत्र नारायण को उम्मीदवार बनाने में सफल हो जाती है तो जिले की यह दूसरी
सीट होगी जहां से भाजपा इस बार के प्रतिकूल माहौल में भी सीट निकाल ले जा सकती है।
कोलायत में भंवरसिंह भाटी ने अपना ठाठा ना केवल ठीक-ठाक जमा लिया है बल्कि
देवीसिंह जैसे दिग्गज प्रतिद्वंद्वी होने पर भी जीत का फासला बढ़ा चुके हैं। यही
वजह है कि भाटी न केवल चुनाव ना लडऩे की बात करने लगे हैं बल्कि अपने किसी परिजन
को चुनाव में उतारने में भी झिझकने लगे हैं। खुद देवीसिंह हों या उनका कोई परिजन,
यह दूसरी हार उनके रोब-रुआब में बट्टा ही
लगाएगी। ऐसे में कोलायत से भाजपा को अपना हिसाब-किताब बनाए रखना है तो किसी साफ
सुथरी छवि वाले गैर राजपूत उम्मीदवार पर दावं लगाना चाहिए, जो कोलायत में भाजपा का भविष्य हो सके।
खाजूवाला में गोविन्द मेघवाल पर दावं लगाना ही कांग्रेस के लिए अनुकूल रहेगा।
कांग्रेस किसी दूसरे नाम पर विचार भी करेगी तो गोविन्द मेघवाल जिस तासीर के हैं,
उसमें वे मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने से बाज
नहीं आएंगे। ऐसे में नुकसान कांग्रेसी उम्मीदवार को ही होगा। नोखा में जैसे
कन्हैयालाल झंवर खेल बिगाडऩे-बनाने की क्षमता रखते हैं, ऐसे ही खाजूवाला में नोखा की राजनीति से आए गोविन्द मेघवाल
भी ऐसी ही तुनक रखते हैं। अपने क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहना उनकी इस मंशा को
जाहिर करता है कि उन्हें चुनाव तो लडऩा ही है।
कन्हैयालाल झंवर और गोविन्द मेघवाल के हठ से तो तुलना नहीं कर सकते लेकिन जिले
में एक असल पेशेवर राजनेता मानिकचंद सुराना भी चुनाव लडऩे को संकल्पबद्ध हमेशा
रहते हैं, चाहे पार्टी उन्हें टिकट
दे या ना दे। सुराना ना केवल अपनी पार्टी बनाकर मैदान में उतर सकते हैं, नहीं तो निर्दलीय उतर कर भी चुनाव जीत कर दिखा
सकते हैं। इसीलिए खुद सुराना या उनके पौत्र सिद्धार्थ सुराना मैदान में आ धमकने की
स्थिति में लूनकरणसर विधानसभा क्षेत्र की सीट भी ऐसी है जहां का अनुमान चुनावी
चौसर बिछने के बाद ही लगाया जा सकता है।
भाजपा यदि सुराना या उनके पौत्र को उम्मीदवार नहीं बनाती है तो हो सकता है
सुराना मुकालबे को त्रिकोणीय बना दें, अपने क्षेत्र में सुराना की इतनी पैठ तो है ही। ऐसे में कांग्रेस के लिए
वीरेन्द्र बेनीवाल के नाम पर विचार करना मजबूरी हो सकता है। लूनकरणसर में मुकाबला
त्रिकोणीय रहे या सीधा, सत्ता में हाने
के बावजूद भाजपा की पेठ जाटों में खत्म होने के चलते कांग्रेस के लिए बेनीवाल ही
फायदेमन्द हो सकते हैं। हालांकि पिछले एक अरसे से डॉ. राजेन्द्र मूंड क्षेत्र में
राजनीतिक बुआई जरूर कर रहे हैं लेकिन माहौल की अनुकूलता उनका साथ कितना देगी,
कह नहीं सकते।
फेरी पूरी कर बीकानेर लौट आते हैं और सुर्खियों में रहने वाली बीकानेर पश्चिम
की सीट पर बात कर लेते हैं। यहां से दो बार हार चुके कांग्रेस के दिग्गज डॉ. बीडी
कल्ला खुद अपने टिकट पर आश्वस्त नहीं हैं। पार्टी अध्यक्ष राहुल क्या फार्मूला
लाते हैं, उसकी वे जानें। बीकानेर
पश्चिम की सीट निकालने की कूवत अब भी किसी में दिखाई देती है तो वह डॉ. बीडी कल्ला
ही हो सकते हैं। हालांकि राजकुमार किराड़ू क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं लेकिन
सामने भाजपा ने कोई गंभीर उम्मीदवार उतार दिया तो उससे पार पाना कल्ला के अलावा
अन्य किसी के लिए मुश्किल होगा। इसीलिए बीकानेर पश्चिम से यदि कल्ला ही उम्मीदवार
होते हैं तो यह सीट भी कांग्रेस के लिए आसान हो सकती है।
—दीपचन्द सांखला
16 अगस्त, 2018
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