Tuesday, May 2, 2017

सर्वमंगल की कामना / टीम अन्ना और सत्याग्रह (26 अक्टूबर, 2011)

सर्वमंगल की कामना
चौदह वर्ष के वनवास के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जिस दिन अयोध्या लौटे, कहा जाता है कि उस दिन को उनके परिवार ही नहीं पूरे अयोध्यावासियों ने भी खुशियों का सबसे बड़ा दिन माना। राम की अगवानी में हर घर की मुंडेर पर पंक्तिबद्ध दीपक सजाये गये। अयोध्यावासियों के लिए अविस्मरणीय हो गया था वो दिन। इसीलिए प्रतिवर्ष उस दिन उत्सव के रूप में मनाने लगे। भारत के अन्य प्रांतों में जिसने भी इस उत्सव की महिमा जानी, साल दर साल इस दिन को अपनी प्रसन्नता प्रकट करने का निमित्त बना लिया। इस तरह से कालांतर में यह दिन पूरे भारतवर्ष में दीपावली-पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।
भ्रष्टाचार, बाजारवाद स्वार्थ के बोलबाले तथा देश, समाज, परिवार और व्यक्ति के संकीर्ण होते चले जाने के चलते यह त्योहार धीरे-धीरे, अपनी दुनिया, का त्योहार होते चला जा रहा है। चिंता की बात तो यह है कि समर्थ समाज की यह संकीर्ण दुनिया अब अकसर खतरनाक ढंग से खुद एक व्यक्ति की दुनिया बनती जा रही है। समाज के लगभग आधे से भी ज्यादा कमजोर हिस्से के किसी एक परिवार को आज के दिन छोटी-सी खुशी देने की वजह यदि हम नहीं दे सकते हैं तो इस त्योहार के सामूहिक होने पर शंकाएं खड़ी हो जाती हैं।
विनायक इस उम्मीद के साथ सर्वमंगल की कामना करता है कि अगले वर्ष इसी दिन तक अपने पाठकों के सहयोग से समाज के एक छोटे से हिस्से के लिए ही सही, खुशियों का निमित्त बन सकेगा।
टीम अन्ना और सत्याग्रह
विनायक ने अपनीआज की बात में अन्ना, अन्ना टीम और अन्ना आंदोलन पर जिस तरह की शंकाएं एक से अधिक बार प्रकट कीं, वे अब दीखने लगी हैं।
अन्ना टीम के अहम सदस्य अरविन्द केजरीवाल ने खुद अपने पर और अपनी साथी किरण बेदी पर लग रहे आरोपों को नजर अंदाज करते हुए कल ही कहा है कि हम दोषी हैं तो फांसी दे दो लेकिन जनलोकपाल बिल पास करवा दो। टीम अन्ना लगातार इस भ्रम में रही और है कि उनको मिल रहा भारी जन समर्थन जनलोकपाल बिल का समर्थन है और इस तरह का वो समर्थन टीम अन्ना का समर्थन है। इस कॉलम में पहले भी कहा गया कि वो भ्रष्टाचार के प्रति आक्रोश और उसके विरोध की अभिव्यक्ति थी। जनलोकपाल भ्रष्टाचार को कम करने की एक तजवीज तो हो सकती है लेकिन ताबीज नहीं, जबकि टीम अन्ना अब भी जनलोकपाल बिल को भ्रष्टाचार का ताबीज ही मान रही है।
सत्याग्रह की बात करने वाली अन्ना टीम यह भूल गई कि सत्य के प्रति आग्रह की पारदर्शिता साफ पानी की पारदर्शिता से भी कुछ ज्यादा की उम्मीद करती है। सत्याग्रह की चदरिया ओढने से पहले खुद को उस योग्य बनाना कितना मुश्किल है ऐसा अन्ना टीम को समझ में आना जरूरी है। अन्यथा देश का भरोसा फिर से पाना मुश्किल ही नहीं असंभव होगा।

वर्ष 1 अंक 58, बुधवार, 26 अक्टूबर, 2011

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