Thursday, December 7, 2017

आधा-अधूरा एलिवेटेड रोड : डा. गोपाल जोशी और सिद्धिकुमारी के लिए धर्म निभाने और रुतबा दिखाने का अवसर

बीकानेर शहर की बड़ी प्रतिकूलता यह रही है कि इसे अभी तक ऐसा कोई जनप्रतिनिधि नहीं मिला जो इसके विकास की समझ रखता हो, कुछ करने-करवाने का इतना जुनून रखता हो कि उसे सपने भी इससे संबंधित ही आएं। वोट लेने आने वाले दावे तो कई करते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद उनके दावों का हश्र वही होता है जो उनकी पार्टी के चुनावी घोषणापत्रों का होता है। जीते हुए प्रतिनिधियों के काल में रूटीन में कुछ कार्य हुए तो अगले चुनावों में उन्हीं की सूची बना वोट लेने फिर हाजिर हो जाते हैं।
पिछले पचीस से ज्यादा वर्षों से कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या पर शहर में खदबदाहट है। समाधान पर असहमतियों के बावजूद इसका उल्लेख जरूरी है कि पूर्व विधायक एडवोकेट रामकृष्ण दास गुप्ता लगातार मोर्चे पर डटे हुए हैं। एलिवेटेड रोड जैसे इस व्यावहारिक समाधान को लेकर लूनकरणसर से विधायक मानिकचन्द सुराना की सक्रियता भी उल्लेखनीय है। लेकिन मजाल है कि शहर का कोई जनप्रतिनिधि इस मसले पर पूरे मन से व्यावहारिक तौर पर सक्रिय हुआ हो।
इसीलिए इस आलेख के शीर्षक में शहर के दोनों विधायकों का आह्वान किया है। दस-बारह वर्षों से ही सही समस्या का सर्वाधिक व्यावहारिक समाधान एलिवेटेड रोड किसी मुकाम तक पहुंचता दीख रहा है, लेकिन आधा-अधूरा। सरकारी कामों में बिगड़े तारतम्य का यह अनोखा उदाहरण है। 2005-06 में इन्हीं वसुंधरा राजे के शासन में एलिवेटेड रोड की योजना बनी, तब यह काम आरयूआईडीपी को दिया गया। तब इसके मुखिया सरदार अजित सिंह ने, जिन्होंने केन्द्र के परिवहन मंत्रालय के मुख्य अभियंता पद से सेवानिवृत्त होकर यह जिम्मेदारी संभाली, इस योजना का प्रारूप बनाने के लिए स्थानीय अभियन्ताओं का सहयोग लियाहेमन्त नारंग और अशोक खन्ना की सेवाओं और रेलवे के एन. के. शर्मा की सलाह से तब जो योजना बनी वह पूर्ण व्यावहारिक थी।
बात अब दुबारा बनी एलिवेटेड योजना के मिनिट्स के हिसाब से कर लेते हैं, महात्मा गांधी रोड जिसे केईएम रोड भी कहा जाता है, पर आवागमन करने वाला यातायात लगभग 60 प्रतिशत से ऊपर वह है जिसे कोटगेट के भीतर की ओर से आना और जाना होता है। इसी के मद्देनजर कोटगेट की तरफ आने-जाने वालों की सुविधा का ध्यान रखते हुए तब बनी योजना में एलिवेटेड रोड का एक सिरा राजीव मार्ग पर उतारा गया था। यानी शार्दूलसिंह सर्किल, रेलवे स्टेशन और राजीव मार्ग इन तीनों सिरों के साथ तब बनी योजना कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या का समाधान अधिकांशत: करती। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि सौ फीसदी समाधान की तकनीक विज्ञान अभी तक विकसित नहीं कर पाया है। अत: अधिकतम पर सन्तोष करना लाचारी है।
अब जब यह समाधान सिरे चढ़ता दीख रहा है तो आधा-अधूरा। आधा-अधूरा इसलिए कि अब बनी योजना में राजीव मार्ग वाले सिरे को गायब कर दिया गया है। ऐसे में इस अधकचरे समाधान पर शहर अपने को ठगा महसूस क्यों ना करें? दरअसल इस योजना की जो कंसल्टिंग एजेन्सी आईसीटी है, ऐसा लगता है वह इसे शुद्ध राष्ट्रीय राजमार्ग के तौर पर ही देख-समझ रही है। शायद उसे इसी तरह देखना समझाया गया हो। जबकि इस योजना को राष्ट्रीय राजमार्ग के तौर पर देखने का मकसद मात्र केन्द्र से वित्तीय संसाधन जुटाना भर ही है। असल में तो यह शहरी यातायात की समस्या है। इसलिए होना तो यह चाहिए था कि इसे उसकी असल जरूरतों के अनुसार ही बनाया जाता। चूंकि कंसल्टिंग एजेन्सी इसे राष्ट्रीय राजमार्ग के तौर पर ही देख रही है इसलिए राजीव मार्ग के तिराहे से वह इसलिए बचना चाह रही है कि इससे दुर्घटनाओं की आशंका बढ़ेगी, यह सही भी है। यदि यह एलिवेटेड रोड राष्ट्रीय राजमार्ग पर होता तो तेज रफ्तार के चलते दुर्घटना की आशंकाएं होती भी।
लेकिन यह एलिवेटेड रोड तो शहर के उस हिस्से में बनना है जहां यातायात की रफ्तार ही सामान्यत: 20-25 कि.मी. के ऊपर की संभव नहीं है। जयपुर का उदाहरण लें तो तेज रफ्तार जयपुर-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर ट्रांसपोर्ट नगर के बाद जो फ्लाइओवर बना है उसमें से एम.आई. रोड की तरफ जाने के लिए तीसरा सिरा निकाला गया। यह सुविधा शहर के उस बाहरी हिस्से में विकसित की गई है जहां भारी वाहनों के साथ यातायात की रफ्तार सामान्यत: तेज रहती है। बीकानेर कोटगेट क्षेत्र में तो यातायात इससे आधी रफ्तार में भी नहीं होगा और भारी वाहनों के आवागमन का तो कोई मसला भी नहीं है।
बीकानेर शहर की इस समस्या के अधिकतम समाधान के लिए एलिवेटेड रोड का राजीव मार्ग वाला सिरा 'टू-वे' रखना भी जरूरी है, यह सावचेती इसलिए जरूरी है कि कंसल्टिंग एजेन्सी कल को कहीं 'वन-वे' का ही विकल्प दे।
राजीव मार्ग वाला सिरा 'टू-वे' रखना तकनीकी तौर पर संभव है। इस एलिवेटेड रोड योजना में कुल चौड़ाई आधार मार्ग के संकरेपन के चलते 12 मीटर ही तय हो पाई है। लेकिन नागरी भण्डार के आगे जहां राजीव मार्ग वाला सिरा एलिवेटेड रोड से मिलेगा, वहां के आधार मार्ग की चौड़ाई अन्य सड़कों की चौड़ाई से ज्यादा है, ऐसे में एलिवेटेड रोड पर बनने वाले इस तिराहे के तीनों ओर पर्याप्त तकनीकी दूरी तक एलिवेटेड रोड की चौड़ाई 14 मीटर (जो बिना तोड़-फोड़ के संभव है) कर आगे 12 मीटर में मिलान की जा सकती है। अलावा इसके इस तिराहे पर संभावित दुर्घटनाएं रोकने के लिए तीनों ओर 14 मीटर की चौड़ाई तक मैटल बीम क्रेश बेरियर (एम सी बी) का डिवाइडर दिया जा सकता है। इसके साथ ही एलिवेटेड रोड के इस तिराहे पर ट्रेफिक लाइटें लगा कर तथा 14 मीटर के 'टू-वे' पर एक तरफ मिल रही साढ़े पांच मीटर सड़क पर मीडियेटर लेन डालकर भी यातायात को संयमित किया जा सकता है। ऐसे में एलिवेटेड रोड के तिराहे को तकनीकी तौर पर खारिज करना उचित नहीं लगता।
इतनी सब खेचल का मकसद यही है कि जब काम हो ही रहा है तो अधिकतम सुविधावाला हो। और इसके लिए शहर अपने जनप्रतिनिधियों से उम्मीदें नहीं करे तो किनसे करेगा? बीकानेर पश्चिम विधायक डा. गोपाल जोशी और बीकानेर पूर्व विधायक सुश्री सिद्धिकुमारी के लिए विशेष ध्यानार्थ ही इसका शीर्षक लगाया है। इस एलिवेटेड रोड का अधिकांश हिस्सा चाहे बीकानेर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में हो लेकिन सिद्धिकुमारी को ध्यान होना चाहिए कि इस एलिवेटेड रोड का उपयोग करने वालों में 20 से 25 प्रतिशत वे लोग भी होंगे जो पूर्व विधानसभा क्षेत्र के मतदाता हैं और जिन्हें किसी ना किसी काम से कोटगेट के अन्दर और रेलवे स्टेशन की ओर आने-जाने का काम पड़ता है।
दीपचन्द सांखला

07 दिसम्बर, 2017

No comments: