Thursday, September 19, 2013

अस्पताल ईवीएम मशीन नहीं

इसे संयोग ही कहेंगे कि अनशनरत आन्दोलनकारियों से कल जब जिले के तथाकथित दिग्गज नेता मिलने गये, उसके थोड़ी देर बाद ही आन्दोलन दोनों ओर से समाप्त हो गया। ये सभी नेता कांग्रेस से सम्बन्धित थे। अनशन पर भी बैठे ग्यारह में से आठ कांग्रेसी थे और शेष तीन भाजपा से। हो सकता था कि अनशनकारियों को कुछ समय और मिलता तो शेष तीन भाजपाइयों की हौसला आफजाई के लिए तथाकथित भाजपाई दिग्गज भी पहुंच जाते।
इन कांग्रेसी और भाजपाई दिग्गजों के लिए विनायक ने तथाकथित का प्रयोग किया है। इस प्रयोग के कारण विनायक ने कल बता दिए थे। इन्हीं सब नेताओं की सरपरस्ती में या कहें नज़रअन्दाजी के चलते ना केवल इस अस्पताल की यह गत हुई है बल्कि शहर की बहुत-सी समस्याएं विकराल होती गईं। इन नेताओं को अपने या अपनों के हितों से इतर कोई सरोकार नहीं है। कल भी ये तब पहुंचे जब लगा कि इन्हीं की पार्टी के आठ युवक अनशन पर हैं और अब बात खींची तो पार्टी की भद होएगी और इस चुनावी मौसम में उस आंच की झुलस उन तक भी थोड़ी पहुंच सकती है। यह तो पता है कि इस तरह के प्रदर्शनों के साइडइफैक्ट इन दिग्गजों को कोई ज्यादा नहीं होते हैं, इसीलिए अस्पताल और स्कूलों जैसी आम अवाम की जरूरतों की बदहाली का असर चुनावों पर सीधे नहीं पड़ता।
अनशनकारियों के समर्थन में पहुंचे चारों कांग्रेसी दिग्गज यह क्षमता तो रखते हैं कि यदि वे स्वार्थों से ऊपर उठकर इस पीबीएम अस्पताल के लिए निष्ठापूर्वक समय निकालें तो हालात बेहतर हो सकते हैं पर बात वहीं रुकती है कि इससे क्या वोटों में बढ़ोतरी सीधे होगी। नहीं होती है तो समय क्यों जाया करें। ऐसा करना जनप्रतिनिधि के कर्तव्यों में आता है तो कर्तव्य जाए पानी लेने। आम-अवाम को तकलीफें होती हैं तो भुगते, हर किसी को रोज तो अस्पताल जाना नहीं होता।

19 सितम्बर, 2013

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