Monday, September 16, 2013

लाइलाज पीबीएम और हम

फेसबुक पर कुछ मित्र लिखने लगे हैं कि पीबीएम अस्पताल लाइलाज है। मतलब जो संभागीय अस्पताल खुद बीमार है वह शहर, जिला और संभाग के लोगों का इलाज कैसे करेगा। राजस्थान की सरकार ने दवाएं मुफ्त कर दी, जांचें मुफ्त कर दी और अब 2 अक्टूबर से डायलेसिस जैसी प्रक्रिया भी मुफ्त कर दी जाएगी। यह सब योजनाएं कहने को तो एक लोक कल्याणकारी सरकार के मानक पूरे करती दीखती हैं लेकिन जिस व्यवस्था से इन्हें क्रियान्वित किया जाना है, वह पूरी व्यवस्था पक्षाघात से ग्रसित है। अस्पतालों में आए दिन डॉक्टरों, नर्सों, कर्मचारियों से मरीजों के तिमारदारों का झगड़ा होता है, अब तो नौबत हाथापाई तक आने लगी है। दूसरी ओर अस्पताल की साफ-सफाई और सुरक्षा व्यवस्था दोनों ठेके पर होने के बावजूद ना तो चाक चौबन्द सुरक्षा है और साफ-सफाई तो ऐसी जैसे रख-रखाव होता ही नहीं। साफ-सफाई के मामले में कहा जा सकता है जब तक अस्पताल आने-जाने वाले लोग सहयोग नहीं करेंगे तब तक कितने भी लोग साफ-सफाई में लगें इसे व्यवस्थित रखना संभव नहीं।
अस्पताल को व्यवस्थित करने के लिए जिला कलक्टर ने पहल की और पांच प्रशासनिक अधिकारियों का इसके लिए काम सौंपा गया। जिसका विरोध डॉक्टरों ने किया है। डॉक्टरों को लगता है कि जिन्हें चिकित्सा सम्बन्धी कोई जानकारी नहीं, वे उन्हें कैसे संचालित-निर्देशित कर सकते हैं। तार्किक रूप से उनकी बात सही भी है। पर इन पैंसठ वर्षों से पूरे देश को चलाने और नेताओं को हांकने वाले इन प्रशासनिक अधिकारियों को लगने लगा है कि वेहरफनमौलाहैं, किसी पर पूर्ण निर्भरता ऐसा वहम करवा ही देती है। देश की व्यवस्था देखने वाले इन प्रशासनिक अधिकारियों ने हाल ही में इन नेताओं को हांक कर अपने और अपने परिजनों के सरकारी खर्चे पर विदेश में इलाज की व्यवस्था करवा ली और यह भी कि जरूरत पड़ने पर इन्हें और इनके परिजनों को इलाज के लिए सरकारी खर्चे पर हैलिकॉप्टर भी उपलब्ध होगा। अब देखिये इन नेताओं और अधिकारियों की मिलीभगत के चलते जिस देश में आजादी के पैंसठ वर्ष बाद भी आमजन को व्यवस्थित न्यूनतम स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं और जो इस अव्यवस्था के लिए मोटे तौर पर जिम्मेवार भी हैं, उन्होंने सार्वजनिक धन से अपने और अपने परिजनों के लिए विशिष्ट चिकित्सा सुविधाएं हड़प ली।
विनायक पहले भी कई बार बता चुका है कि प्रत्येक समर्थ साम, दाम, दण्ड, भेद से अपने लिए अतिरिक्त धन और सुविधाएं हड़पने से नहीं चूकता। ऐसी स्थिति में यह आकांक्षा करना कि मेरे अलावा शेष सभी ईमानदार और कर्तव्य परायण बने रहें, कैसे संभव है। समाज के सभी समर्थ येन-केन तरीकों से धन-बल बटोरने से नहीं चूकते और डॉक्टरों से उम्मीद की जाए कि वे ऐसा ना करें।
शुक्रवार की पीबीएम की घटना के विरोध स्वरूप कल शहर के बाजारों को बन्द रखा गया। जैसे बन्द कोई जादुई चिराग है। कितने दिहाड़ी मजूदर कल रोजगार से वंचित रहे होंगे, बन्द करवाने वालों को थोड़ा यह तलपट भी देख लेना चाहिए और यह भी वे खुद कितने निष्ठावान और ईमानदार हैं।
पीबीएम अस्पताल के हालात आए दिन बद से बदतर होते जा रहे हैं। जो प्रभावशाली और दबंग हैं वे समय पर सभी सेवाओं को हासिल कर लेते हैं, शेष आमजन तो नारकीय यातनाएं भोगने को मजबूर हैं। कुछ डॉक्टर सेवाभावी हैं, वे भी इस अव्यवस्था में कुछ खास नहीं कर पाते। हालात यहां तक हैं कि भारी ऊपरी कमाई के बावजूद कोई भी इस अस्पताल का अधीक्षक बनना नहीं चाहता। वर्तमान अधीक्षक भी इसलिए तैयार हो गये कि उन्हें लगा होगा कि यह पद उनकी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने में सहायक हो सकेगा। कुल जमा बात यही है कि यह संभव ही नहीं है कि मैं तो बेईमान बना रहूं और शेष सभी ईमानदार हो जाए।

16 सितम्बर, 2013

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