Thursday, September 26, 2013

चुनावी रमक-झमक के दो दिन

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ऐसी विरासती हैसियत में है कि कोई भी कांग्रेसी, चाहे वह कितना ही अनुभवी और बौद्धिक हो उन्हें निर्देश तो क्या बिना मांगे सलाह भी नहीं दे सकता। राहुल ने पार्टी की बागडौर चुनौतीपूर्ण स्थितियों में सम्भाली है, मीडिया पर भरोसा करें तो आमजन में केन्द्र सरकार के खिलाफ घोर रोष है यानी एंटी इनकम्बेंसी पूरे परवान पर है। निचले स्तर पर लगभग संगठनहीन हो चुकी कांग्रेस में इन परिस्थितियों में भी संगठन ढूंढ़ने का राहुल ने बड़ा बीड़ा उठाया है। पांच उन प्रदेशों में विधानसभा चुनाव है जहां कांग्रेस सीधे मुकाबले में है, राजस्थान में भी। सो राहुल के दिए तरीकों से चुनावी तैयारियां हो रही हैं, उम्मीदवारों से बाकायदा आवेदन मांगे गये, अब आवेदकों के साक्षात्कार हो रहे हैं। साक्षात्कार देने वाले कई कहीं और साक्षात्कार लेने में व्यस्त हैं, इनमें से एक शहर के डॉ बीडी कल्ला भी हैं जो पश्चिम की सीट से आवेदक भी हैं और भरतपुर क्षेत्र में साक्षात्कार लेने वालों में भी। दोनों की तारीखें एक होने से उन्हें तो इसशर्मिंदगीसे छूट मिल गई। लेकिन जिले के ही एक अन्यदिग्गजगृह राज्यमंत्री विरेन्द्र बेनीवाल अपने मन को साक्षात्कारदाता के रूप में तैयार नहीं कर पाए सो शहर में होते हुए भी साक्षात्कारदाताओं की भीड़ में शामिल नहीं हुए। साक्षात्कार लेने वालों ने भी उन्हें इसकी छूट दे दी। यह नहीं कह सकते कि राहुल को इसकी भनक लगी तो वे क्या एक्शन लेंगे?
पिछले दो दिनों में जो अजब-गजब देखा गया वह हैरत में डालने वाला है। वर्षों से जिनका केवल खुद के फोटो देखने और खुद से सम्बन्धित खबरों के अक्षरों के अलावा किन्हीं अन्य अक्षरों से सरोकार नहीं था, उन्हें भी सम्भावित प्रश्नों के जवाब इधर-उधर की किताबों और गुगल पर सर्च करते देखा गया। प्रश्नों से सम्बन्धित जानकारियां जो दे सकते थे उनकी चिरोरी करते और फोन पर बतियाते भी इन्हें देखा गया। आवेदकों ने आपस में भी एक-दूसरे की जिज्ञासाएं शांत की। राहुल की यह एक्सरसाइज कुछ वर्षों तक चली तो हो सकता है कुछ प्रकाशक इससे सम्बन्धित गाइड ही छाप दे। क्योंकि एक-एक क्षेत्र से सौ-सौ, डेढ़-डेढ़ सौ आवेदन रहे हैं और ऐसा-सा ही कुछ राहुल ने लोकसभा, निगम, पालिका और पंचायत चुनावों में कर दिया तो अन्दाज लगाएं कितने अभ्यर्थी हो जाएंगे।
खैर इस कौथिणे को यहीं छोड़ देते हैं और बीकानेर से सन्दर्भित सीटों के आवेदकों की बात करेंगे तो पाठकों की उत्सुकता का पोषण होगा। डॉ. कल्ला की बात तो ऊपर कर ही ली जिन दो-तीन नामों ने बीकानेर पूर्व और पश्चिम दोनों से दावेदारी की, उनमें महापौर भवानीशंकर शर्मा, डॉ. तनवीर मालावत और गुलाम मुस्तफा बाबू भाई उल्लेखनीय है। इनमें से भानीभाई यदि धार-विचार ले तो दोनों में से एक टिकट ले पड़ेंगे, भानीभाई ऐसा करेंगे, लगता नहीं है, अपनी उम्र के इस पड़ाव पर महापौरी भोगते वे शायद ही चुनावी चकचक में पड़े। डॉ. तनवीर और गुलाम मुस्तफा की दोनों सीटों से दावेदारी इस बात का संकेत दे रही है कि अल्पसंख्यकों को यह समझ में आने लगा है कि बीकानेर (पूर्व) के बनिस्पत पश्चिम की सीट उनके ज्यादा अनुकूल है, और ऐसा है भी, पर अन्य पिछड़े वर्ग के दावेदारों को यह समझने में शायद और समय लगेगा कि उनके लिए भी ज्यादा अनुकूल सीट बीकानेर पश्चिम ही है। अन्य पिछड़े वर्ग के दावेदारों को इसका भान होता तो इस तरह पूर्वी बाड़े में इकट्ठे नहीं होते।
अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्ग के कुछ दावेदारों ने तो बीकानेर पूर्व से दावेदारी शायद इसलिए नहीं दिखाई किभाई-साऔरसाहबइसे कहीं अन्यथा ले लें (शहर में कल्ला बन्धुओं को इन नामों से भी जाना जाता है)
इन दोनों स्थानों के दावेदारों में से एक-एक का विश्लेषण करें तो पाठकों के लिए बड़ा रोचक गद्य लिखा जा सकता है पर विनायक इससे सप्रयास बचेगा। दोनों सूचियों में महिलाओं के एकाधिक नाम होने को तैतीस प्रतिशत आरक्षण की अगवानी कह सकते हैं। शेष बहुत से नाम तो ऐसे हैं जो इस नाम छपाई के माध्यम से ही अपने-अपने धंधे-पानी में अनुकूलता जुगाड़ लेंगे।

26 सितम्बर, 2013

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