Sunday, December 3, 2023

बीकानेर जिले की चुनावी राजनीति और 1962 के आम चुनाव

 देश के तीसरे आम चुनाव 1962 में हुए। आजादी बाद हुए तीनों चुनाव में न केवल परिसीमन हुए बल्कि प्रक्रिया में सुधार के साथ व्यावहारिक और त्रुटि-रहित होते गये। किसी देश के शासन में लोकतांत्रिक विकास की प्रक्रिया यही हो सकती है।

राजस्थान में लोकसभा की 22 सीटें हो गयीं, गंगानगर सीट अलग आरक्षित सिंगल सीट बनी—जो 2019 के चुनाव तक आरक्षित है। बीकानेर जिले की चार (नोखा-मगरा से अलग होकर कोलायत सीट अस्तित्व में आयी) और चूरू जिले की डूंगरगढ़, सरदारशहर तथा चूरू और रतनगढ़ सहित आठ विधानसभा सीटों के साथ बीकानेर लोकसभा क्षेत्र था।

1962 के इस चुनाव में बीकानेर से मात्र तीन उम्मीदवार थे। दो निर्दलीय और एक सीपीआई से। डॉ. करणीसिंह और किसनाराम निर्दलीय थे और सीपीआई से सुमेरसिंह। डॉ. करणीसिंह 176590 वोट लेकर विजयी हुए। दूसरे नंबर पर किसनाराम ने 61523 वोट लिए और सुमेरसिंह ने 13473 वोट। कांग्रेस ने उम्मीदवार न देकर डॉ. करणीसिंह का अपरोक्ष समर्थन किया।

इस वर्ष के विधानसभा चुनाव में बीकानेर की चार सीटें थीं। नोखा आरक्षित रही और इससे मगरा क्षेत्र अलग होकर अस्तित्व में आया कोलायत। लूनकरणसर और बीकानेर सीट थी ही। नोखा से कुल 5 उम्मीदवारों में रूपाराम फिर विजयी हुए। कांग्रेस के प्रभुदयाल दूसरे नंबर पर रहे। शेष तीनों उम्मीदवार निर्दलीय थे। 

लूनकरणसर से कुल सात उम्मीदवार थे। कांग्रेस के चौधरी भीमसेन 7783 वोट लेकर फिर विजयी हुए। दूसरे नंबर पर 6043 वोट लेकर सीपीआई के हुक्माराम गौड़ कड़ी टक्कर में रहे। ये हुक्माराम वे ही थे, जिन्होंने महाजन राजा के अत्याचारों के खिलाफ आन्दोलन का नेतृत्व किया था। यहीं से स्वतंत्र पार्टी प्रजा समाजवादी पार्टी और जनसंघ के उम्मीदवार भी थे। लेकिन तीसरे नंबर पर 5316 वोटों के साथ निर्दलीय रामचन्द ही रहे।

इसी चुनाव में अस्तित्व में आयी कोलायत सीट को प्रजा समाजवादी पार्टी के मानिकचन्द सुराना ने अपना क्षेत्र बनाया और 7976 वोटों के साथ विजयी होकर विधानसभा पहुंचे। कुल 10 उम्मीदवारों में निर्दलीय चन्द्रसिंह ने 6320 वोट लिए और दूसरे नंबर पर रहे। बीकानेर शहर से निर्दलीय के तौर पर पहले विधायक रहे सेठ मोतीचन्द खजांची कांग्रेस से उम्मीदवार थे, जिन्होंने 5466 वोट लिए और तीसरे नंबर पर रहे। जनसंघ के मोहनलाल जोशी मात्र 663 वोट लेकर आठवें स्थान पर रहे। शेष सभी निर्दलीय उम्मीदवार थे। चन्द्रसिंह डॉ. करणीसिंह समर्थित थे। इस तरह समाजवादी मानिकचन्द सुराना ने इस चुनाव में सामन्तशाही और धनबल को एक साथ परास्त किया।

1962 के आम चुनाव से बीकानेर शहर के चुनाव रोचक बन पड़े। शहर से कुल 8 उम्मीदवार मैदान में थे। प्रजा समाजवादी पार्टी के मुरलीधर व्यास 11725 वोट लेकर दूसरी बार विधानसभा पहुंचे। कांग्रेस के स्वतंत्रता सेनानी मूलचन्द पारीक 9673 वोट लेकर दूसरे नंबर पर रहे। कांग्रेस के चुनाव प्रचार में खुद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू आए, स्टेडियम में आम सभा को संबोधित किया।

तीसरे नंबर पर 3508 वोट लेकर निर्दलीय गोपाल जोशी रहे। तब के युवा गोपाल जोशी बाद में इसी सीट से 1972 में कांग्रेस से और 2008 और 2013 में 'बीकानेर पश्चिम' बनी सीट से भारतीय जनता पार्टी से विधायक रहे। गोपाल जोशी के पहले चुनाव अभियान की खास बात थी बीकानेर का बौद्धिक जगत का उनके साथ होना—जिनमें मनीषी डॉ. छगन मोहता प्रमुख थे। 

इन्हीं बौद्धिकों की बदौलत जोशी की आम सभाओं को लोग सुनने पहुंचते थे। जनसंघ ने इस चुनाव में अपना उम्मीदवार फिर बदला। आरएसएस स्वयंसेवक तथा जिला जज रहे जेठमल आचार्य न्यायिक सेवा से इस्तीफा देकर जनसंघ से चुनाव मैदान में उतरे लेकिन उन्हें मात्र 1265 वोट मिले और 5वें नंबर पर रहे। इसी चुनाव में फिल्मी गीतकार भरत व्यास और चरित्र अभिनेता बीएम व्यास के बड़े भाई जनार्दन व्यास निर्दलीय प्रत्याशी थे। लेकिन वे बताते अपने को (अपंजीकृत) जय हजारा दल का प्रत्याशी। दोनों अनुज उनके प्रचार में बम्बई से  बीकानेर आये, फिल्मी दुनिया के प्रति आकर्षण तब भी कम नहीं था। जनार्दन व्यास को सबसे कम मात्र 245 वोट मिले।

इस चुनाव के परिणामों के बाद एक ऐसी बात हुई जिसने शहर की राजनीति में प्रभावी पुष्करणा समाज में फाँक पैदा कर दी—जिसकी छाया 2023 के इस चुनाव में भी दबे पांव चल रही है। प्रजा समाजवादी पार्टी के विजयी उम्मीदवार मुरलीधर व्यास के समर्थकों के एक अपरिपक्व समूह ने गोपाल जोशी की सभाओं की लोकप्रियता से खुंदक बना ली। व्यासजी की जीत का जुलूस जब अंदरूनी शहर में पहुंचा तो कहीं से घोड़ी ले आये, (गोपाल जोशी का चुनाव चिह्न घोड़ा ही था) और व्यासजी को उस पर बिठाकर साले की होली स्थित गोपाल जोशी के घर के सामने ले गये और गाने लगे—हर आयो...हर आयो...हर आयो...काशी रो वासी आयो...घोड़ी चढ़ गोविन्द आयो... सासूजी ने घणों सुवायो। बीकानेर के परम्परागत पुष्करणा समाज में ये गीत बरात ढुकाव (दुल्हन के घर पहुंचने) पर गाया जाता है। यह सब इतना अचानक घटित किया गया कि खुद मुरलीधर व्यास समझ नहीं पाए। 

बीकानेर पुष्करणा समाज के वरिष्ठों पर यह बात नागवार गुजरी। जिसे हवा मिली मुरलीधर व्यास के जैसलमेर मूल के पुष्करणा होने से। हुआ यह कि मुरलीधर व्यास के रातदिन के जनजुड़ाव, आमजन के आन्दोलनों और विधानसभा में जनहित के मुद्दों पर सक्रियता के बावजूद 1967 का चुनाव हार जाने की एक वजह उक्त घटना बनी। बीकानेर मूल के भीलवाड़ा प्रवासी ट्रेड युनियन नेता गोकुलप्रसाद पुरोहित को 1967 के चुनाव में कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया। बीकानेर मूल के पुष्करणाओं ने 1962 के चुनाव की उक्त घटना की गाँठ खोल ली और गोकुलप्रसाद के साथ हो लिए। मुरलीधर व्यास हार गये और गोकुलप्रसाद को जीता दिया।

राजनीति की इस चुनावी शृंखला के लिए जानकारियां अनेक लोगों से मिली है। जिनमें एक मानिकचन्द सुराना के पुत्र जितेन्द्र सुराना भी हैं। कुछ जानकारियां इन्हीं से हासिल हो पाई जो अन्यत्र कहीं से नहीं मिली थी। आभार।

—दीपचन्द सांखला

30 नवम्बर, 2023

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