Thursday, September 21, 2023

बीकानेर पूर्व विधानसभा क्षेत्र : जनसंघ/भाजपा की पड़ताल

 बीकानेर पूर्व विधानसभा क्षेत्र 2008 के परिसीमन में अस्तित्व में आया। इससे पूर्व 1951-52 से 1962 तक यह क्षेत्र बीकानेर शहर सीट के साथ तो बाद 1962 के मोटामोट कोलायत विधानसभा क्षेत्र के साथ रहा। इस तरह जब तक जनसंघ थी तब तक इस क्षेत्र में उसका कोई वजूद नहीं था। 1977 तक कोलायत से कांग्रेसी और समाजवादी ही जीतते रहे। 1962 में जनसंघ ने कोलायत से मोहनलाल जोशी को उम्मीदवार जरूर बनाया लेकिन वे एक हजार वोट भी नहीं ले पाए। बाद इसके 1993 तक जनसंघ/भाजपा ने इस ओर मुंह नहीं किया। 1993 में देवीसिंह भाटी भाजपा में आये और जीते। कह सकते हैं भाजपा का इस क्षेत्र में प्रवेश इसी तरह हुआ। 1998 का चुनाव भी देवीसिंह ने भाजपा से ही जीता लेकिन 2003 के चुनाव से पूर्व देवीसिंह ने भाजपा से अलग होकर सामाजिक न्याय मंच बनाया और जीते। 2003 के इस चुनाव में भाजपा ने गोपाल गहलोत को उम्मीदवार बनाया। गोपाल गहलोत ने जमकर चुनाव अभियान चलाया—तीसरे नम्बर पर चाहे रहे—वोट उन्होंने 47 हजार से ऊपर लिये।

अपनी इस चुनावी यात्रा के उपरान्त यह क्षेत्र 2008 में 'बीकानेर पूर्वÓ विधानसभा क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में आ लिया। प्रदेश में भाजपा की कमान वसुंधरा राजे के हाथ थी—पूर्व राजघराने की सिद्धिकुमारी को उन्होंने उम्मीदवारी के लिए तैयार कर लिया। इस क्षेत्र की अधिकतर बस्तियां पूर्व राजघराने की रिहायश जूनागढ़ और लालगढ़ पैलेस के आसपास की हैं। इन बस्तियों में रहने वालों के पूर्वज कामकाज के सिलसिले में राजघराने से जुड़े रहे थे। सिद्धिकुमारी को जितवाने में यह निष्ठा भी काम आयी। 2008 के चुनाव तक भाजपा में लौट चुके देवीसिंह भाटी को सिद्धिकुमारी की उम्मीदवारी जमी नहीं। उन्होंने विश्वजीत सिंह को निर्दलीय खड़ा भी किया, लेकिन सिद्धिकुमारी को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा पाये।

कांग्रेस ने डॉ. तनवीर मालावत को उम्मीदवार बनाया जो काफी कमजोर साबित हुए और लगभग 37 हजार वोटों से हार गये। सिद्धिकुमारी अच्छे-खासे वोटों से जीत भले ही गयी हों लेकिन उन्होंने अपनी विधायकी को केवल स्टेटस सिम्बल के तौर पर लिया, 5 बार के सांसद अपने दादा डॉ. करणीसिंह से भी ज्यादा। डॉ. करणीसिंह ने अपने क्षेत्र के लिए चाहे कुछ न किया हो लेकिन लोकसभा की बैठकों में जाते और कभी-कभार अपनी बात भी कहते। सिद्धिकुमारी ने कभी इतनी रुचि भी नहीं दिखाई।

2013 का चुनाव भी आ लिया। देशभर में कांग्रेस विरोधी माहौल का लाभ सिद्धिकुमारी को मिला। कांग्रेस ने भाजपा से आयात कर गोपाल गहलोत को उम्मीदवार बनाया। 2003 के कोलायत चुनाव के बाद गोपाल गहलोत ने कुछ तो खुद और कुछ विरोधियों ने प्रचारित कर उनकी छवि खराब कर दी। गोपाल गहलोत की इस छवि ने भी सिद्धिकुमारी को जीत की अनुकूलता दी। हालांकि गहलोत ने लगभग 46 हजार वोट लिए लेकिन पिछले चुनाव से हार के अन्तर को ज्यादा कम नहीं कर पाये।

कांग्रेस 2018 के चुनाव तक भी बीकानेर पूर्व से कोई प्रभावी चेहरा नहीं ढूंढ़ पायी। नामांकन के अंतिम दिनों में नोखा के बनते-बिगड़ते समीकरणों के बीच कांग्रेस ने कन्हैयालाल झंवर को टिकट दी। विकास पुरुष की छवि और चुनाव अभियान की उनकी पारंगता ने थोड़े समय में ही झंवर को सिद्धिकुमारी के बराबर ला खड़ा किया। परिणाम में मात्र 7 हजार वोटों से हारे। झंवर को 15 दिन और मिलते तो निश्चित तौर पर यह सीट निकाल लेते।

झंवर 2018 का चुनाव हार चाहे गये लेकिन उन्होंने 2023 के चुनाव का अपना लक्ष्य बीकानेर पूर्व ही तय कर लिया था। उसी तरह की तैयारी में लग भी गये। लेकिन अचानक वे किसी डील के तहत नोखा लौट गये। यदि झंवर बीकानेर पूर्व में लगे रहते तो इस बार वे अच्छी-खासी जीत दर्ज करते। हो यह भी सकता कि अपनी दिखती हार में सिद्धिकुमारी उम्मीदवारी के लिए तैयार ही न हो। डॉ. करणीसिंह को भी 1971 के चुनाव में जब लगा कि अगला चुनाव जीतना मुश्किल होगा तभी तय कर लिया था कि अगला चुनाव नहीं लडऩा। 1977 के चुनाव में माहौल साफ था कि कांग्रेस का उम्मीदवार नहीं जीतना, तब भी उन्होंने जनता पार्टी की उम्मीदवारी लेने से इन्कार कर दिया।

2023 का चुनाव सामने है—कन्हैयालाल झंवर सामने नहीं है—यह जानकर सिद्धिकुमारी चुनाव के लिए फिर तैयार है। हालांकि इन पांच वर्षों में न तो विधानसभा में गयीं और न अपने क्षेत्र में आयीं। कभी-कभार आने-जाने को न गिनवाएं, गिनवाएंगे तो विधानसभा में न जाने और क्षेत्र में न आने की उनकी अरुचि ही जाहिर होगी।

रामेश्वर डूडी की अस्वस्थता के बाद नोखा में बदली राजनीतिक परस्थितियों में कन्हैयालाल झंवर कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर फिर बीकानेर पूर्व समय पर लौट आएं तो वे सीट निकाल लेंगे। दूसरी संभावना देवीसिंह भाटी की मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से हाल ही की मुलाकात के बाद यह सीट चुनावी समझौते में देवीसिंह भाटी को दे दी जाए तो न केवल कांग्रेस बल्कि देवीसिंह भी कई हिसाब एक साथ चुकता कर सकते हैं। देवीसिंह भाटी बिना कांग्रेस में गये भी कांग्रेस समर्थन से यह चुनाव बीकानेर पूर्व से अच्छे से जीत सकते हैं। एवज में कांग्रेस को पहला फायदा तो इस सीट पर लगातार तीन बार की जीत दर्ज कर चुकी भाजपा को हरवा देना और दूसरा फायदा देवीसिंह का कांग्रेस को मिलेगा लोकसभा चुनाव में—जिसमें वे कांग्रेस का समर्थन कर उसकी जीत का रास्ता आसान कर देंगे। बीकानेर की लोकसभा सीट पर कांग्रेस पिछले चार चुनाव हार चुकी है। देवीसिंह भाटी भी इस तरह न केवल अर्जुनराम मेघवाल से अपना हिसाब चुकता कर लेंगे बल्कि उस भाजपा को सबक भी दे देंगे जिनकी वजह से भाजपा में राजनीतिक कद घट गया।

रही बात माली और मुस्लिम उम्मीदवार के दावों कि तो वर्तमान माहौल में किसी मुस्लिम उम्मीदवार का जीतना संभव नहीं लगता। मालियों की छवि इतनी नकारात्मक बना दी गयी है कि माली उम्मीदवार को वोट देते लोग झिझकने लगे हैं। बीकानेर पूर्व की बजाय बीकानेर पश्चिम माली बाहुल्य विधानसभा क्षेत्र है। ऐसे में भाजपा यदि बीकानेर पश्चिम से किसी प्रभावी माली उम्मीदवार पर दावं लगाए तो जीत पक्की है। वैसे भी बीकानेर की माली जाति बजाय कांग्रेस के—भाजपा के साथ है, इसलिए ऐसी दावेदारी का उनका हक भी बनता है।

—दीपचन्द सांखला

21 सितम्बर, 2023

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