Thursday, June 11, 2020

कोरोना वायरस, कोविड-19 महामारी : भारत सरकार और हम भारतीय

कोरोना वायरस के संक्रमण से विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 गरीब और भारत जैसे उन देशों के लिए अभिशाप बनकर आयी है जिनकी लगभग आधी आबादी अभावों में गुजर-बसर करती है। ऐसे में देश के शासक यदि मोदी-शाह जैसे नाकारा हेकड़ीबाज हों तो कोढ़ में खाज का काम करती है। विश्वव्यापी संक्रमण के बाद विदेश से भारत आये 15 लाख लोगों के साथ वायरस को ना केवल निर्बाध आने दिया गया वहीं बिना भारत की जरूरत डॉनल्ड ट्रंप को बुलाकर मानो हमने कोरोना वायरस की ही आवभगत की। यह सब बातें हम पहले कर चुके हैं। हमारी स्थिति अब क्या है इस पर विचार कर लेते हैं। देश में वायरस का संक्रमण लगातार फैलते-फैलते सामुदायिक संक्रमण की स्थिति में गया है। देश के सभी महानगरों की घनी आबादी वाले क्षेत्रों की स्थितियां बद से बदतर होती जा रही है। भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता के चलते लगभग जर्जर हो चुकी सरकारी क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवा हाथ खड़े करने की स्थिति में है। पर्याप्त अस्पतालों का अभाव तो दिख रहा है लेकिन जो हैं उनकी स्थिति ऐसी नहीं हैं कि इस बढ़ते संकट के समय काम सकें। पिछले तीन दशकों से फैली निजी क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाएं भी पर्याप्त नहीं हैं, जो हैं उन्होंने कोविड-19 के इलाज के लिए पैकेजों की घोषणा कर दी है। पैकेजों पर नजर डालें तो वहां इलाज करवाना मध्यम वर्ग तो क्या उच्च मध्यम के लिए भी संभव नहीं है। जबकि एक से दूसरे में फैलने वाले इस संक्रमण की चपेट में पूरा परिवार ही कब जाये, कह नहीं सकते।
संक्रमण की शुरुआत में भारत दुनिया के टॉप-50 प्रभावित देशों की सूचि से बाहर था। लेकिन टॉप-10 देशों की सूची में कब गया, पता ही नहीं चला। अब कब टॉप पर हम लेंगे कहना मुश्किल है, लेकिन सुकून की बात यह है कि हम भारतीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता का ही कमाल है कि संक्रमित बिना इलाज केवल सावचेती से निगरानी भर से पॉजिटिव से नेगेटिव हो लेते हैं। यही वजह है कि भारत की रिकवरी रेट अच्छी है। हमारे यहां करोना वायरस के संक्रमण के चलते अन्य बीमारियों से ग्रसित और वृद्ध होकर कमजोर हो चुके लोगों की मृत्युदर ज्यादा है बनिस्पत खुद कोरोना के आक्रमण से। यह स्थिति तो अब तक थी, लेकिन ज्यों ही सामुदायिक संक्रमण बढ़ेगाहो सकता है यह हमारे बूते से बाहर हो जाए। क्योंकि उस स्थिति में सभी संक्रमितों को इलाज देना तो दूर की बात, उन्हें स्वास्थ्य निगरानी में रखने की पर्याप्त व्यवस्था भी हमारे पास नहीं है। महानगरों के समाचार तो यही बता रहे हैं।
किसी भी महामारी से निपटने के लिए दुरुस्त स्वास्थ्य सेवाओं के बाद दूसरी बड़ी जरूरत आर्थिक संसाधनों की होती है जो नोटबंदी जैसे मूर्खतापूर्ण कदम के बाद 2017 से ही चरमरा चुके हैं। बची-खुची कमी हड़बड़ी से लागू की गई जीएसटी प्रणाली ने पूरी कर दी। अर्थव्यवस्था के तय मानकों पर देश लगातार पिछड़ ही रहा था कि कोरोना धमका। ट्रंप की आवभगत और मध्यप्रदेश में अपनी पार्टी की सरकार बनाने से फ्री होते ही प्रधानमंत्री ने बिना विचारे और बिना योजना के जिस तरह से लॉकडाउन लागू किया उससे पहले से ही जर्जर हुई अर्थव्यवस्था और चरमराने लगी। आपदाकाल के इस पूरे समय में केन्द्र की सरकार की कोई सक्रियता-सदाशयता नजर नहीं आयी, सिवाय भाषणों के या आईटी सेल के छद्म प्रचार के। इस कोरोना काल की आड़ में पारदर्शी रहे प्रधानमंत्री सहायता कोश की एवज में बिना जरूरत का 'पीएम केयर फण्ड' बना लिया गया। इसमें पारदर्शिता तो दूर की बात, जनता को उसका हिसाब-किताब दिखाने की भी कोई व्यवस्था नहीं है,फंड में कितना धन आया और कितना कहां जा रहा है, इसकी जानकारी नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के अलावा किसी को नहीं होगी। दूसरी ओर लॉकडाउन में बन्द हुए राजस्व और कोरोना महामारी से जूझ रहे राज्य आर्थिक पैकेज की मांग लगातार कर रहे है, लेकिन केन्द्र जरूरत के अनुसार धन नहीं दे रहा है। नतीजतन लॉकडाउन की जब अब असल जरूरत है, राजस्व की जरूरत पर केन्द्र सरकार ने उसे खोलने की छूट दे दी, ताकि राज्य पैकेज के लिए चिल्लाना बन्द कर दें।
लेकिन हुआ क्या, आवश्यक वस्तुओं के अलावा शेष सभी उद्योग और व्यापार अपनी कुल क्षमता या लक्ष्य के 30-35 प्रतिशत भी नहीं चल पा रहे हैं। जबकि आवश्यक वस्तुओं के उद्योग और व्यापार लॉकडाउन के समय में भी चल ही रहे थे। लॉकडाउन के पांचवें चरण की इस छूट ने राजस्व में कितना योगदान दिया, सामने है। इस चरण में स्वास्थ्य विभाग द्वारा बताई गई सावधानियों का उल्लंघन जरूर हो रहा है, इस लापरवाही के परिणाम सामुदायिक संक्रमण के तौर पर सामने आने लगे हैं।
आर्थिक और स्वास्थ्य मोर्चे पर असफल रही केन्द्र की सरकार की अपरिपक्वता के चलते अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की स्थितियां कमजोर हुई हैं। व्यक्तिगत दोस्ती के दबाव में अमेरिका का पिछलग्गू होने का जो संदेश दुनिया में गया, उसके परिणाम आने शुरू हो गये हैं। भारत पर दबाव बनाने के लिए चीन लद्दाख के लगभग 60 वर्ग किमी क्षेत्र पर कब्जा कर बैठा है, भारत के दबाव में हर बार लौट जाने वाले चीन की मंशा इस बार ठीक नहीं लग रही है। 
और अन्त में...लॉकडाउन में जब गुटखा लगभग अनुपलब्ध होने की स्थिति में ही गया तो उस पर देशव्यापी रोक हमेशा के लिए क्यों नहीं लगा देनी चाहिए?
दीपचन्द सांखला
11 जून, 2020

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