Thursday, June 4, 2020

कोविड-19 महामारी : वे जरूरी बातेंं, जिनका हमें अहसास नहीं

देश और दुनिया इतिहास के एक बुरे दौर से गुजर रहे हैं, सत्ता के सभी रूप बजाय इन परिस्थितियों से निकलने-निकालने की कोशिश केअपनी जड़ें मजबूत करने में लगे है। और हम हैं कि या तो सत्ता-रूपों की उन साजिशों के साथ खड़े हैं या चुप है, जो प्रकारान्तर से हमारे ही खिलाफ रची जा रही हैं। करोनो-वायरस संक्रमण से फैलने वाली महामारी कोविड-19 से देर-सबेर पार पा लेंगे या इसके अभ्यस्त हो जायेंगेलेकिन इसकी आड़ में हमारी अर्थ-व्यवस्था और हमारी समाज-व्यवस्था का बंटाधार जो किया जा रहा उससे पार लम्बे समय तक नहीं पा सकेंगे।
जागरूक नागरिक, विचारक लेखक, पत्रकार लगातार आगाह कर रहे हैं, लेकिन हम उन पर गौर ही नहीं कर रहे। जो बात जिस तरह आप कहना चाह रहे हैं, लगभग वही बात कहने से पूर्व ही सोशल मीडिया पर पढऩे को मिल जाये तो कहने की जरूरत खतम हो जाती है। रायपुर, छत्तीसगढ़ के पत्रकार मित्र रुचिर गर्ग ने हाल ही में वर्तमान दौर पर भारत के सन्दर्भों में आगाह करने वाले कुछ बिन्दू साझा किये हैं। उन्हें अपनी भाषा में दोहराने की बजाय, ज्यों का त्यों साझा करना ही उचित लगा, सो पाठकों के लिए प्रस्तुत है
―दीपचंद सांखला
थोड़ा ही सही अमरीका में तो लोगों को एहसास हो रहा है कि एक दक्षिणपंथी सरकार के पैदा किये हालात ने फिजां में कितनी नफरत घोल दी है।
हिंदुस्तान अभी इस एहसास से दूर किचन में नई रेसिपी तैयार करने में व्यस्त है।
अभी दम केवल मजदूरों का घुट रहा है, अभी लिंचिंग केवल दलितों और अल्पसंख्यकों की हो रही है। अभी केवल वे जेलों में ठूसें जा रहे हैं जो असहमत हैं, अभी आपको लोकतंत्र का गला घोटे जाने की साजिशों का एहसास नहीं हो रहा है।
दिल्ली में पिंजरा तोड़ बच्चियों के खिलाफ और देश भर में अलग-अलग इलाकों में हुई ऐसी साजिशों की आंच अभी आपके दरवाजे तक नहीं पहुंची है।
अभी मजदूरों का खून और पसीना आपको केवल किसी टीवी चैनल की एक खबर भर लग रही है।
अभी लॉकडाउन-जनित बेरोजगारी से त्रस्त लोगों में आपका कोई अपना शामिल नहीं है और होना भी नहीं चाहिए लेकिन आप तो अभी अपनी सेहत को लेकर फिक्रमंद हैं।
अभी ना तो ये चीखें आपके कानों तक पहुंच रही हैं ना इनका गुस्सा आपको ये बतला रहा है कि आपकी हालत अमरीका से ज़्यादा बदतर है कि आपकी गर्दन भी घोटी जा रही है। लेकिन ताली, थाली और मोमबत्तियों ने अभी आपकी चेतना का गला घोट रखा है।
अभी आपने भी अपनी तर्कशक्ति को, अपनी इंसानी संवेदनाओं को, अपने सवालों को एक ऐसी चेतना-शून्य जकडऩ के हवाले कर रखा है जिससे निकलना आसान नहीं है।
अभी आपको एहसास नहीं है कि उस अमरीकी पुलिस अफसर के बूटों की धमक आपकी गलियों तक सुनाई दे रही है।
अभी आप दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की गौरव गाथाओं को ही पढ़ रहे हैं।
अभी आपने अपने लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमलों से आंखें मूंद रखी हैं।
अभी आपको अपने देश की न्याय-व्यवस्था के पतन का अंदाजा नहीं है।
अभी आपको शायद इस बात का अनुमान भी नहीं है कि आपकी अपनी स्वतंत्रता किस पूंजी की जकडऩ में कराह रही है।
अभी आपको यह याद नहीं है कि आज आप जिस स्वतंत्रता के गीत गा रहे हैं वह किन कुर्बानियों से हासिल हुई थी।
अभी तो आपको अपने ही संविधान की प्रस्तावना कागज का एक टुकड़ा भर लगने लगी है।
अभी आप ये भी भूल गए हैं कि इस संविधान का इस देश की आकांक्षाओं से क्या रिश्ता है।
आपको भी ये लगने लगा है कि  संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'पंथ निरपेक्ष' शब्द किसी 42वें संशोधन के जरिये घुसा दिए गए हैं और इसका ना तो हमारे महान स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों से कोई लेना-देना था, ना ही इस देश के निर्माण में इन मूल्यों का कोई योगदान था!
आप जितना संविधान को रद्दी की टोकरी में डालना चाह रहे हैं उतना आप अपनी स्वतंत्रता का गला घोट रहे हैं अभी आपको इसका भी एहसास नहीं है।
जरा अपनी संवेदनाओं को कुरेद कर देखिए! जरा अपनी चेतना को झकझोरिये, जरा अपने विवेक को काम पर लगाइए, स्वतन्त्रता की अपनी आकांक्षाओं को थोड़ा महसूस कीजिये और सोचिए कि ये स्वतंत्रता किस कीमत पर हासिल हुई और आप कितनी आसानी से, बिना कोई सवाल किए खुद को अविवेकी भीड़ का हिस्सा बनाते जा रहे हैं।
सोचिए कि दुनिया के सबसे विकसित राष्ट्र होने का दम भरने वाले अमरीका में अश्वेतों के खिलाफ नफरत किस अमानवीय हद तक है और सोचिए कि आपको किस आसानी से इस तरह की नफरत की आग में झोंक दिया जा रहा है !
आपकी अपनी स्वतन्त्रता की मॉब लिंचिंग हो रही है।
सोचिए कि विज्ञान, तर्क, सदभाव, प्रेम, आस्था के गंगा-जमुनी रंग इन सबको कुचल कर आप कैसे अपनी आजादी को बचा सकेंगे
अक्सर अमरीका से आप बहुत कुछ पाने को व्याकुल नजर आते हैं। थोड़ा इस नफरत के अनुभव और इसके खिलाफ सभ्य अमरीकी समाज के गुस्से को भी महसूस कीजिये। शायद आपको अपनी गर्दन पर भी जकडऩ का एहसास हो!
3 जून, 2020

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