Thursday, August 8, 2019

कश्मीर

केन्द्र की शाह-मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा की अनुशंसा के बिना जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की कड़ी और दो सम्प्रभु राष्ट्रों के बीच हुए अनुबंध की उपज संविधान के अनुच्छेद 370 को कश्मीर घाटी की जनता की इच्छा के खिलाफ खुर्दबुर्द कर दिया है। जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में बात करें तो इन पैंसठ वर्षों में घिसते-घिसाते यह अनुच्छेद लगभग खत्म हो लिया था। अपनी अस्मिता की पहचान बनाए घाटी के कश्मीरी इसे उसी तरह चिपकाये थे जैसे बन्दरिया अपने मृतप्राय बच्चे को चिपकाए घूमती है। इस बिम्ब का मकसद ये बताना भर है कि कश्मीरियों को लगभग नजरबन्द करके की गई यह कारस्तानी जहां संविधान सम्मत नहीं है वहीं अनैतिक भी है। क्योंकि संविधान निर्माण के समय अनुच्छेद 306ए से 370 बने इस अनुच्छेद के खण्ड (1) के अन्तर्गत निदेशिका भाग-एक के उपखण्ड 3 में स्पष्ट लिखा है कि 'परन्तु यह और कि जम्मू कश्मीर राज्य के क्षेत्र को बढ़ाने या घटाने या उस राज्य के नाम और सीमा में परिवर्तन करने वाला कोई विधेयक उस राज्य के विधान मण्डल की सहमति के बिना संसद में पुनस्र्थापित नहीं किया जायेगा।'
अलावा इसके अभी 2017 में ही तत्संबंधी एक याचिका पर फैसला देते हुए देश के उच्चतम न्यायालय ने माना है कि अनुच्छेद 307 संविधान का स्थाई हिस्सा है।
खैर, दबंगई में कुछ किए के परिणाम कम से कम लोकतंत्र में अच्छे नहीं माने गये हैं। अलावा इसके गांधी ने भी अपने एक सटीक जंतर में कहा है कि शुद्ध साध्य शुद्ध साधनों से ही हासिल किये जा सकते हैं। जो कश्मीरी पिछले लगभग दो सौ वर्षों से सत्ता द्वारा लगातार सताये जा रहे हैं, यह विधेयक उनके घाव में घोबा किया जाना ही माना जायेगा, इस तरह यह कृत्य अमानवीय भी है।
आज अपनी बात इतनी भर रखते हुए इस घटनाक्रम पर अशोक कुमार पाण्डेय की सुविचारित लेकिन तल्ख उस टिप्पणी को साझा कर रहा हूं, जो उन्होंने 370 पर आये विधेयक के बाद सोशल साइटस के लिए लिखी है। पाण्डेय कश्मीरी इतिहास और राजनीति के विशेषज्ञ हैं, पिछले वर्ष आयी उनकी पुस्तक 'कश्मीरनामा' इन दिनों सर्वाधिक चर्चा में है।                                                            —दीपचन्द सांखला

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कश्मीर की एक यात्रा में मुझसे बात करते हुए एक कश्मीरी मित्र ने कहा था कि अगर सब ठीक ठाक होता तो बहुत पहले खुद कश्मीरी ही मांग कर चुके होते कि 370 हटा दिया जाए ताकि पूंजी आये और नौकरियां मिलें। 
यहां यह 'सब ठीक ठाक होना' बेहद महत्त्वपूर्ण है। असल में एक बहुत बड़ा खेल परसेप्शन का भी है न। आखिर यह परसेप्शन ही है कि जो लोग दिल्ली में रहते सारी उम्र किराए के मकानों में गुजार देते हैं, उन्हें लगता है कश्मीर में कौडिय़ों के मोल जमीन मिल जाएगी। खैर इस पर बात आगे। चीजें ठीक ठाक न होने के कारण ही आम कश्मीरी के लिए 370 उस वादे का प्रतीक है जो भारत सरकार ने कश्मीर से किया था। यह उसके लिए धीरे-धीरे उसकी अस्मिता का प्रतीक बनता गया और इसीलिए तो इस निर्णय के पहले इतनी सुरक्षा व्यवस्था करनी पड़ी कि कश्मीर जैसे चूहेदानी में बदल गया है। सब जानते हैं कि यह कश्मीरियों की इच्छा के विरुद्ध है। 
जनतंत्र में जनता की इच्छा सर्वोपरि है। यह हमेशा राष्ट्रीय नहीं, स्थानीय भी होती है। दुखद यह कि यह बात सबरीमाला में तो सीमाएं तोड़ के स्थापित की जाती है, कश्मीर में नहीं। 
मैं संविधान विशेषज्ञ नहीं हूँ। 370 के ही तहत 370 के प्रावधानों को राष्ट्रपति कश्मीर की संविधान सभा की सहमति से हटा सकते थे। इसके पहले 370 के अधिकतर महत्त्वपूर्ण हिस्से राष्ट्रपति द्वारा ऐसे ही हटाए गए थे। संविधान सभा भंग होने के बाद असेम्बली की सहमति ली गई थी। लेकिन बाकी हिस्सों को हटाने (असल में 370 को संशोधित करने) के लिए संविधान सभा को विधानसभा और विधानसभा को राज्यपाल मान लेना कितना सही या गलत है यह कोई संविधान विशेषज्ञ ही बता पायेगा। इतना तो है कि इस पूरी प्रक्रिया में कोई कश्मीरी शामिल नहीं है।
बायफर्केशन की मांग पुरानी है। बल्कि तीन हिस्सों में बांटने या राज्य के भीतर ही जम्मू और लद्दाख को स्वायत्त बनाने की मांग तो बलराज पुरी जैसे प्रोग्रेसिव लोगों ने भी की थी। लेकिन जम्मू कश्मीर को एक साथ रख केंद्रशासित प्रदेश बनाने के पीछे का लॉजिक केंद्रीय नियंत्रण के अलावा क्या है, मेरी समझ में नहीं आया। बहस होगी सदन में तो और कुछ समझ आये शायद। 
सबसे बड़ी बात यह कि इससे आतंकवाद पर कैसे काबू पाया जाएगा, यह मैं नहीं समझ पा रहा। कोई रचनात्मक पहल तो है नहीं। वही सैन्य समाधान है जो अब तक था और नाकामयाब रहा। बल्कि यह फैसला भारत समर्थक पार्टियों को पूरी तरह से हाशिये पर डाल देगा तो कट्टरपंथी और अलगाववादी ताकतों का असर और बढ़ेगा। बाकी तो भविष्य ही बताएगा। यह भी कि कश्मीरी पंडितों की अलग राज्य की मांग नहीं मानी गई है। जमीन तो वे पहले भी खरीद सकते थे लेकिन उनके लौटने के लिए अलग से क्या हुआ है, मुझे नहीं पता। 
अगर शांति न हुई और मामला सुप्रीम कोर्ट (जो 2017 में ही दुहरा चुका है कि 370 परमानेंट हिस्सा है संविधान का) या इंटरनेशनल कोर्ट में गया तो सुलझने के बजाय चीजें उलझेंगी। ऐसे में अडानी-अम्बानी से लेकर टाटा, बिड़ला तक सेना के साये में व्यापार करने जाएंगे या नहीं, देखना होगा। अब तक टूरिज्म कश्मीरियों के पास था इसलिए टूरिस्ट पवित्र थे, आगे क्या होगा, पता नहीं। 
जमीन खरीदने के लिए बेचैन लोग पैसे बचाना शुरू कर दें। यह याद रखें कि कब्जा नहीं करना, खऱीदना है और कल अगर कोर्ट ने कुछ पलट दिया तो एक्को पैसा नहीं मिलेगा। फिर अभी से पहाड़ों पर चलने की प्रैक्टिस कर लें। इस साल अक्टूबर से ही मार्च तक का राशन, सूखी सब्जियां, मांस वगैरह इकट्ठा करने की प्रैक्टिस करें। उन्हें सूखा करके कैसे रखते हैं, उसकी प्रैक्टिस करें। रात के बारह बजे सेना / टेररिस्ट दरवाजा खटखटाये तो क्या करना है जान लें। शादियां करने को बेचैन लोगों से यह कि अगर तुम लोग दिल्ली-यूपी-बिहार-तमिलनाडु वगैरह में अपने लिए एक अदद बीबी नहीं ढूंढ़ पाए तो कश्मीर की सुंदरियां तुम्हें क्या भाव देंगी!
हां, अक्टूबर नवम्बर में जो लोग छठ मनाने जा रहे हैं उन्हें बस इतनी सलाह कि पानी में सूरज निकलने के बाद जाएं और पॉलीथिन पहनकर जाएं। गन्ना, दौरी वगैरह यहीं से लेकर जाएँ और...खैर जाने दें। 
आखिरी बात। जिन्हें लगता है कि यह कोई एकीकरण है और 'अब कश्मीर हमारा है' उनके लिए यह कि अब तक भी हमारा ही था भाई /बहन। कोई धारा जोड़ी नहीं गई नई। अब तक भी सरकारी भवनों पर तिरंगा ही फहराता था।  371 के तहत सिक्किम, नागालैंड, असम, मिजोरम, मणिपुर में भी बाहरी जमीन नहीं खरीद सकते तो वह कम हिंदुस्तान नहीं हो गया। जिन्हें लगता है यह गोवा जैसा काम है, उन विद्वानों को बताना चाहूंगा कि गोवा में विदेशियों का कब्जा था। याद दिलाना चाहूंगा कि पटेल के करीबी अयंगर ने कहा था 370 तोड़ने नहीं जोड़ने वाली धारा है। गुलजारी लाल नन्दा ने इसे वह सुरंग बताया था जिससे भारत कश्मीर से जुड़ता था। 
बाकी इतिहास की हर घटना एक मोड़ होती है। मंजि़ल नहीं। नशे में झूमते लोगों को एक दिन रोता भी देखा है इतिहास ने। आखिर कश्मीरी भी 1948 में कबायलियों को भगाकर हिंदुस्तानी झंडा लिए जश्न मना ही रहे थे।
कल क्या होगा कोई नहीं जानता। मुझे अपने देश की फिक्र है और उसमें कश्मीरी शामिल हैं। मैं उनकी जान को लेकर चिंतित हूं। मैने उनके घरों में कहवा पीया है। खाना खाया है। सुंदर क्षण बिताए हैं। मैं उन घरों को खुशहाल और शांत देखना चाहता हूंआपकी आप जानें।
7 अगस्त, 2019