Thursday, June 13, 2019

यौन शिक्षा अब जरूरी

किशोरों के सामने यौन संबंधी बात करने पर लोक में अकसर टोका जाता है, टोकने पर जवाब भी तय है : बच्चे ये सब सीखेंगे कैसे, इन्हें सिखाने का कोई स्कूल तो है नहीं। ऐसे लाजवाब उत्तर पर टोकने वाला भी मुसकरा कर चुप हो लेता है। इस तरह की बात करने वालों में सभी का मकसद सिखाना होता भी नहीं। इनमें से कुछ होते हैं जो ऐसी जिज्ञासाओं का बच्चों में रस पैदा कर अपनी कुत्सित यौन इच्छाओं का शिकार उन्हें बनाते हैं। इसी के चलते कई किशोर-किशोरियों समलैंगिक हो लेते हैं।
यह सब होना इतना खतरनाक नहीं है जितना कि यौन कुण्ठित हो जाना। ऐसे कुछ लोग अपने अधकचरे और भ्रान्तिपूर्ण ज्ञान के चलते अंटसंट धारणाएं चलाते रहते हैं। वे यौन क्रीड़ा को प्रदर्शन कला मानते हैं और ऐसी धारणाएं फैलाते हैं जिनकी कोई प्रामाणिकता नहीं होती। ऐसी कुण्ठित मानसिकता में लोग छोटी उम्र के किशोर-किशोरियों को अपना शिकार बनाते हैं। 2 से लेकर 8 वर्ष की अबोध बच्चियों को हवस का शिकार बनाये जाने के बीभत्स समाचार इन वर्षों में अकसर पढ़ने-सुनने को मिलने लगे हैं। यहां तक कि सोशल साइट्स पर यौन संबंधी कुत्सित सामग्री की भरमार के चलते कम्प्यूटर-स्मार्टफोन जैसे उपयोगी साधन बन्दर के हाथ में उस्तरा हो लिए हैं। ऐसी सामग्रियों से यौन अपराध तो बढ़े ही हैं, वैवाहिक व दाम्पत्य जीवन को भी दुष्कर बना दिया है। ऐसी बात नहीं कि इन सोशल साइट्स पर यौन संबंधी स्वस्थ सामग्री नहीं मिलती, सिखाने वाली ऐसी सामग्रियां अधिकांशत: ऊब पैदा करने वाली होती हैं। सोशल साइट्स पर अधिकांश यूजर इसके चक्कर में अंटसंट देखते-सुनते हैं और वैसे ही प्रयोग करते हैं। ऐसे प्रयोग अकसर अपराध से कम नहीं होते। ऐसी हरकतें-अधिकांशत: घर की स्त्रियां ही भुगतती है, नहीं भुगते तो जीवन मुश्किल हुए बिना नहीं रहता, ये सब चौड़े भी नहीं आता।
जम्मू के कठुआ की 8 वर्षीया अबोध बालिका आसिफा के साथ सामूहिक दुष्कर्म पर हाल ही में आया फैसला और अलीगढ़ में 2 वर्षीया ट्विंकल के साथ हुई नृशंसता के बाद इस विषय पर कुछ साझा करना जरूरी लगा। हालांकि ट्विंकल पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यौनिक हिंसा के प्रमाण नहीं मिले हैं। लेकिन जिस तरह उसे नोचा गया उसे कुंठित प्रतिक्रिया ही माना जायेगा। ऐसी आपराधिक घटनाओं को जो लोग सांप्रदायिक चश्म से देखते हैं, उनका उल्लेख व्यर्थ हैऐसे लोग केवल और केवल भर्त्सना के काबिल होते हैं। कठुआ और अलीगढ़ में हुई घटनाओं जैसे काण्ड इस देश में जहां-तहां रोज घटित होते हैं, अधिकांश दर्ज ही नहीं होते, देशव्यापी आंकड़ा पता लगना तो दूर की बात है।
रोजमर्रा की ऐसी घटनाओं के चलते ना केवल प्रशासन और पुलिस बल्कि शासन की संवेदनाएं भी भोंथरी हो चली हैं। शासन-प्रशासन व पुलिस को भुंडाने वाले खुद हम आए दिन की ऐसी खबरों से कितना विचलित होते हैंï? किसी घटना विशेष पर मीडिया और सोशल साइट्स यदि उत्प्रेरित ना करे तो हम ऐसी घटनाओं पर बात करना तो दूर, दिमाग में ही नहीं लाते।
विचारणीय बात यह है कि क्या ऐसी घटनाओं को मूक दर्शक बन कर इन्हें लगातार बढऩे दें या किन्हीं उपचारों पर बात करें। यह लगातार बढ़ती ऐसी आग है जिसके ताप से बचने की गारन्टी किसी के पास नहीं है, खुद हमारे बच्चे इसके शिकार कब हो जाएंगे, कहा नहीं जा सकता। इसे कोरा कानून-व्यवस्था का मसला मान कर शासन-प्रशासन पर छोड़ दें या शासन को मजबूर करें कि ऐसी घटनाओं का मुख्य स्रोत कुण्ठित मानसिकता को पनपने ना देने का उचित उपाय करें।
दुनिया के कई देशों में किशोर-किशोरियों को यौन शिक्षा दी जाती है। निश्चित पाठ्यक्रम के तहत उन्हें कक्षावार यौन संबंधी सभी जानकारियां व्यवस्थित और वैज्ञानिक तौर पर करवाई जाने लगी हैं। इसके परिणाम भी मिले हैं, वहां ना केवल यौन अपराधों में कमी आयी है, बल्कि स्त्री-पुरुष जोड़ों के आपसी सामंजस्य में बढ़ोतरी भी देखी गई है। वहां के परिवारों में टूटन के मूल कारणों में यौन संबंधी कारण कम पाए जाने लगे हैं।
हमारे युवा होते किशोर-किशोरियों को हक है कि उन्हें यौन संबंधी जानकारियां बजाय अंटसंट तरीके के, वैज्ञानिक और व्यवस्थित रूप से हासिल हों। इस विषय की ओर हम भारतीय पिछली कुछ सदियों से आंखें मूंदे उस कबूतर की मुद्रा में हैं जिसके सामने झपटने की मुद्रा में बिल्ली बैठी है, कबूतर इस वहम में मारा जाता है कि चूंकि उसने आंखें मूंद रखी है इसलिए बिल्ली भी उसे नहीं देख पाएगी। नतीजा सामने हैयौन कुण्ठित बिल्ले हमारी मासूमों का शिकार बना रहे हैं। दिन-ब-दिन ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं, मानते हैं यौन शिक्षा इसका शत-प्रतिशत उपाय नहीं है, लेकिन एक कारगर उपाय तो है ही।
—दीपचन्द सांखला
13 जून, 2019

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