Thursday, August 4, 2016

चुनाव तो अभी दूर, फिर भी जबानी लप्पा-लप्पी में संकोच कैसा--(4)

डॉ. बीडी कल्ला के बारे में पहले भी कहा है कि कांग्रेस की राजनीति में अपनी वह हैसियत हासिल कर ही ली जिसमें उन्हें अपने क्षेत्र से पार्टी उम्मीदवारी के लाले ना पड़ें। फिर भी ऐसे कई किन्तु-परन्तु हो सकते हैं जिनके चलते उम्मीदवारी उन्हें न भी मिलेˆ जैसे शहर कांग्रेस में खुद उनके गुट के अलावा सभी का विरोध, तीन बार की हार, लगभग सत्तर की उम्र जैसे कारणों के चलते हो सकता है राहुल गांधी की प्रत्याशी चयन की चेकलिस्ट में वे ओके न हो पाएं। ऐसे में पुख्ता यही है कि जहां तक संभव होगा सत्ता सुख के इस जरीये को वे परिवार से बाहर किसी को हासिल नहीं होने देंगे। शायद इसी के चलते कल्ला बंध्ाुओं ने अपने विश्‍वस्त शहर कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल गहलोत की महत्त्वकांक्षाओं का रुख बीकानेर पूर्व विधानसभा क्षेत्र की ओर कर दिया। यह बात अलग है कि बीकानेर पूर्व से उम्मीदवारी दिलाने में यशपाल गहलोत को सहयोग वे कितना करेंगे। कल्ला बंध्ाु अच्छी तरह समझते हैं कि ऐसा करने का मतलब गोपाल गहलोत को नाराज करना है। जबकि फिलहाल वे नए सिरे से किसी को भी नाराज करने की जोखिम उठाने की स्थिति में नहीं हैं। यशपाल गहलोत बीकानेर पूर्व में यदि राजनीतिक पतंग उड़ाते हैं तो लटाईकल्ला बंध्ाु शायद ही पकड़ें।
खैर, बीकानेर पूर्व विधानसभा क्षेत्र की बात अलग से करना बाकी रहेगा। ऐसा कयास है कि बीकानेर पश्‍चिम की उम्मीदवारी की राहुली चेकलिस्ट में डॉ. बीडी कल्ला के क्रास’ ‘राइटसे ज्यादा हुए तो कल्ला बन्ध्ाु अपने किसी परिजन को ही आगे करेंगे। यद्यपि आसान यह भी इसलिए नहीं कि कल्ला परिवार में ही तीन युवाओं की महत्त्वाकांक्षाएं हिलोरें लेने लगी हैं। कमल कल्ला, अनिल कल्ला और महेन्द्र कल्ला का जिक्र इसी शृंखला में पहले किया जा चुका है। जनार्दन कल्ला के सबसे छोटे पुत्र अनिल पहले इतना तेज दौड़ लिए कि उस हड़बड़ी में राजनेताई कॅरिअर के ट्रैक से एक तरह से बाहर जल्द ही हो लिए। तब अनिल के किस्से शहर में इतने चले कि 2003 के चुनावों से वे चुनावी फ्रेम से लगभग बाहर हैं। लेकिन इससे यह जाहिर नहीं होता है कि अनिल कल्ला ने अपनी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं का शमन कर दिया है। हो सकता है अनिल ने अपनी पिछली राजनेताई शैली से सबक लिए हो और अब ज्यादा परिपक्वता से मैदान में उतरें। जनार्दन के तीसरे पुत्र महेन्द्र राजनीति में अनिल जितने कभी सक्रिय नहीं रहे, वे बड़ी चतुराई से अपने उन धंधों को संभाल रहे हैं जिन्हें शासन की अनुकूलताओं में पनपाया है। सार्वजनिक जीवन में महेन्द्र जिस तरह प्रकट होते हैं उसे देख यह नहीं कहा जा सकता कि वे कोई राजनेताई महत्त्वाकांक्षा न रखते हों, लेकिन उनकी भाव-भंगिमाएंं कभी भी अवाम को अनुकूल लगने वाली नहीं रही, ऐसे में हो सकता है जनार्दन कल्ला का निर्णय चला तो वे अपनी तरफ से अनिल को डॉ. बीडी कल्ला के राजनीतिक वारिस के रूप में प्रस्तुत करें।
जैसा कि पहले जिक्र किया है कि बीडी कल्ला के दोनों पुत्रों की तासीर राजनेताई करने की नहीं दीखती। चूंकि पार्टी संगठन में उनकी पहुंच प्रदेश में थोड़ी ज्यादा और जैसी-तैसी भी दिल्ली में है ही। ऐसे में उम्मीदवारी को परिवार में कायम रखने का पूरा दारमदार डॉ. कल्ला पर ही रहेगा, केवल जनार्दन कल्ला की इच्छा ही काम नहीं करेगी। ऐसा भी माना जाता है कि डॉ. कल्ला के सामने अपनी जगह किसी युवा परिजन को देने की नौबत यदि आयी तो हो सकता है अनिल के साथ-सावे अपने चचेरे भाई केनु महाराज के पुत्र कमल पर भी विचार करें। ऐसा इसलिए भी है कि शहर के बड़े उद्यमियों में शुमार केनु महाराज 1980 से ही हर तरह से डॉ. बीडी कल्ला के साथ रहे हैं और यह भी कि पिछले चुनावों में राजमार्ग केखड्डे भरने के काम में कमल की महती भूमिका मानी जाती है। हार के बाद हुई पारिवारिक खटपट से भी केनु-कमल पिता-पुत्र कुछ खास प्रभावित नहीं रहे। ऐसे में हो सकता है कि डॉ. कल्ला अपने परिवार का रुख भी कमल के प्रति अनुकूल पाएं। वैसे शहर में और विशेषत: पुष्करणा समाज में युवा कल्ला बंध्ाुओं में कमल की साख अच्छी मानी जाती है। कहा भी जाता है कि अपने सभी भाइयों में कमल की सौम्य मिलनसारिता व्यावहारिक राजनीति के मैदान में ज्यादा कारगर होगी। पिछले चुनाव में अपनी बिरादरी के नाराज लोगों को मनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कमल पर डॉ. बीडी कल्ला शायद ज्यादा भरोसा करें। पर, ऐसा होगा तभी जब खुद डॉ. कल्ला का  उम्मीदवारी हासिल करने का दावं असफल हो जाए।
फिर यह सफाई देना जरूरी है कि लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में संभावित वारिसी उम्मीदवार की चर्चा मजबूरी इसलिए है कि शीर्ष पर पहुंचे नेता अन्य किसी को इतना पनपने ही नहीं देते कि कोई खुद उनके लिए चुनौती बन जाए। यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि कल्ला बंध्ाुओं ने पिछले छत्तीस वर्षों में राजनीति ऐसी ही लाइन पर की है। कहा भी जाता है कि कल्ला बंध्ाु इसीलिए राजनीतिक संगठन को अपनी घर-गवाड़ में ही रखते हैं।
क्रमश:
4 अगस्त, 2016