Thursday, July 21, 2022

बीकानेर : स्थापना से आजादी तक-11

 राजा के मुख से 'वेट एण्ड सी' का आश्वासन सुनकर तीनों सेनानी इंतजार तो करते रहे, लेकिन ऊहापोह और बेचैनी बराबर बनी रही। मन में जब-तब ग्लानिभाव भी आता कि जेलमंत्री जसवंतसिंह की बातों में आकर देश के साथ कुछ गलत तो नहीं कर दिया।

दूसरी तरफ महाराजा सादुलसिंह जबान, समझ और कानतीनों के कच्चे निकले। निजी डिस्पेच क्लर्क प्रतापसिंह स्वतंत्रता सेनानियों की सामान्य दिनचर्या को बढ़ा-चढ़ा कर पहुंचा अति वफादारी साबित करते-करते पहले महाराजा के निजी सचिव और फिर रियासत के गृहमंत्री बन गये। प्रजा परिषद् से जुड़े या उनके संपर्क के प्रत्येक की मिनट-मिनट की सूचना प्रतापसिंह तक जाती और वे उन्हें राजा के सामने इस तरह पेश करते ताकि इन सब को कुचल देने की छूट मिल जाए। प्रतापसिंह ने धीरे-धीरे स्थितियां ऐसी बना दी कि आजादी के सेनानियों के मामलों से रियासत के प्रधानमंत्री को अलग-थलग करवा दिया।

कस्तूरबा के निधन के बाद कांग्रेस ने 75 लाख का 'बा-फंड' बनाने की घोषणा की। गोईल के घर पर आयोजित शोकसभा में 'बा-फंड' में बीकानेर के योगदान का संकल्प लिया गया। गोईल-कौशिक-आचार्य के छूटने के बाद 'वेट एण्ड सी' के चलते यह पहला एक_ था। तय हुआ कि 'बा-फंड' की घोषणा सार्वजनिक करने के लिए रतनबिहारी पार्क में सार्वजनिक सभा रखी जाए। बीकानेर रियासत के इतिहास में होने वाली इस पहली सार्वजनिक सभा की रूपरेखा बनी। चूंकि हर तरह के सार्वजनिक कार्यक्रमों की इजाजत पूर्व में लेनी होती थी, लेकिन गृहमंत्री ठाकुर प्रतापसिंह का जैसा रवैया था उसमें इजाजत तो दूर की बात, अन्य परेशानियां भी खड़ी हो जानी थी। रियासत के प्रधानमंत्री एच के कृपलानी उदार और प्रगतिशील थे, ऐसे में तीनों द्वारा तय कार्यक्रम अनुसार लिखित आवेदन के साथ गोईल सीधे लालगढ़ स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंच गये। उन्हें कार्यक्रम संबंधी मंशा विस्तार से बताई तो प्रधानमंत्री इतने प्रसन्न हुए कि फंड के लिए खुद ने 501 रुपये दिये ही, लाउडस्पीकर का खर्च अपनी ओर से देने का आश्वासन भी दिया।

आवेदन पर इजाजत लिखने के बाद कह दिया कि इसे लेकर गृहमंत्री के पास चले जाएं ताकि वे जाब्ते की व्यवस्था कर दें। गृहमंत्री प्रतापसिंह के रवैये से गोईल वाकिफ थे, फिर भी जाना तो था ही। प्रतापसिंह खादी के कपड़ों से ऐसे चिढ़ते थे, जैसे लाल कपड़े से सांड। 'क्या है? क्यों आए हो? ' सुनकर प्रधानमंत्री की 'यस' दरख्वास्त पेश करते हुए सारी बात बता दी। दरख्वास्त देख कर गृहमंत्री तमतमा गये। लेकिन प्रधानमंत्री के 'यस' के बाद करते क्या। दरख्वास्त रखकर दो-तीन दिन बाद मिलने का कह दिया। 

बात महाराजा तक पहुंचाई गई। लेकिन इजाजत तो दी जा चुकी थी। राजनीति, झंडे, गीत, गायन जैसी पाबंदियों के साथ यह भी शर्त रखी गई कि ब्रिटिश और रियासती सरकार के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला जायेगा।

इस तरह 25 मई 1944 . को होने वाली सभा की इजाजत 23 मई को एक और हिदायत के साथ मिली कि पेम्फलेट छपवाना है तो पहले उसके मजमून की डीआईजी से मंजूरी लेनी होगी। बार-बार के चक्कर के बाद पेम्फलेट अंग्रेजी में छपवाने की मंजूरी दी, फिर भी आयोजकों ने छपवाए और बांटे भी। प्रतापसिंह ने सभा में आने वालों में भय पैदा करने के लिए भारी पुलिस जाब्ता तो लगाया ही, दहशत पैदा करने के लिए एक बड़ी टेबल पर हथकडिय़ों का ढेर भी लगा दिया, फिर भी सभा सफल रही। 

जैसा कि पहले लिखा जा चुका हैरियासत के इतिहास की यह पहली सार्वजनिक सभा थी। भारी जाब्ते और हथकडिय़ों की नुमाइश के बावजूद लोग बेधड़क उमड़े। वकील ईश्वरदयाल के सभापतित्व में हुई सभा के मुख्यवक्ता बाबू रघुवरदयाल थे।

'बा-फंड' के लिए इसी तरह की मीटिंग नोहर में करने के लिए प्रजा परिषद के नेता मालचन्द हिसारिया ने भी बैठक बुलाई तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

नोहर-भादरा से हासिल राशि सहित 'बा-फंड' के लिए लगभग ग्यारह हजार रुपये इकट्ठे हुए जिसमें प्रधानमंत्री के 501 के अलावा सेठ बद्रीप्रसाद डागा की भी बड़ी राशि थी। केवल सभा में आने वाले बल्कि फंड में राशि देने वालों की सूचना गुप्तचरों द्वारा गृहमंत्री तक लगातार पहुंचाई जा रही थी। सेठ बद्रीप्रसाद डागा चपेट में गये और उनकी बहियों को जप्त कर कई दिनों बाद लौटाया गया।

इस तरह की खबरें बराबर बाहर के अखबारों में जातीं और छपतींछपने पर गृहमंत्री को पेश होती। गृहमंत्री का गुस्सा लगातार बढ़ता गया। अंग्रेजों द्वारा शासित राज्यों में नागरिक अधिकारों की जैसी छूट दी गई वैसी ही छूट देने के निर्णय रियासतों को भी करने थेगोईल, कौशिक, आचार्य की महाराजा से मांग भी यही थी। इस पर उन्हें आश्वासन यह दिया गया कि संविधान के जानकार एच के कृपलानी को प्रधानमंत्री के तौर पर इसीलिए ला रहे हैं, क्योंकि वे उत्तरदायी सरकार और संवैधानिक सरकार के विशेषज्ञ हैं। वे नया संविधान भी बनाएंगे और नागरिकों के लिए अनुकूलता भी। लेकिन गृहमंत्री प्रतापसिंह की मैली कारगुजारियों के चलते प्रधानमंत्री के लिए भी यह सब करने की अनुकूलता नहीं बन पायी। हुआ यह कि मात्र छह महीने में ही कृपलानी प्रधानमंत्री पद छोड़कर चले गये। के एम पणिकर को पुन: प्रधानमंत्री बनाया गया और उनके सहयोग के लिए मैसूर के सिविल सर्विसेज के उद्योग और विकास विशेषज्ञ टीजी रामा अरूया को डवलपमेंट कमिश्नर लगाया गया, अनुकूलता पाकर टीजी भी चले गये।       क्रमश:

दीपचंद सांखला

21 जुलाई, 2022

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