Thursday, August 26, 2021

देश की तासीर में जबरिया बदलाव

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अपनी स्थापना के बाद के 95 वर्षों से अपने एजेंडे पर बड़ी चतुराई से जुटा है बल्कि यह कहना अतिशयोक्ति में नहीं आयेगा कि इसका अनुगमन करने वाले बड़ी धूर्तता से लगे हैं। यह सर्वविदित है कि संघानुगामियों का आजादी के आंदोलन में किसी तरह का योगदान तो दूर की बात, ये अंग्रेज शासकों और अलगाववादियों के लिए अनुकूलता बनाने में ही लगे रहे।

कहने को आरएसएस एक सामाजिक संगठन है, अपनी अपंजीकृत इकाइयों—शाखाओं—में यह दिखावे के तौर पर तयशुदा रूढ़ और विवादहीन गतिविधियां करते हैं, वहीं तय आयोजनों के अलावा अपने शाखा-साथियों की अनौपचारिक बैठकों-मुलाकातों में घृणा के बीज बोते नहीं थकते जाति और धर्म श्रेष्ठता की बातें कर चार वर्णों में बंटी जातियों में तथाकथित सवर्णों में भी एक विशेष ब्राह्मण-समूह को श्रेष्ठ और उन्हीं के कहे को अनुकरणीय स्थापित करने में अपरोक्ष तौर पर जुटे रहते हैं। बात यहीं खत्म नहीं होती, इस पर कायम रहने की जरूरत वे इसलिए बताते हैं कि यदि सदियों पुरानी इस व्यवस्था को पुख्ता नहीं रखेंगे तो दूसरे धर्म के—खासकर इस्लाम और ईसाई हमारे धर्म को समाप्त कर देंगे। इसके लिए गढ़ी गई झूठी ऐतिहासिक घटनाओं को प्रचारित करते हैं या ऐतिहासिक घटनाओं की अपने ऐजेंडे के अनुकूल 'संघ-घडंत' व्याख्या बताते रहे हैं।

इस तरह की झूठी बातें भय पैदा करती हैं और भय कायरता। कायरता की पीठ पर हाथ लगते ही वह हिंसक होते देर नहीं लगाती। मोदी-शाह की शासनशैली ऐसे ही कायरों की पीठ पर हाथ रखने में कारगर साबित हो रही है। नतीजतन जिनके विरुद्ध फिलहाल सर्वाधिक विषवमन किया जा रहा है उस मुस्लिम समुदाय के कमजोर लोगों के साथ ये कायर हिंसक होकर घृणा का वमन करने लगे हैं। गो-पालन में लगे मुसलमानों को गो-वंश के परिवहन में बड़ी दिक्कत आने लगी है। पहले उनके साथ सीधे हिंसा होती थी लेकिन जब से रंगदारी तय हो गयी तब से ये तथाकथित गो-भक्त रंगदारी वसूलने और गो-वंश का निर्बाध परिवहन होने दे रहे हैं। इस तरह गो-भक्तों का तथाकथित शौर्य ठण्ड पी गया। 
जो रंगदारी वसूलने में लग गये, वे तो काम लग गये, लेकिन अन्य कायर दूसरे-दूसरे तरीकों से अपनी घृणा के वमन में लग गये हैं, रोटी-रोजी में लगे मुस्लिम समुदाय के लोगों पर जब-तब 'चढ़ी' करने लगे। इन्दौर में हाल ही की एक घटना में चूड़ी बेचने वाले मुस्लिम युवक का सामान बिखेरते हुए इन्हीं कायरों ने इस हीनता में पीट दिया कि वह चूड़ी पहनाने के बहाने हिन्दू स्त्रियों के हाथों को छूता है।

इन्दौर के चूड़ी विक्रेता पर जो एक आरोप चस्पा किया गया, वह यह कि हिन्दू नाम रखकर ऐसा कर रहा है। हिंसक कृत्र्य का ऐसा बचाव करने वाले ऐसा क्यों नहीं सोचते कि रोटी-रोजी के लिए उसे नाम बदलने की नौबत क्यों आयी। इन कायर-हिंसकों ने देश में ऐसा माहौल बना दिया है कि अल्पसंख्यक अपनी असल पहचान के साथ मजदूरी भी नहीं कर सकता। यहां वर्षों पहले का उदाहरण दोहराना चाहता हूं—मेरे एक पड़ौसी मुस्लिम युवक थे मुमताज, जो हनुमान भक्त थे। सादुलगंज स्थित ग्रेजुएट हनुमान मन्दिर के परम भक्त। एक दिन मन्दिर में मुझसे टकरा गये, देखकर सकपकाए—किनारे ले गये और बोले कि मेरी पहचान मत बताना, मेरी पहचान यहां मूलचन्द नाम से है। ऐसा उन्हें इसलिए करना पड़ा, क्योंकि उस मन्दिर के तब के पुजारी जनार्दन व्यास मन्दिर में श्रद्धालु का नाम और जाति पूछकर ही प्रवेश देते थे, पहचान इसलिए भी छुपानी पड़ती है। संघानुगामियों की बेशर्मी की हद तो तब देखने में आयी जब मध्यप्रदेश के गृहमंत्री उस चूड़ी विक्रेता युवक पर हमला करने वालों का ढिठाई से बचाव करने प्रेस से मुखातिब हुए। 

हमारे बीकानेर का ही उदाहरण लें, यहां चूड़ी व्यवसाय में सदियों से जो मुस्लिम समुदाय लगा है, उसे चूड़ीगर कहा जाता है, उनकी कभी कोई एळ-गेळ शिकायत सामने नहीं आयी।

इस देश की तासीर बदलने में वर्तमान शासक जो लगे हैं, उसकी कीमत हमें अपना सुख-चैन खोकर चुकानी होगी। अर्थव्यवस्था का भट्टा इन्होंने पूरी तरह बिठा ही दिया है, सामाजिक-समरसता से भी इनकी दुश्मनी कम नहीं है। हम अब भी नहीं जागे तो क्या कुछ खो देंगे, उसकी कल्पना मात्र से ही सिहर उठते हैं।
―दीपचन्द सांखला
24 अगस्त, 2021

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