Thursday, September 10, 2020

पाती, बीकानेर कलक्टर नमित मेहता के नाम

 नमितजी! प्रशासनिक सेवा में कलक्ट्री जैसा पद कुछ वर्षों के लिए ही मिलता है, यह ऐसा पद है जिसमें सीमित समय में सीमित स्थान पर बहुत कुछ कर गुजरने का अवसर होता है। कुछ लोग इस पद को बड़े बाबू की तरह गुजार लेते हैं, कुछ अतिरिक्त विलासिता के इंतजाम में लग जाते हैं। कुछ ही होते हैं जो ऐसा कर गुजरने की मंशा रखते हैं, जिससे ना केवल सन्तोष जैसा सुख जीवन भर के लिए हासिल कर लेते हैं बल्कि स्थानीय लोगों की स्मृतियों में लम्बे समय तक स्थान भी बना लेते हैं।

आप युवा हैं, ऊर्जा से भरपूर भी लगते हैं। छिटपुट के साथ इस शहर की अपनी बहुत सी समस्याएं हैं, जिनका समाधान ना होने के जिम्मेदार यहां के कलक्टर कम और जन प्रतिनिधि ज्यादा है। बीते पचास वर्षों में शहर को ऐसा एक भी विधायक या सांसद नहीं मिला जो अपने शहर से प्यार करता हो। इसे आरोप की तरह ना भी लें तो मान लेते हैं कि ये उनकी सीमाएं थीं या हैं, या यह भी कि वे जनप्रतिनिधि रुआब-रुतबा भोगने को बनते हैं-सो भोग रहे हैं।

आपके नाम पाती लिखने को प्रेरित होने की तात्कालिक वजह आपकी अध्यक्षता में नगर विकास न्यास की हाल ही में हुई बैठक है, जिसमें कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या के फौरी समाधान के तौर पर कोयला गली से मटका गली तक रेलवे अण्डरपास पर कार्य योजना बनाने का निर्णय लिया गया। पहला संशय तो यह कि यह बन भी पायेगा, बन भी गया तो कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या के समाधान में कितना कारगर होगा, ऐसा इसलिए कि उक्त क्षेत्र की असल समस्या शहर के परकोटाई क्षेत्र से महात्मा गांधी रोड होते हुए कलक्टरी की ओर आने-जाने वाले यातायात की है। जूनागढ़ क्षेत्र से स्टेशन के प्रथम प्रवेश की ओर जाने वालों के पास दो विकल्प पहले से है, जिन्हें रेलवे स्टेशन ही जाना है, उनके लिए स्टेशन का द्वितीय द्वार है, और जेलवेल या गंगाशहर की ओर जाने वालों के लिए रानी बाजार ओवरब्रिज का विकल्प लम्बे समय से मिला हुआ है।

प्रस्तावित अण्डरपास पर संशय इसलिए किया कि शहर के परकोटाई क्षेत्र के ड्रेनेज और बरसाती पानी के लिये रियासतकालीन मुख्य नाला सांखला फाटक से ही रेलवे लाइन के साथ-साथ चलता है, जो नागणेचीजी फाटक से वल्लभ गार्डन तक जाता है। इस नाले के होते प्रस्तावित अण्डरपास कैसे बन पायेगा, समझ से परे इसलिए है कि उस नाले को किधर से और कैसे भी डाइवर्ट करने की गुंजाइश दिख नहीं रही।

नाले की यही समस्या रानी बाजार फाटक पर प्रस्तावित अण्डरपास के लिए सामने आयी। जिसके समाधान के तौर पर उस नाले को रेलवे स्टेशन के बाद रेलवे हॉस्पिटल या सोहनकोठी के पास वाली गली में डाइवर्ट कर, अम्बेडकर सर्किल होते हुए शिशु चिकित्सालय के पास स्थित नाले से जोडऩे का तय किया किया गया। इस प्रस्तावित योजना के बारे में भी आपको बताया गया होगा कि पांच बार निविदा सूचना जारी होने के बावजूद टेण्डर नहीं रहे हैं। और यह भी कि न्यास की हाल ही की बैठक में रानी बाजार रेल अण्डरपास एजेण्डे में था या नहीं, नहीं तो क्यों नहीं रखा गया, यह आपको देखना है।

शेष कामों का जिक्र फिर कभी। सांखला फाटक से रेलवे लाइन के बराबर चलने वाले नाले का ऊपर उल्लेख हुआ है तो फिलहाल इस पर बात कर लेते हैं। यह नाला आधे परकोटाई शहर के सब तरह के पानी को घड़सीसर तक पहुंचाता रहा है। इस नाले की शुरुआत कोटगेट के अन्दर सादुल स्कूल के सामने स्थित मल्होत्रा बुक डिपो के नीचे से होती है। जो कोटगेट सब्जी मंडी होते हुए लाभूजी के कटले के नीचे से कोटगेट सट्टा बाजार में आता है और वहीं से सांखला फाटक के बाद खुले नाले में परिवर्तित हो जाता है। यह नाला तब से है जब ना कोटगेट सब्जी मंडी थी, ना लाभूजी का कटला। जानकारी यह है कि रियासतकाल में जब लाभूजी के कटले के लिए जमीन देकर निर्माण की इजाजत इस नाले को कवर करके उसे कायम रखने की शर्त पर दी गई थी। तीस-पैंतीस वर्ष पूर्व तक यह नाला दुरुस्त था। शहर के बरसाती पानी तथा बारह मास गंदे पानी को गन्तव्य तक पहुंचाता रहा। सीवर लाइन डलने से गंदा पानी तो उसमें बहने लगा। कई वर्षों तक इस नाले की सफाई नहीं हुई तो पूरी तरह डट गया, बरसात के पानी को इस नाले से रास्ता ना मिला तो वह कोटगेट होते हुए दो-ढाई फीट की चादर के साथ कोटगेट, महात्मा गांधी रोड-फड़बाजार होता हुआ सूरसागर क्षेत्र में अपनी विकरालता दिखाने लगा।

बीसेक वर्ष पूर्व प्रशासन ने नाले की सुध ली, आरयूआईडीपी को इसकी सफाई और मरम्मत का काम सौंपा गया। रेलवे लाइन और मल्होत्रा बुक डिपो के नीचे आरयूआईडीपी ने दोनों तरफ से काम शुरू किया। दोनों तरफ से लाभूजी कटले तक सफाई और मरम्मत का काम हो भी गया। लेकिन लाभूजी कटले के नीचे दोनों तरफ दीवारें मिलीं जो नाले के लिंक को खत्म कर रही थी। सुनते हैं कटले के दुकानदारों ने अपने-अपने नीचे के नाले के हिस्से के दोनों तरफ दीवारें बनवाकर इसे अण्डर ग्राउण्ड गोदाम के तौर पर काम लेने लगे हैं। आरयूआईडीपी का काम रुक गया। अमानत की इस खयानत पर कोई हल्ला नहीं हुआ। ऐसे में आरयूआईडीपी ने रास्ता यह निकाला कि मल्होत्रा बुक डिपो से सड़क के नीचे डाइवर्जन नाला बनाकर कोटगेट होते हुए सट्टा बाजार स्थित नाले से मिला दिया। लेकिन वह इतना छोटा है कि बरसात के पूरे पानी को झेल नहीं पाता और कोटगेट, महात्मा गांधी मार्ग, फड़ बाजार में परेशानियां पैदा करता हुआ वह सूरसागर क्षेत्र में प्रतिवर्ष तबाही मचाता है। बरसाती पानी की ऐसी विकरालता तीस-पैंतीस वर्ष पहले तक कभी देखी नहीं गयी। मीडिया, आम जनता और प्रशासन एक सुर में यह कह कर तसल्ली कर लेते हैं कि बीकानेर में पहले से ज्यादा  बरसात होने लग लगी है। नाले पर अतिक्रमण की बात कोई नहीं करता। इस मानसून में शहर में बारिश कुछ खास हुई नहीं अन्यथा उसकी समस्या से आपको भी दो-चार होना पड़ता। उस नाले से कब्जे हटाकर मानसून में होने वाली समस्याओं से कोटगेट, महात्मा गांधी रोड, फड़बाजार, सूरसागर, गिन्नाणी क्षेत्र के बाशिन्दों को कुछ राहत दिलाई जा सकती है। समाधान है पर करे और करवाये कौन, देखना यही है।

दीपचन्द सांखला

10 सितम्बर, 2020

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