Thursday, May 16, 2019

मतदान के दस दिन बाद : बीकानेर क्षेत्र की चुनावी पड़ताल

बीकानेर लोकसभा क्षेत्र में मतदान हुए दस दिन बीत रहे हैं। परिणामों के कयास वही हैं जो मदनगोपाल मेघवाल के कांग्रेसी उम्मीदवार घोषित होने पर लगाए गये थे। मदन मेघवाल के उम्मीदवार घोषित होते ही यह कहा जाने लगा था कि कांग्रेस ने अपनी एक आसान जीत को हार की भेंट चढ़ा दिया है। इसमें अब दो राय नहीं कि कांग्रेस से उम्मीदवारी सरिता मेघवाल को मिलती तो इस सीट को कांग्रेस बड़ी आसानी से निकाल ले जाती, बावजूद रामेश्वर डूडी की आदतन करतूतों के! अर्जुनराम मेघवाल जीतते हैं तो यह कहने में भी कोई संकोच नहीं कि देवीसिंह भाटी ने भी अर्जुनराम मेघवाल की जीत को और आसान बनाया!
कांग्रेस से मदन मेघवाल के उम्मीदवार घोषित होते ही अपनी एक फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि 'बीकानेर के दिग्गज कांग्रेसी अर्जुनराम को जिताने में और दिग्गज भाजपाई अर्जुनराम को हराने में जुटेंगे।' 23 मई को भाजपा प्रत्याशी अर्जुनराम मेघवाल यदि जीतते हैं तो कई कांग्रेसी दिग्गज जीतेंगे और कई भाजपाई दिग्गज हारेंगेे। एक जनप्रतिनिधि के तौर पर देवीसिंह भाटी को घोर धर्मच्युत मानने के बावजूद उनकी इस बात की तारीफ करनी पड़ेगी कि अर्जुनराम के साथ भितरघात की बजाय उन्होंने पार्टी छोड़कर खुले आम मैदान में उतरना उचित समझा। बावजूद इस सबके अर्जुनराम को कोई नुकसान पहुंचने के बजाय उनके विरोध से अर्जुनराम को फायदा ही हुआ है। इसका अनुमान भी फेसबुक की अपनी पोस्ट में जाहिर कर दिया था जिसमें यह लिखा था कि 'यह विरोध अर्जुनराम के लिए सहानुभूति का एक हेतु बनेगा।'
बात कुल जमा यही कि बीकानेर और प्रदेश के अन्य लोकसभा क्षेत्रों के लिए भी कांग्रेस ने टिकट जिस तरह दिए उससे नहीं लगता कि प्रदेश कांग्रेस के नियंताओं को इसका आभास था कि यह चुनाव पार्टी के अस्तित्व का अवसर है।
बात बीकानेर लोकसभा क्षेत्र के सन्दर्भ से कर रहे हैं तो यहीं लौट आते हैं। भाजपा की बात करें तो देवीसिंह भाटी, गोपाल जोशी सहित स्थानीय भाजपाई दिग्गज लोक प्रचलित कही 'ठाकर ने रैकारो ही गाली है' से संक्रमित हैं तो खुद अर्जुनराम ब्यूरोक्रेटिक हेकड़ी से। वहीं कांग्रेस के तथाकथित दोनों बड़े दिग्गज, रामेश्वर डूडी और बीडी कल्ला हीनभावना से ग्रसित हैं। अपने राजनीतिक कॅरिअर की शुरुआत से ही ये दोनों बजाय अपना कद बढ़ाने के अधिकांशत: इसी में लगे रहे कि क्षेत्र में किसी दूसरे का कद ना बढ़े। 2009-2019 तक के लोकसभा चुनावों में बीकानेर कांग्रेस की हार की बिसात रामेश्वर डूडी अपनी हीनभावना से ग्रसित हेकड़ी में ही बिछाते रहे हैं। डूडी इससे ग्रसित नहीं होते और बीडी कल्ला और उनकी टीम बीकानेर पूर्व ना सही बीकानेर पश्चिम में ही अपने चुनाव अभियान की तरह पार्टी कार्य में लगते तो 2009 का चुनाव मात्र 19,575 वोटों से हारने वाली कांग्रेस अच्छे वोटों से जीतती।  
2014 का चुनाव भ्रमित लहर का चुनाव था, उसे अपवाद मान लेते हैं। 2019 के चुनाव पर आ लेते हैं कांग्रेस की अपनी रिपोर्टों में और आम राय से भी स्पष्ट था कि गोविन्द मेघवाल या उनकी पुत्री और खाजूवाला पंचायत समिति की प्रधान सरिता चौहान को कांग्रेस यदि उम्मीदवार बनाती है तो वह यह सीट आसानी से निकाल ले जाएगी। बावजूद इसके डूडी मदनगोपाल मेघवाल के लिए अड़े रहे। मदन मेघवाल यदि यह चुनाव हारते हैं तो खाजूवाला विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिलाने के बहाने वीआरएस दिलाकर कॅरिअर खत्म कर उनकी राजनीतिक हत्या के लिए जिम्मेदार डूडी के अलावा और किसे माना जायेगाïï? सुनते हैं इस चुनाव में मदन गोपाल मेघवाल की सारी जमा पूंजी भी खेत रही है।
अब क्षेत्र के आठों विधानसभा क्षेत्र वार बात कर लेते हैं। गंगानगर में हुआ भारी मतदान गंगानगर हनुमानगढ़ जिले के स्वत: स्फूर्त मतदाताओं की बानगी है, ऐसा वहां हर चुनाव में होता रहा है। गंगानगर में कांग्रेस जीतेगी या भाजपा, दावा करना मुश्किल है। हो सकता है निहालचन्द की एंटी इन्कम्बेंसी मोदी नाम पर भारी पड़े। इसीलिए इस जिले के बीकानेर लोकसभा क्षेत्र में शामिल अनूपगढ़ विधानसभा क्षेत्र पर भी कोई दावा करना मुश्किल है। अनूपगढ़ से भाजपा विधायक संतोष बावरी जहां अनौपचारिक सी अर्जुनराम के लिए लगी हुई थी वहीं कांग्रेस के हारे कुलदीप इन्दौरा भी बीकानेर लोकसभा क्षेत्र के कांग्रेसी उम्मीदवार के लिए कम और गंगानगर के भरत मेघवाल के लिए ज्यादा जुटे रहे। उस क्षेत्र में प्रभावी और माक्र्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी से उम्मीदवार श्योपत मेघवाल भी अपनी साख बचाने को अनूपगढ़ से उम्मीदें बांधे हैं। श्योपत के लिए जीतने से ज्यादा जरूरी यह है कि वह कितने वोट प्रतिशत से अपनी पार्टी की राष्ट्रीय स्तर की हैसियत बचाने में सहयोगी बन पाते हैं।
खाजूवाला में गोविन्द और सरिता कांग्रेस के लिए जितने भी जुटे वह राजनीति में चलन से ज्यादा ही माना जाएगा, वहीं कोलायत विधायक और राज में भागीदार भंवरसिंह भाटी मदन गोपाल को तारने के बजाय अपने क्षेत्र से देवीसिंह भाटी को निबटाने में ज्यादा लगे रहे। लूनकरणसर और श्रीडूंगरगढ़ में विधानसभा चुनावों में निपट चुके वीरेन्द्र बेनीवाल और मंगलाराम ने अशोक गहलोत की हिदायत का मान चाहे रखा हो, लेकिन इवीएम इसकी साख भरेगी, लगता नहीं है। सरिता को टिकट मिलता तो ये दोनों भी डूडी की नाक कटवाने को जरूर अच्छे से लगते।
बीकानेर पूर्व और पश्चिम दोनों शहरी विधानसभा क्षेत्र हैं। पूर्वी क्षेत्र को कांग्रेस श्मशान की तर्ज पर आयो-गयो का मानती रही है, शायद इसीलिए यहां से पिछला चुनाव हार चुके कन्हैयालाल झंवर कहीं नजर नहीं आए और ना ही 2013 में विधानसभा का चुनाव हारे और पार्टी से बाहर होकर चुनाव अभियान के दौरान लौटे गोपाल गहलोत के कहीं पगलिए दीखे। ऐसे में सूबे की सरकार में तीसरी हैसियत के मंत्री डॉ. बीडी कल्ला की जिम्मेदारी थी कि शहर की इन दोनों सीटों पर वे अपनी 'फौज' को लगाते। लेकिन 1980 में जब से वे राजनीति में आए तब से, बलराम जाखड़ की उम्मीदवारी के चुनाव को छोड़ किसी भी लोकसभा चुनाव में वे अपने चुनाव की स्फूर्ति से आधी स्फूर्ति से भी किसी को जिताने में लगे हों तो बताएं। कल्ला उन नेताओं में से है जो केवल अपने लिए लगते हैं, पार्टी के लिए कभी नहीं।
अब बात करते हैं राजस्थान विधानसभा में 2013 से 2018 तक नेता प्रतिपक्ष रहे रामेश्वर डूडी कीयह भी जब से राजनीति में आए हैं, हीनभावना और हेकड़ी इनका साथ छोड़ने को तैयार नहीं है। राजनीति की बात करने पर अब यह कहने में भी संकोच नहीं कि डूडी जिस तरह 2009 में रेवंतराम को हराने में जुटे उसी तरह इस बार उनकी मंशा शुरू से ही अर्जुनराम को जिताने की थी। इसीलिए मदनगोपाल मेघवाल को 'बलि के बकरे' के तौर पर चुनाव की बलिवेदी पर चढ़ा दिया। डूडी कभी नहीं चाहते कि लोकसभा में यहां से कोई कांग्रेसी जाए और उनसे लंबी लकीर खींचने की कोशिश करे।
इसी तरह भाजपा की बात करें तो अनूपगढ़ की बात ऊपर कर चुके हैं। कोलायत की मोटा-मोट बात भी देवीसिंह भाटी के हवाले से की जा चुकी है। लूनकरणसर और खाजूवाला में डॉ. विश्वनाथ और सुमित गोदारा पर भाटी खेमे की छाप होने के चलते कभी अर्जुनराम मेघवाल की गुडबुक में रहे नहीं। अर्जुनराम मेघवाल लूनकरणसर में इसीलिए मानिकचंद सुराना से सहानुभूति रखते रहे हैं। श्रीडूंगरगढ़ में अर्जुनराम मेघवाल के शुभचिंतक पूर्व विधायक किसनाराम फाड़ा-फूंची कर चुके हैं। बीकानेर पूर्व हो या पश्चिम, सिद्धिकुमारी किसी के लिए भी कोई काम की नहीं है तो अर्जुनराम मेघवाल उनसे क्या उम्मीद करते। वहीं गोपाल जोशी और अर्जुनराम मेघवाल एक-दूसरे को 'हम चौड़े गली संकड़ी, सड़क का रास्ता किधर है' का अहसास कराते रहे हैं। शहरी युवाओं में हाल तक कायम मोदी मैजिक और कांग्रेसियों की निष्क्रियता दोनों ही इन क्षेत्रों में अर्जुनराम को ही बढ़त दिलाते लग रहे हैं।
अब बचा नोखा, तो नोखा विधायक बिहारी बिश्नोई को चुनाव जीतते ही देहात भाजपा की कमान दे दी गई। यहां डूडी की चतुराई जहां नोखा में भाजपा को आगे कर बिहारी बिश्नोई की साख बचाती दिख रही है वहीं अर्जुनराम मेघवाल यदि जीतते हैं तो न केवल बिहारी बिश्नोई बल्कि अप्रभावी शहर भाजपा अध्यक्ष सत्यप्रकाश आचार्य के नये मालीपाने भी लग सकते हैं।
—दीपचन्द सांखला
15 मई, 2019

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