Thursday, May 17, 2018

कर्नाटक चुनाव परिणामों के बहाने मोदी और कांग्रेस की बात


'सत्ता में बने रहने के लिए कांग्रेस जो-जो करतूतें सहम-ठिठक कर कभी करती रही, भाजपा उससे कई गुना बढ़-चढ़कर, वही सबकुछ बीते चार वर्षों में बेशर्मी से हक मानकर बेधड़क कर रही है।'
कर्नाटक विधानसभा चुनावों के 15 मई, 2018 के आए परिणामों के संदर्भ से दूसरे दिन सुबह छह बजे यह ट्वीट किया ही था कि एक-डेढ़ घंटे बाद ही फेसबुक ने चार वर्ष पूर्व 2014 के लोकसभा चुनावों के परिणामों पर मेरी इस फेसबुक पोस्ट का स्मरण करवा दिया
'आजादी बाद के इन 66 वर्षों में कांग्रेस ने भ्रमित करके वोट लेने की जो युक्तियां अपनाई, उससे ज्यादा भ्रमित करने वाला आने पर ऐसे ही परिणाम आने थे।'
चार वर्ष पूर्व का यह फेसबुक पोस्ट और हाल ही में किए उपरोक्त ट्वीट में संदर्भ और निहितार्थ समान हैं। उपरोक्त दोनों कथनों में लगभग जो बात सम्प्रेषित हो रही है, उसके माध्यम से देश के वर्तमान राजनीतिक चरित्र को समझने की कोशिश कर सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछली सदी के सत्तर के दशक से सार्वजनिक जीवन में सक्रिय है। वे उस संघ विचारधारा से संस्कारित है, जिसमें व्यक्तिश: गांधी और परिवार विशेष में नेहरू परिवार से घृणा कूट-कूट कर भर दी जाती है। संघ का संभवत: ऐसा मानना है कि नेहरू और उसके वंशज यदि नहीं होते तो देश पर वे अपना हिन्दुत्वी ऐजेंडा बहुत पहले लाद सकते थे। पहले खुद जवाहरलाल नेहरू, बाद में इंदिरा गांधी और फिर राजीव-सोनिया तक नेहरू परिवार उनके हिन्दुत्वी उद्देश्यों को साधने में बाधा बनता रहा है। अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में संघानुगामी पहले भी सत्ता पर काबिज रहे, लेकिन वाजपेयी वैचारिक तौर पर ना केवल उदार थे, बल्कि आजादी बाद के कई सुलझे राजनेताओं की संगत में वे कट्टर संघीय ऐजेन्डे में अपने को असहज भी पाते।
नरेन्द्र मोदी ना केवल शातिर हैं, बल्कि संघीय विचार में विषबुझे भी हैं, लोकतांत्रिक और मानवीय उदारता के 'संक्रमण' से वे शायद इसीलिए बचे रहे कि पिछली सदी के सातवें दशक के पूर्वाद्र्ध के जेपी आन्दोलन के सिवाय उन्होंने अपने को सुलझे और मानवीय राजनेताओं की संगत से बचाए रखा। 2002 से पूर्व के लगभग तीस वर्षों तक के अपने सार्वजनिक जीवन में पद, पहनावे और विदेश भ्रमण की दमित आकांक्षाएं थोड़ी अनुकूलता मिलते ही अच्छे से मुखर हो लीं। वे कहते चाहे कुछ भी रहे लेकिन शासन चलाने के उनके तरीके से लगता है कि आम आदमी की दुख-तकलीफों से इनका कभी वास्ता नहीं रहा। गुजरात में उनके मुख्यमंत्री काल की बात करें तो अभावों में जीने वाले वहां के बहुजन वर्ग के लिए किसी आधारभूत काम का प्रमाण उनके शासन का नहीं मिलता है। कुछ वे ऐसा करते हैं भी तो मकसद उनका मात्र ऐसी योजनाओं से लोकप्रियता हासिल करना भर रहता है। हां, गुजरात के मुख्यमंत्री रहते बड़े व्यापारियों और कॉरपोरेट घरानों के लिए मोदी ने अधिकृत-अनधिकृत बहुत सी अनुकूलता जरूर बनाई। उनके राज में बहुत से व्यापारिक घराने सम्पन्न से सम्पनतर होते गये। एवज में ऐसे सभी घरानों ने खुद मोदी और मोदी के जिम्मे पड़ी पार्टी की जरूरतों को खुलेमन से पूरा भी किया। मोदी के नेतृत्व में भाजपा द्वारा लड़ा गया 2014 का बेहद खर्चीला चुनाव इसका बड़ा उदाहरण है।
अलग-अलग समय पर विभिन्न कांग्रेसी नेताओं द्वारा अपने और पार्टी के हित साधने की जो-जो करतूतें की गई उन सभी को मोदी, उनके विशिष्ट सहयोगी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अच्छे से साध लिया है। ऐसी सभी बुराइयों को ना केवल खुद इस जोड़ी ने साध लिया बल्कि अपने खास अनुगामियों को ऐसे सभी हथकण्डों को बेधड़क अपनाने को प्रेरित इस बिना पर कर दिया कि चूंकि शासन में रहते कांग्रेसी ऐसा ही सब अब तक करते आ रहे हैं, तो वैसा सब कुछ करने के हक से हमें वंचित नहीं किया जा सकता।
इसीलिए आजादी बाद देश की राजनीति में इस तरह आए घोर पतन के लिए किसी पार्टी को सब से ज्यादा जिम्मेदार ठहराया जा सकता है तो वह कांग्रेस है। क्योंकि केन्द्र में, अधिकांश प्रदेशों में अधिकांश समय तक कांग्रेस का शासन रहा है। उसी के शासन में ना केवल भ्रष्टाचार बढ़ा बल्कि उसके चलते चुनाव अभियान भी हर तरह से भ्रष्ट होते गयेसाम, दाम, दंड, भेद से सत्ता हासिल करने और उस पर जमे रहने की अनुकूलताएं बनाने के लिए कांग्रेस बड़ी जिम्मेदार है। दूसरी बात यह है कि कांग्रेस ने देश की जनता को एक लोकतांत्रिक देश के नागरिक के रूप में शिक्षित करने की कभी जरूरत ही नहीं समझी। इसे यूं कहने में भी संकोच नहीं है कि कांग्रेस को इसी में अपने लिए अनुकूलता लगने लगी कि जनता भोंदू बनी रहेगी तो हमें वोट करती रहेगी। जनता को जिस दिन अपने वोट की असल कीमत और उद्देश्य समझ आ जायेगा, फिर वह भेड़चाल में वोट नहीं करेगी। कांग्रेस ही नहीं वामपंथी व तथाकथित समाजवादी सहित सभी राजनीतिक दल जनता को भेड़ों की तरह हांक के रखने में अपना स्वार्थ देखने लगे है।
कर्नाटक चुनावों के बाद कांग्रेस की भी यह महती लोकतांत्रिक जिम्मेदारी है कि देश की जो शासन व्यवस्था है उसका लोकतांत्रिक स्वरूप बना रहे। इसके लिए उसे अपने कायाकल्प के साथ मन शुद्धि भी करनी होगी। वर्तमान में देश की राजनीतिक, शासनिक और प्रशासनिक गत जो बनी है उसके लिए जिम्मेदार कांग्रेस को अपनी भूलों को स्वीकार करते हुए जनता के बीच जाना होगा। चाहे उन भूलों के जिम्मेदार जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ही क्यों न हो। राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हाराव और मनमोहनसिंह से हुई भूलें भी स्वीकार कर जनता से एकबार अवसर देने की बात करनी होगी, अवाम के असल हित की कार्ययोजना बना अपनी शुद्ध मंशा का भरोसा दिलाना होगा। इतिहास में दर्ज हो चुकी कांग्रेस की सभी भूलों को बिना संकोच स्वीकारना होगा। अन्यथा देश जिस गर्त में जा रहा है उसके लिए वर्तमान शासकों से कांग्रेस कम जिम्मेदार नहीं ठहराई जायेगी।
दीपचन्द सांखला
17 मई, 2018

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