Thursday, June 22, 2017

बात फिर एलिवेटेड रोड पर ही

इस जिक्र को पुनरावृत्ति ही कहा जायेगा। लेकिन शहर एक बढ़ती समस्या को लगातार भुगत रहा हो और उसके समाधान में छेद पर छेद करने की कोशिश जारी रहे तो समाधान होने तक बार-बार उसे ध्यान में लाना जरूरी है।
बीकानेर शहर की सबसे बड़ी समस्या फिलहाल कोटगेट क्षेत्र का यातायात है। हां, इसे रेल फाटकों  की समस्या नहीं कहा जा सकता। वैज्ञानिक शब्दावली में बात करें तो ट्रांसपोर्ट इंजीनियरिंग इसे यातायात की समस्या ही मानती है और तदनुरूप ही उसका समाधान भी तलाशना होगा। जयपुर में रेलवे लाइन शहर से पर्याप्त दूरी पर थी, विस्तार खाते शहर में भले ही बीच में लगने लगी हो। लेकिन दिल्ली और जोधपुर के बीच से गुजरती रेल लाइन का हवाला देना प्रासंगिक होगा। दिल्ली और जोधपुर में लगभग बीकानेर शहर की ही तरह बीच शहर से रेल लाइन गुजरती है जिसे नगरीय आयोजकों ने यातायात की ही समस्या माना और जहां जैसी व्यावहारिक जरूरत थी उसके अनुरूप अण्डरब्रिज, ओवरब्रिज और एलिवेटेड रोड बनाकर समाधान पा लिये। दिल्ली-जोधपुर के शहरियों ने रेल लाइन को शहर से बाहर करने की हठ कभी की हो जानकारी में नहीं। एक हम बीकानेरिए हैं कि पिछले 25-30 वर्षों से जब से इस संकट की अनुभूति की तीव्रता बढ़ी तब से ही 'मचले हुए लाल' बन चाहते हैं कि इस समस्या से निजात हमें रेलवे लाइन को बाहर करके ही दिलवाई जाए। दुनिया का न सही अपने देश का ऐसा कोई उदाहरण इन पचीस वर्षों में बाइपास की मांग करने वालों ने बताया हो कि अमुक शहर की यातायात व्यवस्था को सुचारु करने के लिए रेल लाइन को शहर से बाहर किया गया, ध्यान में नहीं आ रहा।
कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या का व्यावहारिक समाधान बाइपास ही होता तो अब तक अमली जामा पहना दिया जाता यहां अण्डरब्रिज, ओवरब्रिज बनाने की भी अपनी तकनीकी समस्याएं हैं इसीलिए सर्वाधिक व्यावहारिक समाधान के तौर पर एलिवेटेड रोड के सुझाव को ही व्यावहारिक माना गया। 2006-07 में इसका निर्माण शुरू होना था, जिसे चन्द लोगों के विरोध पर रोक दिया गया। अब फिर इसको बनाने की कवायद शुरू हुई तो वही लोग बाधा बनने को फिर तत्पर हैं।
पूरे शहर को राहत देने वाले इस समाधान पर यहां का मुख्यधारा का मीडिया भी गंभीर नहीं है। वह या तो उदासीन है या गुमराह करने में लगा है। या फिर अधकचरी या कहें एक बिन्दु उठाकर उसे सनसनी के तौर पर परोसने लगता है।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे बीकानेर शहर की इस समस्या के समाधान में रुचि रखती हैं। लेकिन जैसी शासन व्यवस्था हो गयी है उसके चलते सीधे संवाद के अभाव में समय जाया हो रहा है। हालांकि लूनकरणसर विधायक मानिकचंद सुराना इस समाधान को लेकर लगातार सक्रिय हैं। सार्वजनिक निर्माण मंत्री यूनुस खान से सुराना की इस समाधान को लेकर हुईं एकाधिक मुलाकातों ने बाधाएं काफी दूर की हैं।
अगली बात कहने से पहले यह स्पष्ट करना जरूरी है कि पैसा यदि केन्द्र से लेना है तो इस मार्ग को नेशनल हाइवे को सुपुर्द करना होगा। इसके मानी यह नहीं है कि इस पर नेशनल हाइवे के माफिक यातायात बेधड़क गुजरने लगेगा। शहरी क्षेत्र का यातायात यहां की पुलिस के यातायात महकमे की समयसारिणी और नियम कायदे से ही संचालित होना है।
इसे मुख्यमंत्री की सदिच्छा ही माना जायेगा कि वे चाहती हैं कि एलिवेटेड रोड जब बन ही रही है और केन्द्र की सरकार ने अच्छा खासा 135 करोड़ का बजट देने की हां कर दी तो क्यों न इसे टू-लेन की बजाय फोरलेन का ही बनाया जाए।
चूंकि यह सब सरकारी प्रक्रिया के अन्तर्गत नेशनल हाइवे से संबंधित महकमें को ही यह काम करवाना है इसलिए उसे ही कहा गया कि वह फोरलेन की संभावना तलाशे। महकमें ने निर्देश की पालना में सर्वे किया और वस्तुस्थिति से अवगत करवा दिया। तब भी कुछ अखबारों ने खबर यूं बनाई कि जैसे इसके वर्क आर्डर ही जारी हो गये और छाप दिया कि इतने मकान-भवन टूटेंगे, जबकि यह मात्र प्रस्ताव भर ही गया था। सरकार टूट-फूट नहीं चाहती, इसलिए फोर-लेन का प्रारूप ड्राप कर दिया गया। इसके बाद जब मुख्यमंत्री ने जानना चाहा कि क्या एलिवेटेड रोड थ्री लेन बन सकती है तो नेशनल हाईवे ने फिर प्रारूप बनाकर सरकार को वस्तुस्थिति से अवगत करवा दिया। थ्री लेन के निर्माण में भी कई भवनों को हटाये जाने की बात थी।
सरकार को भेजे गये थ्री-लेन के इस प्रारूप की खबर को भी मीडिया ने प्लांट इस तरह किया जैसे वर्क ऑर्डर ही जारी हो चुके हैं। ऐसी अधकचरी खबरों की वजह से शहर में बेवजह सनसनी फैलती है। जैसा कि जाहिर है सरकार चलाने वाली पार्टियों को हर पांच वर्ष में वोट लेने जनता के बीच जाना होता है। ऐसे में जहां तक हो सके वह तोड़-फोड़ के लिए कतई तैयार नहीं होती जिससे अवाम में बदमजगी या व्यापक नाराजगी फैले। इसीलिए थ्री-लेन एलिवेटेड रोड का यह प्रारूप भी शासन में पहुंचते ही ड्राप हो गया। सार्वजनिक निर्माण मंत्री यूनुस खान ने मुख्यमंत्री सेे मशवरा किया। मुख्यमंत्री ने फिर कहा बताते हैं कि टू-लेन एलिवेटेड रोड को सात मीटर से कुछ तो चौड़ा करवाया ही जाना चाहिए ताकि भविष्य में यातायात की असुविधा कम हो। जैसी कि जानकारी है इस एलिवेटेड रोड का प्रारूप अब नो या दस मीटर के हिसाब से बनवाया जायेगा। यदि ऐसा होता है तो शार्दूलसिंह सर्किल से स्टेशन रोड स्थित बिस्किट गली तक किसी भवन और दुकान में तोडफ़ोड़ संभवत: नहीं होनी है। क्योंकि इस मार्ग के बीच सबसे संकड़ी सड़क 51 फीट की सांखला पॉइन्ट की ही है। यह एलिवेटेड रोड यदि नो या दस मीटर की बनती है तो इसके निर्माण की अधिकतम चौड़ाई लगभग 35 फीट रहेगी।
खैर, इस तरह सनसनी फैलाने वाली खबरों के बाद वही लोग फिर सक्रिय हो लिए हैं जो रेल बाइपास की जिद पर अड़े हैं और अपनी जिद के चलते जो पूरे शहर को घोर असुविधा से गुजरते रहने को बाध्य करने पर तुले हैं। रेल बाइपास समर्थक इस समूह की जो भी आपत्तियां और आशंकाएं हैं उन पर 'विनायक' ने विस्तार से विनम्रतापूर्वक अपने 31 मार्च 2017 के अंक में लिखा है, चाहे तो वे उसे पढ़ सकते हैं। यदि उन्हें लगता है कि इसमें चर्चा की गुंजाइश है तो वह भी की जा सकती है। लेकिन उनसे अब आग्रह है कि इस शहर पर वे रहम खाएं और इस काम को होने दें। सरकारी समयचक्र का एक घेरा पांच वर्षों में पूरा होता है और जरूरी नहीं कि पांच वर्ष बाद आने वाली सरकार बीकानेर की इस समस्या पर सक्रिय हो। सरकारों के लिए राजस्थान बहुत बड़ा है और 33 जिलों में से एक बीकानेर ही राजस्थान नहीं है।
दीपचन्द सांखला

22 जून, 2017

1 comment:

Unknown said...

प्रणाम!बहुत ही बढ़िया लेख