Thursday, December 15, 2016

मुख्यमंत्री के यूं लौटने पर ठगा सा महसूस क्यों नहीं करते हम?

वसुंधरा सरकार की तीसरी वर्षगांठ की रस्म अदायगी 13 दिसम्बर को बीकानेर में हो गई। मुखिया तीन वर्ष से सूबे की सरकार जिस तरह ठेल रही हैं उसके चलते यहां के बाशिन्दों ने इस आयोजन के बहाने अपने लिए कुछ ज्यादा उम्मीदें तो नहीं बांधी। बावजूद इसके मुख्यमंत्री के गुजरने के संभावित रास्तों की सफाई और इन सड़कों की आनन-फानन में की गई मरम्मत ही कुल जमा हासिल का तलपट है। वैसे इन छिट-पुट कामों की कीमत शहरवासियों ने कल चुका भी दी। आयोजन स्थलों के आसपास के रास्तों को सुबह 8 बजे से ही बंद कर दिया गया और जिन रास्तों से मुखियाजी को गुजरना था उन पर आवागमन भी कई दफा काफी-काफी देर तक बन्द रखा गया। इस यातायात व्यवस्था से यहां के बाशिन्दे परेशान ज्यादा ही दिखे। इतना ही नहीं, कुछेक ने तो व्यवस्था में लगे पुलिस के जवानों से उलझ-उलझ कर अपनी खीज निकाली। ज्यादा परेशानी लोगों को इसलिए हुई कि बड़े आयोजनों के दोनों स्थान ही पीबीएम अस्पताल के दोनों ओर थे और कई जरूरतमंदों को अस्पताल तक पहुंचने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। प्रशासन चाहता तो सुबह आठ बजे से इन रास्तों को बन्द न कर केवल नफरी बढ़ाकर सुचारु रख लेता और आयोजन से आधा घंटा पहले बंद करवाना तो काम चल जाता। लेकिन जब सभी प्रशासनिक अधिकारी अपनी खाल बचाने की जुगत में हों तो आमजन की खाल खिंचना लाजिमी हो जाता है।
खैर। यह तो हो ली बात। ऐसे विवाहों के गीत तब तक ऐसे ही गाए जाने हैं जब तक आमजन अपनी सामंती गुलामी की मानसिकता से बाहर नहीं निकलेगा। बात अब शहर की उम्मीदों की कर लेते हैं जिन पर पानी बार-बार फेर दिया जाता है।
'विनायक' ने अपने पिछले अंक के संपादकीय में केवल उन्हीं पांच वादों का जिक्र किया जो वसुंधरा राजे ने अपनी जून, 2013 में सुराज संकल्प यात्रा के बीकानेरी पड़ाव के दौरान मुख्यमंत्री बनने पर पूर्ण करने का भरोसा दिया था। इतना ही नहीं, 'विनायक' के गुरुवार 8 दिसम्बर, 2016 के अपने इस संपादकीय को 9 दिसम्बर को मुख्यमंत्री तक पहुंचा भी दिया था।
कोटगेट और सांखला रेलफाटकों की उपज यातायात समस्या के समाधान के लिए एलिवेटेड रोड के निर्माण का शिलान्यास, कोलायत के कपिल सरोवर की आगोर का संरक्षण, शहर की सिवरेज व्यवस्था, कृषि विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिलवाना और सूरसागर को व्यावहारिक योजना के साथ विकसित करना जैसे पांच वादे वसुंधरा राजे ने तब किये थे। भले ही इसे 'विनायक' की आत्ममुग्धता मान लें लेकिन पांच में से जिले की इन तीन जरूरतों पर मुख्यमंत्री को फिर भरोसा दिलाना पड़ा और शेष दो को वे गप्प कर गईं।
मुख्यमंत्री के 13 दिसम्बर को यहां दिये गये भाषण के अनुसार एलिवेटेड रोड का निर्माण आगामी मार्च में शुरू हो जाना है। सिवरेज पुनर्योजना की पूरे शहर की बात न कर उन्होंने गंगाशहर क्षेत्र में इसका काम शीघ्र शुरू करवाने की बात की है। कपिल सरोवर की आगोर का मुद्दा नई खनन नीति से कितना साधा जाना है, समय बताएगा। सूरसागर पर मुख्यमंत्री ने जिस तरह बात की उससे लगता है इसे अभी सफेद हाथी ही बने रहना है। तब के पांचवें वादे कृषि विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिलवाने की बात 'विनायक' ने इसलिए की थी कि इसके एवज में ही सही तकनीकी विश्वविद्यालय का छीना निवाला मुख्यमंत्री वापस लौटा दें। लोक में कैबत के अनुसार बात करें तो कुशल रसोइया भी रसोई बातों से नहीं बना सकता पर हमारी मुख्यमंत्री हैं कि जब भी आती हैं केवल बातें कर लौट जाती हैं। कहने का भाव यही है कि मुख्यमंत्री बिना कुछ दिए इस बार भी यूं ही लौट गईं और हम हैं कि अपने को ठगा-सा महसूस भी नहीं कर रहे है।
वैसे देखा यही गया है कि वसुंधरा राजे सांताक्लॉज तभी होती हैं जब मुख्यमंत्री नहीं होतीं। बाकी तो 'सरकार आपके द्वार' के बीकानेरी पड़ाव के समय का उनका रूप हो या मंत्रिमंडलीय बैठक के समय कावे बहलाने भर को सावचेती से नपी-तुली बातें ही करती हैं। वैसे उम्मीद अब यही की जाती है कि पूरे राजस्थान में बनी अपनी अकर्मण्यता की छवि को सुधारने के लिए सही मुख्यमंत्री इन दो वर्षों में कुछ तो करेंगी नहीं तो केन्द्र की सरकार में जिस तरह प्रधानमंत्री का करिश्मा चुकने लगा है उसे देखते हुए अगले चुनावों में पिछली बार की तरह वसुंधरा राजे के वे शायद ही काम आए।
राजस्थान में मुख्य विपक्ष कांग्रेस से कुछ उम्मीद करना इसलिए निराशाजनक होगा कि इस पार्टी में केन्द्रीय आलाकमान से लेकर जिला स्तर तक की इकाइयों में केन्द्र और प्रदेश की दोनों भाजपा सरकारों के निकम्मेपन और करतूतों को काउण्टर करने की इच्छाशक्ति नहीं दिख रही। सनसनी भर को शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल गहलोत और उनके कुछ सहयोगियों ने काले झण्डे दिखा अपनी ड्यूटी भले ही पूरी कर ली हो लेकिन केन्द्र और प्रदेश में जिन असफलताओं के साथ ये सरकारें चल रही हैं उनको काउण्टर करने के लिए मिलने वाले नित नये मौकों को जनता के सामने रखने में ऊपर से लेकर नीचे तक की कांग्रेस पूरी तरह विफल है। लगता यही है कि कांग्रेस ने व्यावहारिक राजनीति का 'होमवर्क' करना पूरी तरह त्याग दिया है। वह उसी उम्मीद में लगती है कि इन सरकारों से जनता खुद ही निराश हो और बिल्ली के भाग की तरह छींका टूटकर राज के रूप में उनके सामने आ गिरे।
बीकानेर के बाशिन्दों को भी अब अपने मुद्दों में सावचेत हो जाना होगा। हमेशा की तरह लॉलीपॉप मुख में रख उसे चूसने में मगन रहने की आदत छोडऩी होगी। अपनी जरूरतों के लिए बीकानेर के बाशिन्दों को गालिब के इस शे'र से प्रेरणा लेकर चेतन हो लेना चाहिए
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जब आंख ही से ना टपका तो फिर लहू क्या है।

15 दिसम्बर, 2016

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