सुबह के अखबारों में ‘अन्ना-अनशन’के अलावा दो बड़ी खबरें हैं--मध्यप्रदेश के सेंधवा में ड्राइवर ने बस फूंकी और दूसरी है 5 लाख की फिरौती के लिए जोधपुर के 14 वर्षीय किशोर गोविन्द को अगवा कर उसकी हत्या कर देने की।
इन दोनों खबरों (घटनाओं) के मूल में हक से ज्यादा या बिना हक के धन को पाने की उद्दाम लालसा है। बस के ड्राइवर-कंडक्टर ने दूसरी बस पर पेट्रोल डाल कर इसलिए आग लगाई कि वो उसके हक की सवारियों पर डाका डालता रहता होगा। दोनों ही बसों के चालक-परिचालक ऐसा मानते होंगे। 10 के मरने की खबरें तो आ ही चुकी है, यह संख्या दुगुनी भी हो सकती है। धन बल की अनियंत्रित लालसा किसी को भी सच समझने का मौका नहीं देती है।
गोविन्द की हत्या को ही लें--- उसकी हत्या करने वाला उसका परिचित किशोर है और उसे गोविन्द से ही यह जानकारी मिली कि कल ही एक जमीन के सौदे में उसके पिता लाखों रुपये घर पर लाएं हैं। यहां भी लालसा धन की ही। उसके किशोर-मन में ये लालसा परिवार और समाज के माहौल ने ही जगाई होगी।
तीसरी बड़ी खबर अन्ना का अनशन है--आज ही क्यों पिछले कई दिनों से और आगे भी कई दिनों तक रहेगी भी। इसका मूल स्रोरोत ही धन बल को पाने की मेराथन है यानि भ्रष्टाचार से त्रस्त बहुत सारे लोग अन्ना के साथ पूरे मन से है। फिलहाल यह सारा विरोध धन के भ्रष्ट आचरण पर ही केन्द्रित है, आचरण के दूसरे क्षेत्रों में हम कितने खरे हैं यह भी विचार करने का विषय है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ इस लामबन्दी को जन लोकपाल बिल का समर्थन मामने की भूलकर रही है अन्ना टीम। खबरिया स्रोत इसकी पुष्टि इस तरह करते हैं कि आन्दोलन में शामिल अधिकांश को जनलोकपाल बिल और लोकपाल बिल का अन्दर ही मालूम नहीं हैं।
लोकपाल बिल पर बनी संयुक्त कमेटी में सरकार की ओर से शामिल नेताओं की अफसराना हेकड़ी और सिविल सोसायटी के नुमाईंदों के अड़ियल रूख के चलते बात बनते ना बनी। दोनों ही पक्षों को समझना चाहिए कि व्यावहारिक और भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल बिल को लागू करना समय की मांग और लोक की पुरजोर इच्छा है, जो दृढ़ इच्छा शक्ति से सम्भव भी है।
वर्ष 1, अंक 2, सोमवार, 22 अगस्त, 2011
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