Thursday, June 23, 2016

उम्मीदें हरियाने भर को दो वर्ष कम नहीं होते


केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में 'नाम की' राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार ने दो वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। नाम की इसलिए लिखा कि यह सरकार असल में जब भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार नहीं तो इसे राजग की सरकार कैसे कह सकते हैं? पूरा का पूरा वन मैन शो है। कैबिनेट मंत्री तक जब शोभाऊ हैं तो बाकियों की तो बिसात ही क्या। मोदी ने जिस तरह बारह वर्ष गुजरात प्रदेश की सरकार को हांका, कोशिश हाल तक उनकी यही है कि उसी तरह भारत जैसे बड़े देश के शासन को हांक लें। यही वजह है कि शासन संभालने के वास्ते चुनावों में जो-जो भ्रम नरेन्द्र मोदी ने बांटे उनमें से कोई भी पूरा होता नहीं दीख रहा है।
मोदी सरकार का जब एक वर्ष हुआ और लोगों ने जब परिणामों की बात की तो न केवल भाजपा प्रवक्ता बल्कि पार्टी कार्यकर्ता तक यह कहने से नहीं चूके कि पहले जरा उनसे हिसाब मांगें जिन्होंने साठ वर्ष राज किया है और यह भी कहते कि साठ वर्ष के बिगाड़े में सुधारे की उम्मीद एक वर्ष में की ही नहीं जा सकती।
कांग्रेस ने केन्द्र में सत्तावन वर्ष शासन किया। इसे स्वीकारने में कोई संकोच नहीं है कि आजादी बाद इन 68 वर्षों में विकराल होती भ्रष्टाचार, गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से कांग्रेस को बरी नहीं किया सकता। लेकिन कांग्रेस शासन को नाकारा भी नहीं कहा जा सकता। भारत दुनिया के शीर्ष देशोंं में है और इसी कारण है कि पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जैसे दृष्टि सम्पन्न हुए जिनकी योजनाओं के चलते देश ना केवल आर्थिक ताकत बना बल्कि अन्य मामलों में भी दुनिया में अच्छी-खासी हैसियत पा सका।
खैर, जो कुछ हो सका और जो नहीं भी हुआ है उसके लिए ना किसी को बरी किया सकता है और ना ही हासिल को नकारा जा सकता है। बात वर्तमान की करें तो मोदी के प्रधानमंत्रित्व में केन्द्र की सरकार दो वर्ष पूर्ण कर चुकी है और इन दो वर्षों में अवाम को ऐसा कुछ हुआ और होता नहीं दीख रहा जिस पर संतोष किया जा सके। यही वजह है कि दूसरा वर्ष पूर्ण होने पर ना भाजपा प्रवक्ताओं और ना ही पार्टी कार्यकर्ताओं में वह आक्रामकता दिख रही है जो एक वर्ष पूर्ण होने पर सरकार की उपलब्धियों सम्बन्धी सवालों पर देखी गई थी।
दूसरे देशों के साथ कूटनीतिक संबंधी उपलब्धियों पर बात करें तो मोदी लगभग आधी दुनिया नाप चुके हैं। कह यही रहे हैं कि देश के लिए घूम रहा हूं। लेकिन जिस देश से भी लौट कर आते हैं उसके बाद उनमें से अधिकांश या तो अपना पुराना रुख अपना लेते हैं या मोदी की बंधाई उम्मीदों पर पानी फेर देते हैं। पड़ौसी चीन और पाकिस्तान, जिनके साथ देश के रिश्ते सबसे नाजुक हैं, दोनों के रुख में परिवर्तन इन दो वर्षों में नहीं आया और नेपाल जैसे देश का झुकाव पहली बार इन दो वर्षों में ही भारत की बनिस्पत उत्तरी पड़ौसी चीन की तरफ ज्यादा हो लिया। इन देशों के राष्ट्रप्रमुख ना केवल भारत आकर गये हैं बल्कि औपचारिक-अनौपचारिक तौर पर मोदी भी इन देशों में जा आए। इसी तरह मोदी इन दो वर्षों में अमेरिका सात बार 'तू मान न मान मैं तेरा मेहमान' की तर्ज पर हो आए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक भी भारत होकर चले गए। हासिल कुल जमा सिफर। मोदी सातवें फेरे से लौटे तो न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (NSG) में भारत की सदस्यता की बराक से जो हामी भरवाकर आए थे, मोदी के भारत लौटने के बाद उसी अमेरिका की सिनेट ने भारत की सदस्यता के अनुमोदन के लिए इनकार कर दिया जिसने मोदी को चढ़ाने के लिए उनके भाषण में खड़े होकर कई बार तालियां बजाई। अमेरिका अपने अलावा कभी किसी का नहीं रहा यह उसका इतिहास बताता है। और यह भी कि मोदी यह कब समझेंगे कि अन्तरराष्ट्रीय कूटनीतिक सफलता धिंगाणियां की भायळागिरी से तय नहीं होती।
देश के अन्दरूनी मसलों पर भी असफलता इसी से आंकी जा सकती है कि मनमोहनसिंह सरकार की जिन-जिन नीतियों पर भारतीय जनता पार्टी पुरजोर विरोध करती आयी, उन्हीं सब नीतियों-कार्यक्रमों को मोदी सरकार ज्यादा तीव्रता से अपनाती जा रही है। जिस प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का भाजपा पुरजोर विरोध करती आई उसी एफडीआई को उसने रक्षा, मल्टीब्रांड खुदरा, बीमा और टेलिकॉम आदि क्षेत्रों में शत-प्रतिशत स्वीकार कर लिया।
इसी तरह इन दो वर्षों में जिन-जिन योजनाओं को मोदी सरकार ने नई कहकर आहूत किया वे सभी पूर्ववर्ती संप्रग-2 सरकार की हैं जिन पर इस सरकार ने मात्र रि-लैबलिंग ही की है। जैसे-ई-गवर्नेंस, ई-बैंकिंग, ई-रजिस्ट्रेशन और ई-टेण्डरिंग जैसी योजनाओं को एक डिजिटल इण्डिया नाम से रि-लान्च कर दिया। इसी तरह संप्रग-2 की कैश बेनिफिट फंड ट्रांसफर स्कीम को जनधन योजना नाम से, जवाहरलाल नेहरू नेशनल अरबन रिनीवल मिशन को स्मार्ट सिटी नाम से, इण्डस्ट्रियल कोरिडोर (सेज़) को मेक इन इण्डिया नाम से और निर्मल भारत अभियान को स्वच्छ भारत नाम से। केवल नाम बदलने के अलावा इस सरकार ने नया किया ही क्या है? नाम न बदलती और क्रियान्वयन के स्तर पर संप्रग से बेहतर कुछ यह सरकार कर पाती तब भी उपलब्धि मान लेते। इन योजनाओं का क्रियान्वयन जैसा लचर संप्रग सरकारों का था उससे बेहतर इस सरकार का दिखाई नहीं दे रहा। भ्रष्टाचार, मंहगाई से अवाम उसी तरह त्रस्त है जिस तरह कांग्रेसनीत पिछली सरकारों के समय थी।
बांग्लादेश के साथ सीमा विवाद उन्हीं बिन्दुओं पर निबटाया जिन पर कांग्रेस सरकार बरसों से निबटाना चाहती थी और भाजपा अपना छद्म राष्ट्रप्रेम दिखा निबटाने नहीं दे रही थी। आधार कार्ड का भाजपा ने विपक्ष में रहते पुरजोर विरोध किया अब उसे उसी आधार कार्ड मेंं सभी योजनाओं का आन्तरिक सूत्र दीखने लगा है।
डॉलर के मुकाबले में रुपये की कीमत लगातार घट रही है। विदेशों में जमा काला धन का मुद्दा वहीं है जहां पिछली सरकार के समय था। भ्रष्टाचार के आरोपों में जो बड़ी तोपें कांग्रेसराज में अन्दर गईं उसके बाद इस राज में कोई अन्दर नहीं गया। यहां तक कि राबर्ट वाड्रा भी, जिसे ये चौबीस घण्टों में अन्दर करने वाले थे।
कांग्रेस की सरकार अपने दस वर्षों में लगभग जिन तीन सौ उद्योगों को पर्यावरण स्वीकृति देने की हिम्मत नहीं कर पायी उन्हें इस सरकार ने शासन संभालने के एक सप्ताह में बिना अपने तईं समीक्षा की जरूरत समझे तुरंत स्वीकृतियां दे दी।
एलपीजी गैस सिलेण्डर से सब्सिडी प्रधानमंत्री खुद भ्रमित कर छुड़वा रहे हैं। वे विज्ञापन में कहते हैं कि आप छोड़ें तो किसी जरूरतमंद को मिलेगी। मतलब यह कि जैसे इस सबिसडी के लाभान्वितों की सीमा तय हो। वह तो प्रत्येक उस आवेदनकर्ता को दी जा रही थी जो संबंधित प्रक्रिया पूर्ण कर लेता है। इसी तरह पैट्रोल और डीजल पर लगभग चौदह रुपए के कर बढ़ाकर अन्तरराष्ट्रीय मूल्यों में आई कमी का फायदा उपभोक्ताओं तक इस सरकार ने नहीं पहुंचने दिया। यानी इस तरह से अवाम के लाभ को हड़प कर मोदी अपनी सरकार को आर्थिक मोर्चे पर मजबूत दिखाना चाह रहे है। ठीक इसी तरह नरेगा को नासूर मानने वाली सरकार को अब यह योजना अच्छी लगने लगी है।
नई सरकार ने आते ही रेलवे का ना केवल किराया बढ़ाया बल्कि अन्य सभी प्रकार के शुल्कों में अनाप-शनाप बढ़ोतरी कर यात्रियों पर भार डाल दिया। अब तो सुन रहे हैं कि जनता को यह अहसास जताने की तैयारी भी हो रही है कि आप जितने रुपयों में यात्रा कर रहे हो उसका बड़ा हिस्सा सरकारी अनुदान है। मतलब अब यही सुनना बाकी था और परिणति इसकी यह होगी कि इस तर्क के आधार पर अब जब तब रेल भाड़े में बढ़ातेरी की जा सकेगी।
वोट देते समय जनता एक लोक कल्याणकारी सरकार की उम्मीद करती है। लेकिन लगता है नरेन्द्र मोदी अपने पांच वर्षों के शासन में इसी तरह लोक कल्याणी सरकार की अवधारणा का नामोनिशान मिटा देंगे। बजट में शिक्षा, स्वास्थ्य और बाल कल्याण की मदों में कटौती करना और क्या कहलाएगा। जनता के साथ ऐसा ना हो इसके लिए उसे जागरूक होना होगा अन्यथा उसे और ज्यादा भुगतने का मन बना लेना चाहिए।
23 जून, 2016

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