Wednesday, March 2, 2016

एलिवेटेड रोड समाधान पर जनप्रतिनिधि हो सावचेत और आमजन न हों भ्रमित

बीकानेर शहर के बाशिन्दों की बेपरवाही और यहां के जनप्रतिनिधियों के सावचेत न होने के चलते कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या के समाधान का बेहद जरूरी मुद्दा उच्च न्यायालय में जाकर अटक गया। जोधपुर उच्च न्यायालय में इससे संबंधित एक जनहित याचिका की सुनवाई चल रही है। 26 फरवरी, 2016 की तारीख पर रेलवे, राज्य सरकार और इस समस्या के बाइपासी समाधान के पक्षधरों की सुनवाई से संबंधित खबर स्थानीय अखबारों में लगी जिसके कुछ बिन्दुओं को स्पष्ट करना जरूरी है।
रेलवे ने एलिवेटेड रोड बनाने का पक्ष लेते हुए कहा कि इसके बनने पर कोटगेट फाटक तो खुलता-बन्द होता रहेगा लेकिन सांखला फाटक को दीवार खींचकर हमेशा के लिए बन्द कर दिया जायेगा जैसा चौखूंटी और लालगढ़ फाटक पर किया भी गया है। ऐसा इसलिए होता है कि ओवरब्रिज या एलिवेटेड रोड जब बनते हैं तो सुरक्षा कारणों से रेलवे लाइन के ऊपर उसका निर्माण खुद रेलवे अपने खर्च पर करवाता है। इसके बाद उन फाटकों को इसलिए बन्द कर देता है ताकि रेलवे फाटकों के द्वारपालों का खर्चा बचे। राज्य सरकारों से ऐसे अनुबन्ध के समय रेलवे यह शर्त शामिल भी करता है। क्षेत्र के जनप्रतिनिधि यदि सचेत हों  और जरूरत समझें तो राज्य सरकार पर दबाव बनाकर अनुबंध में ये शामिल कर लेते हैं कि रेलवे लाइनों के ऊपर का निर्माण रेलवे चाहे खुद करवाए लेकिन उसका खर्चा राज्य सरकार से ले लेवे। बीकानेर की एलिवेटेड रोड के मामले में राज्य सरकार जब तीन हजार फीट से ज्यादा का निर्माण खर्च उठाएगी तो सांखला फाटक के ऊपर का तीस फीट मात्र निर्माण का खर्चा न उठाकर रेलवे को उसे हमेशा के लिए बन्द करने की छूट क्यों देगी। रानी बाजार रेलवे ओवरब्रिज के निर्माण के समय इसका श्रेय लेने वाले जनप्रतिनिधि यदि यह सावचेती रखते तो आज रानी बाजार रेलवे फाटक क्षेत्र के लोग जो भुगत रहे हैं, नहीं भुगतते। इस संबंध में रेलवे का यह कहना वाजिब है कि रानी बाजार क्रॉसिंग फाटक को बन्द करने का अनुबंध राज्य सरकार से पूर्व में हो चुका था।
इसी तरह बाइपास के समर्थन में तर्क देने वालों का कहना है कि जो यातायात अभी पचास फीट चौड़ी सड़क में नहीं समाता वह चौबीस फीट की एलिवेटेड रोड पर कैसे समाएगा। ऐसा कहने वाले चतुराई ही कर रहे हैं। क्या उन्हें मालूम नहीं है कि वर्तमान में महात्मा गांधी रोड पर जो जाम लगता है, उसका बड़ा कारण है रेलवे फाटकों के खुलते ही आमने-सामने के यातायात का एक-दूसरे में उलझना और वह यदि निकलना भी चाहें तो सड़क के दोनों ओर की पार्किंग उन्हें निकलने नहीं देती। इस यातायात में अधिकांश हिस्सा वह होता है जो केवल इस मार्ग से गुजरता भर है। मात्र गुजरने वाला यातायात जब बिना फाटकों की बाधा के गतिमान रहकर एलिवेटेड रोड से गुजरेगा तो उसके ऊपर जाम कैसे लगेगा, चौबीस फीट चौड़ी सड़क पर तीन गाडिय़ां बराबर आराम से निकल सकती हैं। नीचे जाम इसलिए नहीं लगेगा कि एलिवेटेड रोड बनने के बाद वहां अधिकांश उन्हीं लोगों का आवागमन होगा जिन्हें महात्मा गांधी रोड और स्टेशन रोड पर खरीदारी करनी होगी। यह भी कि पार्किंग के लिए सड़क के बीच अतिरिक्त सुविधा मिलेगी, वह अलग।
एक बात और भी कहनी है कि जहां-जहां यह एलिवेटेड रोड उतरेगी-चढ़ेगी वहां-वहां जाम की स्थिति नहीं रहेगी। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि चौतीना कुआं के पास से जहां यह रोड शुरू होगी वहां सड़क डेढ़ सौ फीट के लगभग चौड़ी है और जहां स्टेशन रोड व राजीव मार्ग पर दो भागों में उतरेगी वहां सड़क लगभग सौ-सौ फीट चौड़ी है। ऐसे में एलिवेटेड रोड का विरोध करने वाले इस शहर के साथ क्या कर रहे हैं, समझ से परे है। 1992 से बाइपास के लिए आन्दोलन चल रहा है जिसे चौबीस वर्ष हो गए। इसी चक्कर में 2006-07 में बनने वाली एलिवेटेड रोड को बजट आने के बावजूद रोक दिया गया अन्यथा शहर के इस क्षेत्र में अभी सुकून के साथ आवागमन होता।
रही रेलवे लाइन के दोहरीकरण की बात तो इसके विकल्प के रूप में यह क्यों नहीं कहा जा सकता कि भविष्य में दूसरी लाइन शहर से बाहर होकर निकाली जाए। वैसे भी बीकानेर-लालगढ़ स्टेशनों के बीच केवल सवारी गाडिय़ों को गुजारने में सिंगल लाइन पर्याप्त रहेगी और इस रेल मार्ग पर विद्युतीकरण की स्थिति में भी कोई तकनीकी बाधा नहीं है।
स्टेशन वर्तमान स्थान पर ही रखते हैं तो कोटगेट और सांखला फाटक पूर्ववत् इसलिए रहेंगे कि तकनीकी कारणों से रेलवे स्टेशन से रेलपटरी के आखिरी क्रॉसिंग से 120 मीटर तक रेल लाइन शंटिंग के लिए जरूरी होती है। इससे ये तर्क खारिज होता है कि बाइपास बनने पर कोटगेट और सांखला रेल फाटक हट जाएगें क्योंकि ये 120 मीटर कोटगेट फाटक के बाद पूरा होता है।
आज इस पर चर्चा फिर इसलिए जरूरी लगी कि जो जनप्रतिनिधि और राजनेता कोटगेट यातायात की समस्या के समाधान के लिए एलिवेटेड रोड को व्यावहारिक समाधान मानकर इसके लिए प्रयासरत हैं, उन्हें इन भ्रमों को दूर करने के लिए सक्रिय होना चाहिए। सावचेती इसलिए भी जरूरी है कि रेलवे से तत्संबंधी एमओयू हो तो यह प्रस्ताव रखा जाए कि सांखला फाटक के ऊपर की एलिवेटेड रोड के हिस्से का निर्माण का खर्च राज्य सरकार ही वहन करे ताकि रेलवे फिर सांखला फाटक को वर्तमान की तरह ही सुचारु रख सके।

3 मार्च, 2016

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