कल के अखबारों में एक बड़ी खबर को छोटा-सा स्थान दिया गया। केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश के हवाले से है यह खबर। रांची में दिये अपने भाषण में उन्होंने नौकरशाहों को आड़े हाथ लेते हुए उन्हें खतरनाक पशु तक कह दिया। हो सकता है कुछ खुद्दार किस्म के उन लोगों को, जिन्हें इस ब्यूरोक्रेसी से कभी काम पड़ा हो तो अच्छा भी लगा होगा। विनायक ने भी जब तब इन नौकरशाह की कार्यप्रणाली और इनके व्यवहार का जिक्र करते यह बताया कि शायद इनकी ट्रेनिंग ही ऐसी होती है कि इन्हें मनुष्य नहीं रहने दिया जाता। इसके बावजूद कुछ ब्यूरोक्रेट्स ऐसे मिल जायेंगे जो अपने में मनुष्यता बचाये रखने की जद्दो-जेहद में न केवल लगे रहते हैं बल्कि वे इसमें सफल भी होते हैं। कई ब्यूरोक्रेट्स का व्यवहार तो इतना भद्दा या अश्लील होता है कि कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति दुबारा उनके पास तक नहीं फटकना चाहता।
वे अपने स्वभाव के चलते यह सब व्यवहार करते हों ऐसा नहीं है| अपने डण्डे से मोटा डण्डा रखने वाले के सामने इन्हें गिड़गिड़ाते और दण्डवत होते भी देखा जा सकता है। जयराम रमेश ने उक्त बयान में सार्वजनिक रूप से कहा है तो अनुभूत ही कहा होगा। वे खुद संवेदनशील राजनीतिज्ञ माने जाते हैं।
वैसे मनीषी डॉ. छगन मोहता ने कोई पैंतीस साल पहले इन नौकरशाहों की व्याख्या की थी, विनायक के पाठकों के लिए इसे ज्यों का त्यों दे रहे हैं-
‘आज तक तो स्त्री और पुरुष
के समागम से मनुष्य पैदा होता
आया है लेकिन
अब एक नयी नस्ल का मनुष्य
पैदा हुआ है। मशीन और आदमी
के समागम से| इसका आकार तो मनुष्य जैसा है पर दिमाग मशीन
की तरह काम करता है।
मशीन की तरह सोचने
वालों का यह जो वर्ग बना है वह
‘ब्यूरोक्रेट्स’ का वर्ग है जो दोगला है।
मनुष्य और मशीन
के संगम से बना हुआ जिस में मानवीय संवेदनशीलता
नहीं है।
हम दुनिया को भी एक बड़ी मशीन की तरह समझते हैं।
सूरज आग का एक बड़ा गोला
है जिसमें इतनी
ऊर्जा चलती है; जीवन की
‘फीजियोलोजी’ को भी समझते हैं तो उसे
‘ह्यूमन मशीन’
कहते हैं।
और फिर हम ‘इनटेक’ और ‘आउटपुट’ की भाषा बोलते हैं। उस का सारांश
यही होता है कि ‘ऐफीशियेन्सी’
और ‘एक्यूरेसी’ तो साइन्स ने हमें दी लेकिन
उस से मनुष्य
में जो संवेदनशीलता
है वह धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है।
और जहां संवेदनशीलता
समाप्त होती है वहीं विमानवीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है।’
25 मार्च, 2013
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