कल दशहरे के दिन असत्य पर जो काल्पनिक जीत दर्ज की गई है वह ठीक लगभग वैसी है जैसी बीकानेर वेटेनरी कॉलेज के छात्र प्रतिवर्ष दर्ज करते आए हैं| स्थानीय वेटेनरी कॉलेज के छात्र पिछले कुछ वर्षों से अन्तिम बैच की विदाई के समय एक रस्म अदा करते हैं| बाकायदा घोड़ी और बैंडबाजे बुलवाए जाते हैं-कोई एक छात्र दूल्हा बनता है-बाकी कई बराती| बरात छात्रों के हॉस्टल से रवाना होकर छात्राओं के हॉस्टल तक पहुंचती है| कुछ देर वहां धमा-चौकड़ी होती है-लड़कियां इस हुड़दंग का आनन्द लेती हैं और तिलक करके बिना दुल्हन बरात को लौटा देती हैं| नाश्ता-खाना तो दूर की बात बरातियों की चाय-पानी की मनुहार भी नहीं की जाती| बेआबरू तो नहीं पर लगभग बैरंग लौटती इस बरात के बराती इसे भी अपनी जीत मान लेते हैं| ठीक वैसे ही जैसे दशहरा उत्सव स्थल से लौटते उत्सवी यह भ्रम लेकर लौटते हैं कि असत्य पर सत्य की जीत दर्ज हो गई है| इस आभासी जीत के चलते ही देश और समाज में असत्य अपना पांव लगातार पसार रहा है|
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अक्टूबर, 2012
1 comment:
Wonderful...
Eye opener!!
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