Wednesday, June 29, 2022

बीकानेर : स्थापना से आजादी तक-9

भूख हड़ताल की खबरें प्रजा तक भी पहुंची, जिसके चलते गोईल के प्रति सहानुभूति बढ़ने लगी। प्रजा परिषद् के अन्य लोग जो जेल से बाहर थे, उन्होंने परिषद् का सदस्यता अभियान शुरू कर दिया। इस कार्य में किशनगोपाल, गुट्टड़ महाराज, घेवरचन्द तम्बोली, श्रीराम आचार्य और गोपालदास दम्माणी ने काफी सदस्य बनाए। इनमें दम्माणी ने सबसे ज्यादा सदस्य बनाये जिनमें मुल्तानचंद दर्जी, पन्नालाल राठी और पुराने योद्धा वैद्य मघाराम और उनके पुत्र रामनारायण शर्मा शामिल थे। लेकिन गोईल के निर्वासन के बाद प्रजा परिषद् के स्वयंभू डिक्टेटर बने रामनारायण आचार्य ने बहुत निराश किया। रावतमल पारीक के साथ जब वे गिराई (पुलिस लाइन) में हिरासत में थे, तभी सरकार के सामने समर्पण करके घर चले गये। बाद में उनकी सक्रियता से आंदोलनकारियों को लगने लगा कि वे राजा के लिए मुखबिरी करने लगे हैं, जिसके चलते आन्दोलकारी रामनारायण आचार्य से व्यवहार में सावचेती बरतने लगे।

30 अक्टूबर 1942 . को भूख हड़ताल के 18वें दिन गोईल ने अपने साथ हो रहे खूंखार कैदियों जैसे व्यवहार के खिलाफ अपील भी कर रखी थी, जिसकी तारीख 11 नवम्बर, 1942 . थी। इसकी वजह से या साथी वकीलों की कोशिशों की वजह से या फिर देश-विदेश में हो रही बदनामी की वजह से या तीनों ही वजह से सरकार ने गोईल की सभी बातें मान ली और उनके पांव से लोहे का कड़ा काट दिया गया, घर के कपड़े पहनने और घर के खाने की छूट के साथ चिट्ठी-पत्री करने की छूट भी दे दी गयी। 12 नवम्बर को गोईल ने भूख हड़ताल खत्म कर दी। इस तरह 13 अक्टूबर को शुरू की गई गोईल की वह भूख हड़ताल पूरे एक महीने चली।

इससे बीकानेर के आन्दोलनकारियों में नई ऊर्जा का संचार हुआ। रामनारायण शर्मा ने 8 दिसम्बर को अकेले झंडा दिवस मनाया, दोपहर 2 बजे तिरंगा लेकर शहर के भीड़ भरे बैदों के चौक में पहुंच गये, और इंकलाब जिन्दाबाद, भारत माता की जय, महात्मा गांधी की जय जैसे नारे लगाते हुए मोहतों के चौक होकर दाऊजी मन्दिर तक पहुंच गये। भीड़ साथ होने से जुलूस सा बन गया। बीकानेर के लिए यह अभूतपूर्व घटना थी। पुलिस ने रामनारायण को दबोच लिया और पुलिस कोतवाली ले गये। वहां से सिविल कोतवाली (चांदमल ढड्ढा का दफ्तर) ले जाकर रात भर खड़े रखा और मारपीट की। माफीनामा लिखवाने की कोशिशें हुई। रामनारायण अड़े रहे। इस पर पुलिस ने छोड़ तो दिया लेकिन कई झूठे मुकदमों में फंसाकर परेशान करना चालू रखा। गंगादास कौशिक के सूत्रों से यह खबर भी जेल में पहुंच गयी और गोईल, कौशिक, आचार्य जैसों को तसल्ली हुई कि शहर में सून नहीं है।

गोईल ने उत्साहित होकर कौशिक के माध्यम से वैद्य मघाराम को सन्देश भिजवाया कि 26 जनवरी रही है। स्वतंत्रता दिवस मनायें और झंडारोहण करें। वहीं दूसरा सन्देश गोईल ने अपनी पत्नी और बेटी को भिजवाया कि ऐसा कोई आयोजन हो तो तुम्हें उसमें शामिल होना है। गोपाल दम्माणी के माध्यम से ये सन्देश भुगताए गये, जिनकी सूचना बाहर के प्रजा परिषदों तक भी पहुंचाई गयी।

वैद्य मघाराम ने पैम्फलेट छपवा कर तीन दिन पूर्व ही बांटने शुरू कर दिये। 25 जनवरी की रात सीआईडी ने उनके घर को घेर लिया, इसके बावजूद मघाराम सीआईडी को चकमा देकर रात 3 बजे घर से निकल लिए। संसोलाव पहुंच कर झंडे को कमर में बांधा और 6 फिट के डंडे के साथ पौ-फटने से पहले वैद्य मघाराम लक्ष्मीनाथ बाग पहुंच गये। पर्चे बंटने से अनेक लोग पहुंचे हुए थे जिनमें गोईल की पत्नी मनोरमादेवी और बेटी चन्दो, स्वामी काशीराम, पन्नालाल राठी, रामनारायण शर्मा, भीक्षालाल आदि शामिल थे। वैद्य मघाराम ने कमर से तिरंगा निकाला और डंडे में लगाकर फहराया और नारे लगाने लगे, वंदे मातरम गा कर जनता ने अपना निश्चय इस तरह पूरा कर दिखाया। जोश में जुलूस भी निकाला और कोटगेट की तरफ चल दिये। बीच रास्ते में पुलिस ने सबको हिरासत में लिया और वैद्य मघाराम और भीक्षालाल की गिरफ्तारी दिखाकर शेष को छोड़ दिया।

2 फरवरी, 1943 . को महाराजा गंगासिंह के देहान्त की खबर गयी। नये राजा बने महाराजा सादुलसिंह। उन्होंने तीनों आन्दोलनकारियों रघुवरदयाल गोईल, गंगादास कौशिक और दाऊदयाल आचार्य से मिलने जेल मिनिस्टर को जेल भेजा। मिनिस्टर ने सुपरिन्टेंट कार्यालय में तीनों को बुलाया और राजा की मंशा बताई कि आप यदि माफीनामा लिख देंगे तो छोड़ दिया जायेगा। हालांकि सजा पूरी होने पर 26 अप्रेल, 1943 . को गंगादास कौशिक की और 13 अक्टूबर, 1943 . को रघुवरदयाल गोईल की रिहाई होनी थी। दाऊदयाल आचार्य ज्यादा आशंकित इसलिए थे कि उन्हें तो बिना किसी मुकदमें और सजा के काल कोठरी में रखा गया था। क्रमशः

दीपचंद सांखला

30 जून, 2022


Thursday, June 23, 2022

बीकानेर : स्थापना से आजादी तक-8

 उधर चूरू में अलग तरह की हलचल हुई। 8 अगस्त 1942 को बम्बई में गांधी के भारत छोड़ो आन्दोलन के आह्वान पर देशव्यापी गिरफ्तारियां हुईं। इसके विरोध में चूरू हाइ स्कूल के विद्यार्थियों ने 10 11 अगस्तदो दिन की हड़ताल रखी। अपनी रियासत में हुई ऐसी प्रतिक्रिया से गंगासिंह तिलमिला गये। विद्यार्थी नाबालिग थे उन पर कोई कानून लागू नहीं हो सकता था, तो एक अध्यापिका को नौकरी से निकाल दिया। वहीं वाराणसी के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र भी आन्दोलित हुए। बीकानेर रियासत के छात्रों के लिए कुछ सीटें आरक्षित थीं, जिसके अन्तर्गत वहां शिक्षा पा रहे सत्यनारायण हर्ष और सत्यप्रकाश गुप्ता को आन्दोलन में शामिल होने के आरोप में विश्वविद्यालय से निष्कासित किया गया। सत्यप्रकाश गुप्ता वही हैं जिन्होंने आजादी बाद वर्षों तक बीकानेर से 'ललकार' अखबार निकाला। तीसरे थे बीदासर के हीरालाल शर्मा (दायमा) जो कानपुर में सक्रिय थे। दायमा भी निष्कासित होकर गांव लौट आये, लेकिन शान्त नहीं बैठे। पेड़ों पर हस्तलिखित नारे चिपकाते रहे। पकड़े गये और वर्षों जेल में रहे।

इस बीच गोईलजी के जो भी साथी थे उन्हें राज की ओर से समझाया जाने लगा कि तुम इन परदेशियों के चक्कर में आओ। वह मुक्ताप्रसाद गया जो नहीं लौटा तो यह रघुवर दयाल भी नहीं आयेगा। जिन कार्यकर्ताओं के रिश्तेदार राज की नौकरी में ऊंचे पदों पर थे उनसे दबाव बनाये गये। लेकिन कोई टस से मस नहीं हुआ। गंगादास कौशिक घर में नजरबन्द थे तब भी खबरें भेजने में लगे रहे, एक दिन उन्हें भी काल कोठरी में भेज दिया गया।

ऐसी खबरें जयपुर पहुंचने पर गोईलजी में बेचैनी बढ़ गयी और तय कर लिया कि कुछ भी होमैं अपने शहर लौटूंगा। सत्यनारायण पारीक अजमेर गये तो वहां के साथियों ने पारीकजी से कहा कि गोईल को कहें कि उनकी अनुपस्थिति में बीकानेर के आन्दोलन पर बुरा असर पड़ रहा है। इसलिए लौटने में शीघ्रता करनी चाहिए।

बीकानेर लौटने के लिए गोईल ने पहले तो रियासत के प्रधानमंत्री को पत्र लिखे। उनका जवाब मिलने पर, 29 जुलाई 1942 . सेे निर्वासित गोईल ने 29 सितम्बर 1942 . को जोधपुर रियासत के आखिरी रेलवे स्टेशन चीलों से बीकानेर रियासत में प्रवेश कर लिया। रेलगाड़ी को नोखा पहुंचने से पूर्व ही रुकवा कर गोईल को गिरफ्तार कर लिया गया। राजद्रोह का मुकदमा चला। 

8 अगस्त 1942 . को 'भारत छोड़ो' के आह्वान वाले बम्बई अधिवेशन में अपने निर्वाचन के दौरान ही बीकानेर के रघुवरदयाल गोईल तथा भादरा के खूबराम सर्राफ, नोहर के मालचंद हिसारिया के भाग लेने को खुला विद्रोह माना गया। ब्रिटिश क्राउन के वफादार गंगासिंह ने इसे अपनी वफादारी में भी कमी माना, इसलिए गोईल और अन्य पर वे खार खाये बैठे थे। 

बम्बई से लौटने पर सर्राफ और हिसारिया के रियासत में प्रवेश करते ही गिरफ्तार कर यातनाएं देनी शुरू कर दी गयी। चूरू में इन गिरफ्तारियों से रोष फैल गया। सरदारशहर हाइस्कूल के विद्यार्थियों ने 2 अक्टूबर 1942 . को गांधी जयंती मनाने की घोषणा की, लेकिन शासन ने मनाने नहीं दी। प्रतिक्रिया-स्वरूप विद्यार्थियों ने दशहरे पर गंगासिंह वर्षगांठ का बहिष्कार किया। इस पर विद्यार्थियों को दंडित किया गया। राधाकिशन गोयल, मोहनलाल ब्राह्मण, मूलचंद सेठिया और दीपचन्द नाहटा नामक विद्यार्थियों को निष्कासित कर दिया गया। विद्यार्थियों द्वारा मुंह खोलने पर इनके उत्प्रेरक अध्यापक गौरीशंकर आचार्य का पता बहुत बाद में जाकर लगा। 

इस बीच अस्वस्थ होकर गंगासिंह जनाना अस्पताल की मुख्य चिकित्सक डॉ. शिवाकामु के साथ मद्रास जा चुके थे। वापस लौटने पर महाराजा गंगासिंह ने अनिश्चितकाल के लिए नजरबन्द खूबराम सर्राफ को तो रिहा कर दिया लेकिन हथकड़ी और बेड़ियों के साथ कैद सरदारशहर के सेठ नेमीचन्द आंचलिया को बीमारी के बावजूद नहीं छोड़ा। गोईल के साथ मेल साबित होने पर शीतलाप्रसाद कायस्थ और उनकी पत्नी को 24 घंटे में रियासत छोड़ने को मजबूर किया गया।

दाऊदयाल आचार्य पर किसी अपराध का इल्जाम नहीं था इसलिए बिना किसी इल्जाम के ही उन्हें काल कोठरी में रखा गया। लेकिन रघुवरदयाल गोईल और गंगादास कौशिक को जेल में लगाई गई अदालत में सजा सुना दी गई। गोईल के लिए एक वर्ष की सख्त कैद एक हजार रुपये जुर्माना और कौशिक के लिए छह महीनों की कैद पांच सौ रुपये जुर्माना। सजा सुनाने के बाद गोईल के घर वाले कपड़े उतरवाकर कैदियों वाले कपड़े पहनाए गए और खूंखार कैदियों जैसे एक पैर में लोहे का कड़ा पहनाने का प्रयास किया। गोईल ने विरोध जताते हुए उसी दिन 13 अक्टूबर 1942 को भोजन का त्याग कर दिया।

काल कोठरी में बन्द गंगादास कौशिक ने पास से गुजरने वाले अन्य कैदियों और प्रहरियों से रिश्ते बना लिए थे। यहां तक कि हैड वार्डन मोतीसिंह से भी, जो किसी बात पर गंगासिंह से नाराज थे। इन्हीं माध्यमों से गोईल की भूख हड़ताल की खबरें देश-दुनिया तक पहुंचने लगीं। जयपुर के हीरालाल शास्त्री, जोधपुर से जयनारायण व्यास, भरतपुर प्रजा परिषद् के रेवतीरमन और अजमेर के शारदा एक्ट के प्रणेता चांदकरण शारदा के वक्तव्य आने लगे। बीकानेर नरेश की दमन नीति की निन्दा होने लगी। क्रमशः

दीपचंद सांखला

23 जून, 2022

Wednesday, June 15, 2022

बीकानेर : स्थापना से आजादी तक–7

 गोईल मात्र 21 वर्ष की उम्र में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में शिरकत करने गये और लौटकर सम्मेलन में जवाहरलाल नेहरू के कहे अनुसार प्रतिवर्ष 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाने का आह्वान कर दिया। पहले बताया ही जा चुका है कि बीकानेर षड्यंत्र केस में स्वतंत्रता सेनानियों की पैरवी का कोई वकील साहस नहीं कर पा रहा था, तब बाबू मुक्ताप्रसाद के सहयोगी बनने से रघुवर दयाल झिझके नहीं। जब बाबू रघुवर दयाल ने षड्यंत्र केस के 'मुल्जिमान' की तरफ से वकालतनामा पेश किया तभी से वे महाराजा गंगासिंह को रड़कने लगे थे।

बीकानेर प्रजामण्डल और उनके सेनानियों के साथ गंगासिंह के बरताव से पूरी रियासत में सन्नाटा छाया हुआ था। तभी 1938 . में बाबू रघुवरदयाल को दाऊदयाल आचार्य जैसा सहयोगी मिल गया। पांच वर्ष के प्रवास के बाद दक्षिण हैदराबाद से लौटा यह वकील युवक खादी पहनता और अपने मित्रों के साथ राजनीतिक चर्चा करने को तत्पर रहता, लेकिन युवक उनके पास फटकने से झिझकते थे। काम के सिलसिले में बाबू रघुवरदयाल से मुलाकात हुई तो उन्होंने बीकानेर में छाये इस आतंक के बारे में बात की। राजनीति में आचार्य की रुचि देखकर गोयल ने आन्दोलन संबंधी सभी बातें विस्तार से बताईं और कहा कि इस समस्या का असली हल आजादी ही है। 1937 . में बाबू मुक्ताप्रसाद और अन्यों के निर्वासन के बाद 1942 . तक कोई भी खुली सुगबुगाहट नहीं कर पाया। दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने पर 1941 . के अन्त में गंगासिंह लौटे और एक फरमान जारी किया :

'हमारी प्रजा को पहले से ही आजादी से बोलने और पब्लिक मीटिंग करने का हक हासिल है, जिनके बिना प्रजा का राज के काम में शामिल होना व्यर्थ हो जाता है। हमारे विचार में हरेक सभ्य गवर्नमेंट की प्रजा को हक है कि राज्य की शान्ति में विघ्न डालते हुए कानून और तहजीब की हद में रहते हुए पब्लिक मामलों में आजादी पर गौर करे और हम इस हक को इसी रूप में बनाये रखना बहुत जरूरी समझते हैं।'

गंगादास कौशिक की उपस्थिति में अपने कार्यालय में आये दाऊदयाल आचार्य को उक्त फरमान बाबू रघुवरदयाल गोईल ने पढ़कर सुनाया। झूठ में लिपटी इस छूट को अनुकूल मानकर कौशिक और आचार्य संगठन बनाकर गतिविधियां शुरू करने को उत्साहित हो गये। गोईल ने गंभीर होकर कहा, 'हाथी की तरह हमारे महाराजा के खाने और दिखाने के दांत अलग-अलग हैं।' इस फरमान पर लंबी बातचीत की और असल परिस्थितियों से वाकिफीयत के बावजूद तीनों नये संगठन की प्रक्रिया में लग गये और गांधी मार्ग को अपनाते हुए तीनों ने अपने लिए अलग-अलग काम तय किये और सक्रिय हो गये।

गोईल द्वारा स्थापित खादी भण्डार हर तरह की गतिविधियों का केन्द्र हो गया। भण्डार के व्यवस्थापक देवीदत्त पंत राष्ट्रीय पर्वों पर आयोजन करने के उत्सुक रहते जबकि इस खादी भण्डार को खोलने की इजाजत अनेक सख्त शर्तों के साथ मिली थी। आयोजन होने लगे तो आयोजन करने के आदेश भी मिलने लगे। अनेक निर्भय युवक जुड़ने भी लगे जिनमें नाथूराम खडग़ावत, सत्यनारायण पारीक, सोहनलाल कोचर, कन्हैयालाल गोस्वामी, ठाकुरप्रसाद जोशी और श्रीलाल नथमल जोशी जैसों के नाम गिनाए जा सकते हैं। बीकानेर के सेनानियों ने अन्य रियासतों की आजादी के कार्यकर्ताओं तथा कांग्रेस के केन्द्रीय नेताओं से संपर्क बराबर रखा। बाहर आयोजित कार्यशालाओं में भी स्थानीय युवक जाने लगे। 

धीरे-धीरे शंकर महाराज, गुट्टड़ महाराज, धनजी माली और रावतमल पारीक जैसे लोग भी जुड़ गये। इस तरह 'बीकानेर राज्य प्रजा परिषद्' का विधिवत् गठन हो गया। गठन के लिए आयोजित बैठक में गोईल के अलावा, ख्यालीसिंह गोदारा, सत्यनारायण पारीक, घेवरचन्द बरोठिया, श्रीराम आचार्य, रावतमल पारीक, किशनगोपाल उर्फ गुट्टड़ महाराज, गंगादास कौशिक, रामलाल जोशी, रामनारायण आचार्य, दाऊदयाल आचार्य, सत्यनारायण अग्रवाल तथा भीक्षालाल बोहरा शामिल थे। (स्रोत : राज्य अभिलेखागार में सुरक्षित पर्चा-उपस्थिति

जब खादी पहनना और महात्मा गांधी की जय बोलना राजद्रोह में आता था तब कोटगेट के अन्दर सादुल स्कूल के पास स्थित सरावगी बिल्डिंग में 'स्वदेशी भण्डार' की स्थापना की, जहां खादी के साथ अखबारों का विक्रय भी किया जाने लगा। भंडार में सत्यनारायण पारीक, श्रीगोपाल दम्माणी, हिटलर दम्माणी और सत्यनारायण अग्रवाल आदि नियमित बैठकें करने लगे। गंगादास गाड़े के साथ गली-गली घूमकर खादी अन्य सामान बेचते। 1940-41 . में डीआईजी ने स्वदेशी भण्डार से गांधी डायरियां जब्त इसलिए कर ली क्योंकि उसमें प्रकाशित एक गीत को उन्होंने आपत्तिजनक माना। 

अपनी गतिविधियों के चलते निर्वासित हो चुके रघुवर दयाल गोईल जयपुर में रहकर राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय रहे। जयपुर में भी गोईल बीकानेर रियासत के गुप्तचरों की निगरानी में थे। गोईल की अनुपस्थिति में बीकानेर में उनके परिवार की देखभाल दाऊदयाल आचार्य करते। बीकानेर में छाई सून से आजादी के सभी दीवाने परेशान थे। घूम फिर कर आने-जाने वाली चिट्ठियां ही गोईल के सम्पर्क का साधन थी। गोईल के सहयोग के लिए दाऊदयाल आचार्य जयपुर गुए हुए थे। लेकिन पिता के श्राद्ध के लिए दाऊजी को लौटना पड़ा, लौटते वक्त दाऊजी को गुप्तचरी का अहसास था। नागौर में रेलगाड़ी से इस वहम में उतर गये कि गाड़ी बदल लूंगा तो पकड़ा नहीं जाऊंगा, उसी दौरान नागौर घूम भी आये और दूसरी गाड़ी पकड़ बीकानेर पहुंचे। उन्हें क्या पता कि बीकानेर का गुप्तचर जयपुर से ही उनके साथ चल रहा है। गाड़ी बीकानेर के आउटर सिग्रल पर रुकी तो सभी की तरह खिड़की से उन्होंने भी मुंह निकाला। पुलिस को देख माथा ठनक गया। इतने में अपने ही डिब्बे से एक को पुलिस को इशारा करते देख लिया। दाऊजी पर कोई आरोप तो था नहीं। बिना किसी मामले के पहले उन्हें गिराई (लाइन पुलिस) में रखा, ज्यादा दिन होने पर बन्द गाड़ी में जेल भेजकर काल कोठरी में बन्द कर दिया। खाने में इल्लियां-टिड्डे वाले आटे की रोटियां परोसी गयी, दाऊदयाल ने हार कर घर के खाने की दरख्वास्त की जो मंजूर हो गयी। क्रमशः

दीपचंद सांखला

16 जून, 2022