Thursday, October 25, 2018

स्त्री की स्वतंत्र ईच्छाओं के खतरे (8 नवंबर, 2011)

तीस-पैंतीस वर्ष पहले की बात है, राजस्थान के एक मंत्री की बेटी ने प्रेस कांन्फ्रेंस बुलाकर बताया कि उसके माता-पिता ने उसकी शादी बचपन में ही कर दी थी और यह कि जिससे उसकी शादी हुई, वो पढ़ा लिखा नहीं है, खुद पढ़-लिख गई है। इसलिए पति साथ उसका पत्नी के रूप में रहना संभव नहीं होगा। घर वालों का दबाव है कि वो मुकलावा (शादी के बाद की एक रस्म जिसके बाद दुल्हन विधिवत अपने ससुराल में रहने लगती है) उसके साथ ले। उस युवती ने प्रेस को यह भी बताया कि उसके साथ पढ़ने वाले एक स्वजातीय युवक से उसे प्रेम है और वो शादी करके उसी के साथ रहना चाहती है।
तब टीवी नहीं था। न ही आज की तरह के अन्य संचार के साधन। लेकिन वो खबर उस समय की बड़ी सनसनीखेज खबर थी, जिसने सरकार को भी हिला दिया था। थोड़े दिन बाद खबर आयी कि उस युवती का प्रेमी जब अपने दो मित्रों के साथ अजमेर से पुष्कर घूमने जा रहा था तो रास्ते में उसकी हत्या कर दी गई। उस हत्या की क्या जांच हुई, आरोपियों को सजा हुई कि नहीं या एफ आर लगा दी गई। इस संबंध में कोई समाचार आये भी होंगे तो ध्यान में नहीं है।
अब जब भंवरी प्रकरण में एक महिला इन्द्रा बिश्नोई का नाम आया तो वो पूरी खबरें स्मरण हो आयीं कि कहीं वो युवती इन्द्रा बिश्नोई तो ही नहीं थी। क्योंकि उस युवती का नाम भी इन्द्रा ही था।
भंवरी और इस युवती के प्रकरण को जानने-समझने से लगता है कि इस पुरुष प्रधान समाज में स्त्री की स्वतंत्र इच्छाएं और महत्त्वाकांक्षाएं दर्दनाक और खतरनाक कितनी हो सकती हैं, खासकर उस समाज में जहां चरित्र की दो व्याख्याएं हैं। स्त्री अगर इधर-उधर होती है तो उसे चरित्रहीन कहा जाता है और पुरुष यदि ऐसा करता है तो रईस और शौकीन कहलाता है।
--दीपचंद सांखला
8 नवंबर, 2011

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