Monday, October 29, 2018

सड़क दुर्घटनाएं और हम (29 नवंबर, 2011)

मनीषी डॉ. छगन मोहता के पुत्र श्रीलाल मोहता ने तीसेक साल पहले मोपेड खरीदी। उस समय वे कॉलेज व्याख्याता थे। डॉ. छगन मोहता ने उन्हें हिदायत देते हुए कहा कि मोपेड को चलाते वक्त पूरा ध्यान रखना। श्रीलाल मोहता का जवाब था--मैं ध्यान से ही चलाता हूं। इस पर डॉ. छगन मोहता ने कहा कि दुर्घटना से बचने के लिए केवल स्वयं का सावधानीपूर्वक चलना पर्याप्त नहीं है, सड़क पर चलने वाले दूसरे भी सावधानी से चलें, यह भी उतना ही जरूरी है अन्यथा वे अन्दर आ गिरेंगे।
कल गजनेर में बस और ट्रक की टक्कर हुई, सात जने अपनी जान गंवा बैठे। पच्चीस से ज्यादा घायल हुए हैं। इन घायलों में से कितने अपने सामान्य जीवन में लौट सकेंगे, अभी कहा नहीं जा सकता। बहुत कम सड़क दुर्घटनाएं प्राकृतिक आपदाओं के चलते होती है जैसे भूकंप से, तेज बारिश से या तेज आंधी से अचानक सड़कों का क्षतिग्रस्त हो जाना। अधिकांश सड़क दुर्घटनाएं मानवीय लापरवाही या भूल का परिणाम होती है। इस तरह की लापरवाही या भूल करने वाले हमेशा खुद भी दुर्घटना के शिकार हों जरूरी नहीं है।
राजमार्गों पर देखते हैं कि सड़कों पर ईंट, पत्थर गिराते हुए ट्रक निकल जाते हैं, गाडियों में कोई खराबी आयी तो उसे ठहराने के लिए सड़कों पर पत्थर रखते हैं, रवाना होते वक्त उस पत्थर को हटाना जरूरी नहीं समझते, आवारा या पालतू पशु जब तब सड़कों पर आ जाते हैं। रात्रि में ऊंट गाड़े और बैलगाड़ियों के आगे-पीछे रिफ्लेक्टर नहीं लगे होते, चौपहिया वाहनों के आगे-पीछे की लाइटें भी कई बार खराब होती हैं। सामने से गाड़ी आ रही हो या किसी गाड़ी के पीछे चल रहे हों तो डीपर लाइट में न चलना जैसी लापरवाहियां तो आम हैं। अपने देश में इस तरह की कोई समयबद्ध वाहन चैकिंग की भी व्यवस्था नहीं है जिसमें यह जांचा जा सके कि निश्चित किलोमीटर चलने के बाद किसी गाड़ी की पूरी सुरक्षा जांच हो चुकी है या नहीं। इसके अभाव में भी कई बार स्टीयरिंग और ब्रेक फेल होते हैं, या ज्यादा घिसे होने से टायर फट जाते हैं।
परिवहन और पुलिस विभाग अपनी ड्यूटी की बजाय चालकों की जिजीविषा पर ज्यादा भरोसा करते हैं, वे मान कर चलते हैं चालक अपनी मौत से डरते हुए गाड़ी सावधानी से ही चलायेंगे। दुर्घटना के जिम्मेदार चालक अकसर दुस्साहसी और मौत से न डरने वाले साबित होते हैं। उनके दुस्साहस को भुगतने वाले मृतक के परिवार और घायल व उनके परिवार इसे नियति मान कर संतोष कर लेते हैं। जिम्मेदार विभागों का काम इस मनुष्य-प्रकृति से चल जाता है। चालक लापरवाही करते हुए पकड़ा जाए या गाड़ी में कोई तकनीकी खराबी पकड़ी जाए तो उसके लिए टेबल के ऊपर जुर्माना और टेबल के नीचे का हर्जाना तय है।
--दीपचंद सांखला
29 नवंबर, 2011

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