Saturday, October 27, 2018

प्रशासनिक बैठकों की रस्म अदायगी (25 नवंबर, 2011)

परिवहन विभाग की ओर से कल संभाग स्तरीय बैठक की रस्म-अदायगी हुई। अभी हाल ही में संभाग के वीरेन्द्र बेनीवाल स्वतंत्र प्रभार के साथ परिवहन मंत्री बने हैं। इसलिए इस बैठक से उम्मीद भी कुछ ज्यादा बंधी थी। लेकिन जैसा कि ऐसी लगभग सभी सरकारी बैठकों का हश्र होता है, इसका भी वही हुआ। संभाग के तीन लोकसभा सदस्य और 24 विधायकों सहित नगरपालिकाओं, नगर परिषदों, नगर निगमों के अध्यक्ष, सभापति, महापौर--इन सभी में से मात्र एक पालिका अध्यक्ष ने आना जरूरी समझा। परिवहन मंत्री सहित अधिकांश ने तो बैठक की सूचना न होने की बात कहकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली। यदि यह सही है तो प्रशासनिक स्तर पर यह और भी गम्भीर है। क्या आयोजकों  ने इन जनप्रतिनिधियों को बाकायदा और व्यवस्थित सूचना देना भी जरूरी नहीं समझा?
इस तरह की बैठकें साल में एक बार भी संभव हो जाए तो गनीमत है। होना तो यह चाहिए था कि बीकानेर और संभाग के अन्य जिला मुख्यालयों की यातायात से संबंधित समस्याओं को व्यावहारिक अंजाम तक पहुंचाने के फैसले होते। बीकानेर शहर में ही लोकल ट्रांसपोर्ट एक बड़ी समस्या है। सिटी बसों का संचालन बार-बार बंद हो जाता है। यद्यपि ऑटोरिक्शा अभी भी अन्य शहरों से यहां सस्ता है लेकिन सिटी बसों से सस्ते नहीं हो सकते। अलावा इसके ऑटो रिक्शा चलाने वालों पर भी कई प्रकार से ध्यान दिया जाना जरूरी है, जैसे उनकी यूनियन के सहयोग से उनके स्वास्थ्य की नियमित जांच होनी चाहिए। उनके पास ड्राइविंग लाइसेंस है या नहीं, देखा जाना चाहिए। समय-समय पर ऐसे रिफ्रेशर कोर्सेस भी चलाए जाने चाहिएं जिसमें उन्हें ट्रैफिक के नियमों की व्यवस्थित जानकारी और उनका पालन करने की जरूरत बताई जा सके। इन्हीं रिफ्रेशर कोर्स के माध्यम से उन्हें लोक व्यवहार का प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
ऐसी बैठकों में यह भी तय किया जाना जरूरी था कि शहर की सभी दो लाइन सड़कों के तिराहे और चौराहों पर कम से कम 100-100 मीटर के डिवाइडर तो बनने ही चाहिए। क्योंकि सभी सड़कों के डिवाइडर बनाना बेहद खर्चीला होगा। यदि 100-100 मीटर के डिवाइडर बना दिये जायें तो भी शहर का ट्रैफिक बहुत कुछ ठीक हो सकता है। इससे दो फायदे होंगे, एक तो इन तिराहों और चौराहों पर आए दिन होने वाली छोटी-मोटी दुर्घटनाओं में कमी आयेगी, दूसरा सड़क पर चलने वालों को अपनी लाइन में चलने का अभ्यास भी बनेगा।
राज्य परिवहन और निजी बसों के संचालन की समयसारिणी भी इस तरह से तय होनी चाहिए ताकि परिवहन निगम और निजी बस संचालकों दोनों को नुकसान न हो और यात्रियों को समयबद्ध सेवा का लाभ मिल सके।
--दीपचंद सांखला
25 नवंबर, 2011

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