Monday, October 29, 2018

बाजार और ओबामा (28 नवंबर, 2011)

अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का एक बयान है जिसमें उन्होंने अपने देश के संदर्भ में कहा है कि हमें स्थानीय दुकानों से खरीददारी करनी चाहिए और समाज के छोटे उद्योगों को समर्थन देना चाहिए। ओबामा का यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत की केन्द्रीय सरकार ने खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दी है। ओबामा के इस बयान को उनका महात्मा गांधी से प्रभावित होना मानें या उनके अपने देश की डांवांडोल हो रही अर्थव्यवस्था को सम्हालने का एक प्रयास। भारत के सन्दर्भ में देखें तो हमें उक्त दोनों ही विकल्पों पर गौर करना चाहिए। देश ने आजादी के बाद गांधी के आर्थिक मॉडल को नहीं अपनाया। अर्थव्यवस्था को एक बार से भी अधिक बदल-बदल कर देखा है देश की आर्थिक विषमताएं घटने की बजाय लगातार बढ़ती ही जा रही है। भारत और अमेरिका की आर्थिक समस्याओं का रूप अलग-अलग हो सकता है। लेकिन, ओबामा के बयान से लगता है कि समाधान एक ही है स्थानीय और छोटे उद्योगों व दुकानों को पनपाना, यही गांधी चाहते थे।
लगता है अमेरिका भारी आर्थिक दबाव में है अन्यथा पिछले कुछ वर्षों को छोड़ दें तो उसकी ओर से कभी भी इस तरह के बयान नहीं आये हैं जिसमें वहां के राष्ट्रपति को इस तरह की अपील करनी पड़ी हो। अब तक अमेरिका दूसरों देशों को न केवल अपने हित में उपयोग करता रहा है बल्कि उसे न्यायिक भी ठहराता रहा है।
ओबामा के उक्त बयान से उनकी दोहरी नीति जाहिर हो रही है। अमेरिका और जो अमेरिकी उद्योग और व्यापार समूह अब तक दूसरे देशों में बाजार ढूंढ़ते फिरते थे, उसी अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा चीन के बाजारू दबाव में ऐसा बयान देने को मजबूर हुए हैं। हमारे देश के आर्थिक नियन्ता इस परिप्रेक्ष्य में खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर क्या पुनर्विचार करेंगे?
                                                    --दीपचंद सांखला
28 नवंबर, 2011

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