Thursday, October 25, 2018

स्त्री की नियति : पतिव्रता या मजबूरी (12 नवंबर, 2011)

भंवरी प्रकरण में आरोपी और पूर्व काबीना मंत्री महिपाल मदेरणा की पत्नी लीला को बयानों के लिए कल सीबीआई ने बुलाया। लीला केवल गृहिणी नहीं है, उनकी अपनी सार्वजनिक हैसियत भी है। वह अपेक्स बैंक की चेयरपर्सन जो हैं।
लीला कल टीवी और अखबारों से बेहद नाराज दिखीं। उनका मीडिया पर आरोप था कि उसने उनका बहुत नुकसान किया है। उन्होंने लोगों से यह भी अपील की कि वे ना टी वी देखें और ना ही अखबार पढ़ें। लीला ने यह भी कहा कि किसी से संबंध होना और उसकी सीडी होना कोई गुनाह नहीं है।
लीला के बयान का पहला हिस्सा जिसमें मीडिया से नाराजगी जाहिर की गई है, उनकी खीज को दर्शाता है। खीज इसलिए कि इस तरह की परिस्थितियों का उन्हें सामना करना पड़ रहा है। बयान का दूसरा हिस्सा मोटे तौर पर उनकी कानून की जानकारी का ना होना ही दर्शाता है। आईपीसी की धारा 497--जिसमें परस्त्रीगमन और परपुरुष गमन को अपराध की श्रेणी में माना गया है। इसमें मुकदमा तभी बनता है जब उससे प्रभावित ही शिकायत करे। उदाहरण के लिए मदेरणा-भंवरी प्रकरण को लें। इसमें दो ही प्रभावित हैं। मदेरणा की पत्नी लीला और भंवरी के पति अमरचन्द। हो सकता है एक परम्परागत भारतीय पत्नी होने के नाते लीला अपना पतिव्रता का धर्म निभाने को मजबूर हो और उसे अब कोई शिकायत ना हो! लेकिन अमरचन्द का तो अपना पक्ष कायम है।
जैसा कि सामान्यतया प्रतिष्ठित परिवारों में होता है ऐसे समय में पूरा परिवार एकजुटता दिखाता है। लीला ने जहां बयान देकर महिपाल की हौसला आफजाही करने की कोशिश की है, वहीं उनकी बेटी भी ऐसे समय में साथ देखी गईं।
इस तरह के विवाहेत्तर संबंधों का उल्लेख भारतीय समाज में सदियों से मिलता है। आज भी इस तरह के संबंधों की अधिकता नहीं तो न्यूनता भी नहीं हैं। बावजूद इसके परिवार बचता है तो स्त्री के धीरज से ही और इस धीरज की उम्मीद उससे ‘पतिव्रता’ होने और परिवार को बचाने के नाम पर की जाती है।
इस सबके बाद भी ऐसे संबंधों के कारण लांछित स्त्री ही होती है। क्या पुरुष ऐसे अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं होते?
--दीपचंद सांखला
12 नवंबर, 2011

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