Wednesday, October 31, 2018

नगर विकास न्यास (13 दिसंबर, 2011)

मकसूद अहमद ने नगर विकास न्यास के अध्यक्ष के रूप में अपनी पारी शुरू कर दी है। न्यास अध्यक्ष के साथ कई वर्षों से दुर्योग यह है कि वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाते। पिछले एक अरसे से हर चुनाव में राज्य की सरकार बदल जाती है और पदासीन न्यास अध्यक्ष को हटा दिया जाता है। आने वाली सरकार मनोनयन में दो से तीन साल लगा देती है। इस बीच यह पदभार पदेन रूप से जिला कलक्टर के पास रहता है। देखा गया है कि इसी दौरान ये कलक्टर भी दो-तीन बार बदल जाते हैं। इनमें से कुछ की रुचि न्यास के काम-काज में होती है, कुछ की नहीं। इस सब के चलते न्यास की योजनाएं और रोजमर्रा का काम-काज बुरी तरह प्रभावित होता है। इससे होता यह है कि न्यास के जिम्मे के शहरी विकास के काम और रोजमर्रा की व्यवस्थाएं जिनका सम्बन्ध सीधे आम शहरी से होता है, उनमें न केवल अनावश्यक समय लगता है बल्कि गुणवत्ता में भी कमी आती है। सबसे बड़ा तो आर्थिक नुकसान खुद न्यास का होता है। धणी-धोरी न होने की इस स्थिति में आय का एक बड़ा साधन उसकी करोड़ों रुपये की जमीनें कब्जा हो चुकी होेती हैं और समय गुजरने के साथ ही रिकार्ड में खुर्द-बुर्द भी होनी शुरू हो जाती है।
मकसूद अहमद को पहला काम तो यह करना चाहिए कि खुद पूरी रुचि व समय देकर न्यास की ऐसी जमीनों की पूरी पैमाइश और आसे-पासे सहित स्थान के साथ सूचीबद्ध करवायें। दो भागों में विभक्त इस सूची के एक भाग में वो भूखंड हो सकते हैं जो खाली पड़े हैं तथा दूसरी सूची में ऐसे भूखंड जिनके वाद न्यायालय के विचाराधीन हों। इस सूची को न्यास में ही एक फ्लेक्स बोर्ड के जरिये प्रदर्शित किया जाय जो पारदर्शिता का एक उदाहरण भी बनेगा और जिन भूखंडों का वाद न्यायालय के अधीन नहीं है, उन सब भूखंडों की चारदीवारी करवा कर न्यास सम्पत्ति का बोर्ड लगवाया जाना चाहिए। ऐसे सभी भूखंडों की नीलामी का कार्यक्रम भी तत्काल ही तय करके न्यास के लिए धन जुटाया जा सकता है ताकि नवनियुक्त न्यास अध्यक्ष शहर के विकास की अपनी योजनाओं को मूर्त रूप दे सकें।
इसके अतिरिक्त राज्य सरकार को भी चाहिए कि वो ऐसा कोई कानून लाये जिसमें न्यास अध्यक्षों की कार्य अवधि निश्चित की जा सके। ऐसे में न्यास अध्यक्षों से यह उम्मीद भी की जानी चाहिए कि उनकी कार्यप्रणाली राजनीति से ऊपर उठी हुई केवल आमजन के हित में हो। ताकि सरकार बदलने पर भी उनका कार्यकाल निर्बाध चलता रहे।
--दीपचंद सांखला
13 दिसम्बर, 2011

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