Monday, October 29, 2018

बीकानेर पश्चिम और भारतीय जनता पार्टी (30 नवंबर, 2011)

राजस्थान विधानसभा के मध्यावधि चुनाव की संभावना न्यूनतम है और समय पर होने में अभी दो साल बाकी हैं। नन्दलाल व्यास जिस तरह से सक्रिय हुए हैं उससे बीकानेर पश्चिम से भाजपा के कई संभावित उम्मीदवार ठिठकने लगे हैं। चालीस साल पहले का शहर का राजनीतिक परिदृश्य होता तो यह सामान्य बात थी। तब मुरलीधर व्यास किसी न किसी बहाने उद्वेलन बनाए रखते थे। इन चालीस वर्षों में व्यावहारिक राजनीति में बहुत परिवर्तन हुए हैं। इसलिए ही नन्दू महाराज की इस सक्रियता के दूसरे मतलब हैं। पहले तो सीधा-सीधा सन्देश वर्तमान विधायक गोपाल जोशी के लिए है। महाराज अपनी इस सक्रियता के माध्यम से उन्हें बताना चाहते हैं कि वे या उनका कोई पारिवारिक बीकानेर पश्चिम से भाजपा के टिकट की दावेदारी करता है तो उन्हें नन्दू महाराज की भारी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। यह वही नन्दलाल व्यास हैं जिन्हें बगावत के चलते 1998 के चुनाव में पार्टी से निकाला गया था। और हेकड़ स्वभाव के बावजूद 2003 के चुनावों से पहले मैनेज करके न केवल वे पार्टी में लौट आये बल्कि शहर सीट से टिकट भी ले आये थे। इसलिए बीकानेर पश्चिम से भाजपा टिकट के अन्य दावेदारों को इन्हें हलके में लेना भूल होगी।
यदि वर्तमान विधायक गोपाल जोशी आगामी चुनाव में टिकट की फिर से दावेदारी नहीं करते हैं तो वे चाह सकते हैं कि यह टिकट उनके पुत्र गोकुल जोशी को मिले। दूसरे दावेदारों में एक हैं मक्खन जोशी के पौत्र अविनाश जोशी, जो वसुंधरा राजे के निजी सचिवालय में अपनी पहुंच के चलते न केवल उम्मीद बांधे बैठे हैं बल्कि कुछ ऐसे कदम भी उठाए जिनसे उनकी अपरिपक्वता ही जाहिर हुई है। तीसरे हैं ओम आचार्य के भतीजे विजय आचार्य। विजय आचार्य बहुत धैर्य से और सधे हुए कदमों से अपने मुकाम को हासिल करने में गंभीर दिखाई देते हैं।
गोपाल जोशी जिस तरह से 50 से ज्यादा वर्षों से अपनी निजी टीम को बनाए रख कर और धन बल से राजनीति में सक्रिय बने हुए हैं, इन्हीं सब के बूते उन्होंने डागा चौक कांग्रेस के उन मंसूबों पर पानी फेर दिया जहां से दबी जबान यह कहा जाता था कि शहर सीट से विधायक होने के लिए गोपाल जोशी को दूसरा जन्म लेना होगा। बात गोकुल जोशी की करें तो उन में अपने पिता के जैसे संबंधों के निभाव और सूझ-बूझ की कमी दिखाई देती है।
मक्खन जोशी एक समय में न केवल बहुत लोकप्रिय थे बल्कि आठवें दशक में कांग्रेस विपक्ष की व्यावहारिक राजनीति में अपना विकल्प न होने की पैठ भी उन्होंने बनाई थी। उनके पौत्र अविनाश जोशी में लगता है धैर्य की बहुत कमी है और उनको यह भी समझना होगा कि व्यावहारिक राजनीति में केवल बाहरी विनम्रता काम नहीं आती। उन्हें अन्दर से भी विनम्र होना होगा।
ओम आचार्य की न केवल पार्टी में अपनी पुरानी पैठ है बल्कि पार्टी के माई-बाप संघ में भी उनकी पहुंच रही है। इसका अभाव गोकुल जोशी और अविनाश जोशी दोनों को ही विजय आचार्य से पिछड़ा सकता है। दूसरी विजय आचार्य की समझदारी इसी से जाहिर होती है कि वे नन्दू महाराज के जन चेतना अभियान में और पार्टी के अन्य कार्यक्रमों में लगातार सक्रिय दिखाई देते हैं।
नन्दू महाराज सहित जिन चार संभावितों का ऊपर जिक्र है वे सब एक ही जातिय समुदाय से आते हैं। आगामी चुनाव से पहले आने वाले जातीय जनगणना के आंकड़े क्या गुल खिलाएंगे, देखना होगा। क्योंकि फिलहाल बीकानेर पश्चिम से पुष्करणा समाज के व्यक्ति की दावेदारी को दोनों ही पार्टियों में चुनौती नहीं है।
--दीपचंद सांखला
30 नवंबर, 2011

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