ऐसे मुद्दों पर प्रशासन से और आपत्ति करने वालों से भी सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने की उम्मीद की जाती है। यदि सार्वजनिक हित में यह योजनाएं आम शहरी और शहर में आने वालों के लिए ज्यादा सुविधाजनक विकल्प है तो प्रशासन को चाहिए कि उसे जितनी गोचर भूमि अवाप्त करनी है उतनी ही राजस्व भूमि पहले गोचर के लिए वो छोड़े और जिस शिक्षण संस्था और कब्रिस्तान की जमीन लिंक रोड के लिए चाहिए उतनी ही भूमि उन्हें संभव हो तो उस जमीन से लगती और ना हो तो प्रभावित समूहों की सहमति से अन्यत्र उपलब्ध करवा कर कार्य को अंजाम तक पहुंचाना चाहिए। वैसे आमजन को तो शायद पता नहीं लेकिन सार्वजनिक जीवन में सक्रिय लगभग सभी को गंगानगर रोड से पूगल रोड तक की रिंग रोड की योजना में दो समूहों में चले शह और मात की जानकारी होगी। वे दोनों समूह राजनीति करने वाले प्रभावशाली नेताओं के थे, और दोनों ही समूहों की उन दोनों प्रस्तावित मार्गों पर अपनी-अपनी जमीनें थी। मजे की बात तो यह कि दोनों ही समूहों की अगुवाई कांग्रेसी और भाजपाई संयुक्त रूप से कर रहे थे। जाहिर है जिन प्रभावशालियों के स्वार्थ सिद्ध होने थे वो पार्टी को दर किनार कर व्यक्तिगत हैसियत से एक हो गये और दोनों ही समूहों ने अपनी पहुंच और सत्ता का लाभ उठाने की पूरी कोशिश की। उस बाजी में जो समूह ज्यादा शातिर था उसने अपने हित में निर्णय करवा लिया। हां, यह सब हुआ आम-आदमी के हित के नाम पर ही। इसलिए ऐसे विरोधों में मीडिया की जिम्मेदारी यह सूंघने की हो जाती है कि कुछ प्रभावशाली सर्वजन हित के नाम पर कहीं अपने स्वार्थों को साधने में तो नहीं लगे हैं।
--दीपचंद सांखला
5 दिसंबर, 2011
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